समुद्र में तैरते बूम्स दे रहा है जलवायु संकट का समाधान

Jitendra Kumar Sinha
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जलवायु परिवर्तन से जूझ रही दुनिया के लिए अब उम्मीद की किरण समुद्र की गहराइयों से उभर रही है। न्यूजीलैंड के डुनीडिन तट के पास प्रशांत महासागर में तैरती कुछ गोलाकार संरचनाएं, जिन्हें ‘बूम्स’ कहा जा रहा है,  आने वाले वर्षों में जलवायु संकट से निपटने में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकता हैं। यह परियोजना गीगाब्लू (Gigablue) नामक कंपनी की अनूठी पहल है, जो समुद्री पारिस्थितिकी और कार्बन नियंत्रण के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रस्तुत कर रही है।

ये बूम्स देखने में भले ही सामान्य संरचनाएं लगें, लेकिन इनमें ऐसे सूक्ष्म कण मौजूद होते हैं जो समुद्री सूक्ष्मजीव फाइटोप्लैंक्टन (Phytoplankton) की वृद्धि को प्रोत्साहित करता हैं। फाइटोप्लैंक्टन वे सूक्ष्म पौधा होता हैं जो समुद्र की सतह पर तैरते रहता हैं और सूर्य की रोशनी से प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की प्रक्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर ऑक्सीजन छोड़ता हैं।

जब इन बूम्स के कारण फाइटोप्लैंक्टन की संख्या बढ़ती है, तो वह वातावरण से अधिक मात्रा में CO₂ अवशोषित करने लगता हैं। इसके परिणामस्वरूप महासागर एक "ब्लू कार्बन सिंक" में बदलने लगता है, जो ग्लोबल वार्मिंग की रफ्तार को कम करने में मदद करता है।

इस प्रक्रिया का लाभ केवल वातावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समुद्री जीवन के लिए भी सकारात्मक प्रभाव लाता है। फाइटोप्लैंक्टन समुद्री खाद्य श्रृंखला की नींव होता है। इसकी वृद्धि से मछलियों और अन्य समुद्री जीवों की आबादी को भी बढ़ावा मिलता है। इससे महासागर की जैव विविधता समृद्ध होता है।

गीगाब्लू की यह तकनीक एक प्रकार की "ओशन बायोइंजीनियरिंग" है। यह प्रकृति की शक्ति को ही उसके संकट का समाधान बनाने की कोशिश है। इसके माध्यम से वैज्ञानिक यह दिखा रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटना केवल सीमाएं तय करने और उत्सर्जन कम करने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि प्रकृति की मदद से वातावरण को सक्रिय रूप से शुद्ध भी कर सकते हैं।

यदि यह प्रयोग सफल रहता है, तो भविष्य में इसे बड़े पैमाने पर अन्य समुद्री क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है। इससे वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा घटेगी और पृथ्वी को स्थायी रूप से स्वस्थ बनाए रखने में सहायता मिलेगी।



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