15 जुलाई से शुरू होगा राज्यव्यापी 'स्टॉप डायरिया कैंपेन

Jitendra Kumar Sinha
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बरसात के मौसम में बच्चों में तेजी से फैलने वाली डायरिया की बीमारी को रोकने के लिए बिहार सरकार एक अहम कदम उठाने जा रही है। 15 जुलाई से पूरे राज्य में ‘स्टॉप डायरिया कैंपेन’ की शुरुआत होगी, जो 14 सितंबर तक चलेगा। स्वास्थ्य विभाग के इस अभियान का उद्देश्य पांच साल से कम उम्र के बच्चों को डायरिया की गंभीरता से बचाना है।

मानसून के मौसम में जलजनित बीमारियों का खतरा काफी बढ़ जाता है। दूषित पानी और अस्वच्छता की वजह से बच्चों में डायरिया के मामले तेजी से बढ़ते हैं, जिससे समय रहते इलाज न मिले तो जान भी जा सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए यह दो महीने का ‘स्टॉप डायरिया कैंपेन’ के विशेष अभियान शुरू किया जा रहा है।

स्वास्थ्य विभाग की योजना के अनुसार, इस अभियान का मुख्य फोकस राज्यभर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों पर होगा। विभाग ने आंकड़ों के आधार पर बताया है कि करीब 1.94 करोड़ बच्चों को इस अभियान के तहत कवर किया जायेगा।

डायरिया के इलाज में ओआरएस (ORS) और जिंक टैबलेट बेहद कारगर साबित होता है। इसीलिए ‘स्टॉप डायरिया कैंपेन’ के तहत इन बच्चों के बीच ओआरएस के पैकेट और जिंक की गोलियों का नि:शुल्क वितरण किया जाएगा। इसका मकसद शुरुआती चरण में ही बच्चों का इलाज शुरू कर, उन्हें गंभीर स्थिति में पहुंचने से रोकना है।

स्वास्थ्य विभाग की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि इस अभियान में ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी। क्योंकि ज्यादातर मामलों में इन इलाकों में जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाएं दोनों की कमी रहती है। इसके लिए आशा कार्यकर्ताओं, एएनएम और स्वास्थ्य कर्मियों की विशेष टीम बनायी जाएगी, जो घर-घर जाकर बच्चों की पहचान कर दवा वितरण का कार्य करेंगी।

अभियान के दौरान सिर्फ दवा वितरण ही नहीं, बल्कि डायरिया के लक्षणों की पहचान, साफ-सफाई बनाए रखने की आवश्यकता और दूषित पानी से बचाव को लेकर भी लोगों को जागरूक किया जाएगा। स्कूलों, आंगनबाड़ियों और पंचायत स्तर पर भी जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।

स्वास्थ्य विभाग की ओर से सभी जिलों को निर्देश जारी कर दिया गया है। जिलास्तरीय स्वास्थ्य अधिकारियों को आवश्यक दवाओं की आपूर्ति पहले ही कर दी गई है। दवा स्टॉक, वितरण रणनीति और निगरानी तंत्र की तैयारी लगभग पूरा हो चुका है।

राज्य सरकार की यह पहल डायरिया जैसी जानलेवा बीमारी के खिलाफ एक सशक्त कदम है। यदि यह अभियान सही तरीके से लागू होता है तो न केवल बच्चों की जान बचेगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता भी बढ़ेगी। बरसात के मौसम में यह अभियान बिहार के लिए एक संजीवनी साबित हो सकता है।



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