150 सालों की खामोश गवाह - “यीलांताश रॉक टॉम्ब”

Jitendra Kumar Sinha
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तुर्की की अफ्यों प्रांत की ग्योंयुश घाटी में स्थित एक रहस्यमयी चट्टानी समाधि “यीलांताश रॉक टॉम्ब”  न सिर्फ पुरातत्व प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है, बल्कि यह समय की मार और सभ्यता के उत्थान-पतन की खामोश गवाह भी है। सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व की फ्रायजियन सभ्यता की यह अनूठी स्मृति, आज भी अपने पत्थर पर उकेरे गए इतिहास को जीवंत रखे हुए है।

सन् 1870 के दशक में, स्वीडिश फोटोग्राफर गीयोम बेरग्रीन ने यीलांताश रॉक टॉम्ब की पहली ऐतिहासिक तस्वीर खींची। उस समय यह स्थल अपेक्षाकृत निर्जन, शांत और प्रकृति की गोद में छिपा हुआ प्रतीत होता था। वहीं 2021 में ली गई दूसरी तस्वीर उसी समाधि को आधुनिक परिवेश, पर्यटकों की हलचल और संरक्षण प्रयासों के बीच दिखाती है। ये दोनों तस्वीरें मिलकर समय के प्रभाव को दर्शाती हैं, एक ओर जर्जरता, दूसरी ओर संरक्षण।

यीलांताश रॉक टॉम्ब, फ्रायजियन कला और वास्तुशिल्प कौशल का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। फ्रायजियन लोग मध्य-पश्चिमी अनातोलिया (वर्तमान तुर्की) में बसते थे और वे अपनी चट्टानों को काटकर बनाई गई समाधियों, मंदिरों और शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध थे। यीलांताश टॉम्ब, उनमें से सबसे प्रमुख संरचनाओं में से एक है, जिसमें पत्थर पर बारीक नक्काशी और ज्यामितीय पैटर्न आज भी स्पष्ट देखा जा सकता है।

150 वर्षों में बहुत कुछ बदला है- देश, सरकारें, तकनीक, यहां तक कि सभ्यताओं की पहचान भी। लेकिन यीलांताश रॉक टॉम्ब अडिग खड़ा रहा है। समय ने इसकी दीवारों को थोड़ा झुका दिया है, मौसमों ने इसकी सतह को झुलसा दिया है, फिर भी इसकी आत्मा जीवित रही है। यह आज भी इतिहासप्रेमियों, शोधकर्ताओं और पर्यटकों को उसी भाव से आमंत्रित करता है।

आज यह स्थल तुर्की की सांस्कृतिक धरोहरों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पुरातत्वविद और संरक्षण संस्थाएं इसके रख-रखाव में जुटी हैं। साथ ही, इसकी दो तस्वीरों को एक साथ प्रदर्शित कर यह बताया जा रहा है कि कैसे एक चुपचाप खड़ा पत्थर भी समय की लंबी कथा कह सकता है।



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