दुनिया में जब भी किसी दुर्लभ चिकित्सा खोज की बात होती है, तो वैज्ञानिक समुदाय उसमें गहराई से रुचि लेता है। ऐसी ही एक चौंकाने वाली खोज सामने आई है फ्रांस के एक द्वीप ग्वाडेलूप से, जहाँ एक 68 वर्षीय महिला में दुनिया का सबसे दुर्लभ ब्लड ग्रुप पाया गया है। इस ब्लड ग्रुप को ‘ग्वाडा नेगेटिव’ नाम दिया गया है।
यह रक्त समूह इस मायने में खास है कि यह अब तक की सबसे दुर्लभ रक्त पहचान है, और इसे दुनिया का 48वां ब्लड ग्रुप सिस्टम घोषित किया गया है। इससे पहले A, B, AB, O समेत 47 आधिकारिक रक्त समूह सिस्टम मौजूद है।
यह खोज इसलिए भी विशेष है क्योंकि इस महिला के रक्त में ईएमएम (EMM) नामक एक सामान्य रूप से सभी मनुष्यों में पाए जाने वाले एंटीजन की पूरी तरह अनुपस्थिति है। यह अपने आप में एक अत्यंत दुर्लभ जैविक घटना है।
‘ग्वाडा नेगेटिव’ ब्लड ग्रुप को EMM-negative system के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। इसकी खोज करने वाली संस्था French Blood Establishment (FBE) है, जो फ्रांस की एक प्रमुख बायोमेडिकल संस्था है।
यह सब कुछ 2011 में शुरू हुआ, जब ग्वाडेलूप की इस 68 वर्षीय महिला की एक सामान्य सर्जरी से पहले ब्लड टेस्ट किया गया। उस समय उसकी रक्त रिपोर्ट में ऐसी एंटीबॉडीज पाई गईं जो किसी ज्ञात ब्लड ग्रुप सिस्टम से मेल नहीं खा रहा था। विज्ञान उस समय इतना उन्नत नहीं था कि इस रक्त समूह को अलग से पहचान सके। लेकिन वैज्ञानिकों को तब भी यह अहसास हो गया था कि इस महिला के रक्त में कुछ अलग है।
2019 में, Next Generation Sequencing (NGS) नामक उन्नत तकनीक का प्रयोग कर वैज्ञानिकों ने इस महिला के पुराने रक्त सैंपल्स की पुनः जाँच की और यही से इस चौंकाने वाले ब्लड ग्रुप की पहचान की गई।
रक्त समूह उन एंटीजन और एंटीबॉडी के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है जो रेड ब्लड सेल्स (RBCs) और प्लाज्मा में पाया जाता हैं। अब तक सबसे सामान्य ब्लड ग्रुप सिस्टम ABO और Rh (रहसस) है। उदाहरण के लिए, यदि किसी के ब्लड में A एंटीजन है तो उसका ग्रुप A होगा, यदि B है तो B और अगर दोनों हैं तो AB, और यदि कोई नहीं है तो O।
EMM एक हाई-इंसीडेंस एंटीजन है, यानि यह लगभग हर व्यक्ति के रक्त में पाया जाता है। इसकी गैर-मौजूदगी न केवल असामान्य है बल्कि अब तक वैज्ञानिक रूप से अनसुनी भी थी।
इस रक्त समूह की विशिष्टता है कि यह एकमात्र व्यक्ति में पाया गया है, यानि दुनिया में केवल एक ही मानव में यह ब्लड ग्रुप है। इसमें EMM एंटीजन पूरी तरह से अनुपस्थित है। किसी अन्य ब्लड से इसे मिलाना संभव नहीं है, न ही इस महिला को किसी और का रक्त चढ़ाया जा सकता है। यह ब्लड ग्रुप एक म्यूटेटेड जीन के कारण उत्पन्न हुआ है, जिसे इस महिला ने अपने माता-पिता से प्राप्त किया है।
इस महिला को जीवनभर केवल अपने ही रक्त पर निर्भर रहना होगा। अगर उसे रक्त की आवश्यकता पड़ी तो कोई अन्य डोनर नहीं मिलेगा। उसे अपने रक्त के सुरक्षित स्टोर बनाने होंगे। किसी प्रकार की आपातकालीन चिकित्सा स्थिति में यह अत्यंत जटिल परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है।
एफबीई के प्रमुख बायोलॉजिस्ट थियरी पेयरार्ड का कहना है कि "यह खोज एक जैविक चमत्कार के समान है। यह ब्लड ग्रुप एक रेयर जेनोटाइप का परिणाम है, जो शायद दोनों माता-पिता से म्यूटेटेड जीन मिलने के कारण उत्पन्न हुआ।"
उन्होंने यह भी बताया है कि भविष्य में यदि इस महिला की संतान हो या परिजनों में कोई और हो, तो उसमें भी ऐसा ब्लड ग्रुप हो सकता है। लेकिन इसकी संभावना नगण्य है।
इस खोज को मिलान (इटली) में आयोजित International Society of Blood Transfusion (ISBT) के सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया। वहां मौजूद विश्व के प्रमुख रक्त वैज्ञानिकों ने इसे चिकित्सा क्षेत्र की अभूतपूर्व उपलब्धि माना है।
ISBT ने इसे दुनिया का 48वां ब्लड ग्रुप सिस्टम की मान्यता दी है, जो इसे वैश्विक मान्यता देता है।
यह खोज ब्लड ट्रांसफ्यूजन और हेल्थकेयर में कई नए प्रश्न और संभावनाएं उत्पन्न करती है। ब्लड ग्रुप की नई पहचान से ब्लड बैंकिंग के तरीके बदल सकता हैं। अब ज्यादा से ज्यादा मामलों में NGS तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। हर व्यक्ति के लिए विशेष चिकित्सा पद्धति बनाना अब और संभव होगा। दुनिया में दुर्लभ रक्त समूहों के लिए वैश्विक स्तर पर डोनर नेटवर्क बनाना जरूरी हो गया है।
‘ग्वाडा नेगेटिव’ से पहले कुछ और भी अत्यंत दुर्लभ रक्त समूह सामने आए थे, जिसमें बॉम्बे ब्लड ग्रुप (hh) है जिसमें एबीओ सिस्टम से परे, A/B एंटीजन नहीं था यह भारत में पहली बार पाया गया था। Rh-null (Golden Blood) जिसमें Rh सिस्टम के सभी एंटीजन का अभाव था, विश्व में केवल 50 व्यक्ति है। Lutheran Null जिसमें Lu एंटीजन नहीं होते हैं अत्यंत दुर्लभ है।
इस ब्लड की चुनौती है ब्लड स्टोरेज और ट्रांसफ्यूजन की व्यावहारिक दिक्कतें। वैश्विक स्तर पर ऐसी पहचान को संगठित रूप से दर्ज करना। आपात स्थिति में मरीज की जान बचाना अत्यंत कठिन।
‘ग्वाडा नेगेटिव’ ब्लड ग्रुप ने यह सिखाया है कि प्रकृति हर बार कुछ नया रचती है, और विज्ञान को हर बार उसे समझने के लिए नए उपकरणों और दृष्टिकोणों की जरूरत पड़ती है।
इस खोज ने बताया है कि अब भी मानव शरीर में ऐसे रहस्य छिपे हैं, जिनकी कल्पना तक नहीं की गई थी। यह खोज न केवल चिकित्सा विज्ञान की ज्ञान सीमा को विस्तृत करती है, बल्कि पर्सनलाइज्ड हेल्थकेयर की आवश्यकता को और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
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