मालेगांव ब्लास्ट केस: 17 साल बाद साध्वी प्रज्ञा समेत सभी आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा सबूत नहीं

Jitendra Kumar Sinha
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2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने 17 साल बाद फैसला सुनाते हुए सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया है। इन आरोपियों में प्रमुख नाम साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, समीर कुलकर्णी आदि शामिल थे। अदालत ने यह फैसला इस आधार पर सुनाया कि अभियोजन पक्ष किसी भी आरोप को कानूनन साबित करने में विफल रहा।


कोर्ट ने कहा कि सिर्फ संभावना, धारणा या नैतिक दलीलों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। न्यायिक दृष्टिकोण से ठोस, प्रत्यक्ष और स्वीकार्य साक्ष्य अनिवार्य होते हैं। मामले में UAPA की धाराओं को लागू करना भी गलत पाया गया, क्योंकि उसके लिए जरूरी दो स्तर की स्वीकृतियाँ न्यायिक रूप से उचित प्रक्रिया से नहीं ली गई थीं।


फॉरेंसिक साक्ष्य अधूरे पाए गए, कॉल डाटा रिकॉर्ड भी लापता थे और जिन मोटरसाइकिलों पर विस्फोट हुआ था, उनके स्वामित्व तक को लेकर पुख्ता साक्ष्य नहीं मिले। कई महत्वपूर्ण गवाह या तो मुकर गए या उनके बयान विरोधाभासी पाए गए। पंचनामा तक में खामियां रहीं और विस्फोट में प्रयुक्त आरडीएक्स की पुष्टि भी निश्चित रूप से नहीं हो पाई।


इस फैसले के बाद सियासी हलचल भी तेज हो गई। असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने सवाल उठाया कि अगर सभी आरोपी निर्दोष थे, तो उन्हें इतने सालों तक जेल में क्यों रखा गया और जांच एजेंसियों की जिम्मेदारी कौन तय करेगा। वहीं दूसरी ओर, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने फैसले को 'भगवा की विजय' बताया और कहा कि उन्हें पहले से विश्वास था कि न्याय मिलेगा।


अदालत ने स्पष्ट किया कि पूरे मामले में जांच एजेंसियों की ओर से कई गंभीर चूकें हुईं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया पर असर पड़ा। यह फैसला देश के सबसे विवादास्पद आतंकी मामलों में से एक में आया है, जिसमें रमज़ान के दौरान मस्जिद के पास हुए धमाके में छह लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों घायल हुए थे।


इस निर्णय से न्यायिक प्रणाली की प्रक्रिया, जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली और आतंकवाद से जुड़े मामलों की निष्पक्षता पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है।

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