विज्ञान की दुनिया में हर दिन कुछ नया हो रहा है, लेकिन जब बात जीवन, उम्र और स्वास्थ्य की हो, तब हर खोज एक वरदान की तरह होता है। अमेरिका के प्रतिष्ठित ड्यूक विश्वविद्यालय द्वारा किया गया एक नया शोध इस दिशा में क्रांतिकारी माना जा रहा है। यह शोध बताता है कि एमआरआई स्कैन (Magnetic Resonance Imaging) केवल मस्तिष्क की बनावट को नहीं दिखाता, बल्कि यह भी भविष्यवाणी कर सकता है कि कोई व्यक्ति जैविक रूप से कितनी तेजी से बूढ़ा हो रहा है और उसकी जीवन प्रत्याशा कितना हो सकता है।
अब तक एमआरआई को केवल एक डायग्नोस्टिक टूल के रूप में देखा जाता था, जिससे ब्रेन ट्यूमर, स्ट्रोक, मस्तिष्क क्षति आदि का पता लगाया जाता था। लेकिन ड्यूक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इसे एक नया आयाम दिया है। उनके अनुसार, एमआरआई से मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों कॉर्टेक्स, हिप्पोकैम्पस और ब्रेन वेंट्रिकल्स, की बनावट और उनके परिवर्तन के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यक्ति जैविक रूप से कितनी तेजी से उम्रदराज हो रहा है।
व्यक्ति के जन्म तिथि से कालानुक्रमिक (Chronological) उम्र तो तय होता है, लेकिन जैविक उम्र (Biological Age) उस गति को दर्शाता है जिससे शरीर वास्तव में बूढ़ा हो रहा है। यह उम्र व्यक्ति के आहार, जीवनशैली, जेनेटिक्स और पर्यावरणीय प्रभावों पर निर्भर करता है।
ड्यूक यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने हजारों एमआरआई स्कैन का विश्लेषण कर यह पाया है कि मस्तिष्क के ऊतकों में कई ऐसे पैटर्न होते हैं जो व्यक्ति की जैविक उम्र की ओर इशारा करता है। मोटा कॉर्टेक्स (Cortex) और बड़ा हिप्पोकैम्पस अच्छी स्मृति, बेहतर संज्ञानात्मक कार्य और युवा जैविक अवस्था का संकेत देता है। सिकुड़ता हुआ हिप्पोकैम्पस तेजी से बुढ़ापे की ओर बढ़ने का संकेत देता है, साथ ही अल्जाइमर और डिमेंशिया का खतरा भी बताता है। मस्तिष्क निलयों (Brain Ventricles) के पास ऊतक का पतला होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति की जैविक उम्र सामान्य से अधिक तेजी से बढ़ रहा है।
शोध में पाया गया है कि जिन लोगों की जैविक उम्र तेजी से बढ़ रहा था, उनकी औसतन मृत्यु दर अन्य लोगों की तुलना में 40% अधिक था। यही नहीं, दीर्घकालिक रोगों जैसे अल्जाइमर, स्ट्रोक, हृदय रोग की संभावना भी उनमें 18% अधिक पाया गया।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जीवनशैली में सुधार जैसे संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, तनाव प्रबंधन से जैविक उम्र की रफ्तार को कम किया जा सकता है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे ब्रेक लगाकर तेज रफ्तार गाड़ी को धीमा करना।
ड्यूक विश्वविद्यालय की शोध टीम ने इस अध्ययन में हजारों लोगों के मस्तिष्क के एमआरआई स्कैन को इकट्ठा किया। इन स्कैन को अत्याधुनिक मशीन लर्निंग तकनीकों की मदद से विश्लेषित किया गया।
तकनीक में Deep Learning Algorithms पैटर्न पहचानने के लिए, Statistical Modeling उम्र और बीमारी के संबंध को समझने के लिए, Cognitive Testing स्मृति, निर्णय क्षमता, और सोचने की प्रक्रिया का मूल्यांकन करने के लिए इस्तेमाल की गई। इन सभी सूचनाओं को जोड़कर एक Brain Age Index तैयार किया गया जो यह बताता है कि मस्तिष्क की संरचना से जैविक उम्र कितनी मेल खा रही है।
इस शोध का उपयोग करके डॉक्टर न केवल मस्तिष्क रोगों की शुरुआती पहचान कर सकते हैं, बल्कि व्यक्ति को यह भी सुझाव दे सकते हैं कि उन्हें अपनी जीवनशैली में किन बदलावों की आवश्यकता है। अल्जाइमर जैसी बीमारी की पहले चरण में पहचान, स्ट्रोक की पूर्व चेतावनी, मानसिक स्वास्थ्य के दीर्घकालीन विश्लेषण, जीवनशैली आधारित निवारक उपायों की शुरुआत। फिलहाल यह तकनीक शोध के स्तर पर है, लेकिन जैसे-जैसे इसका सटीकता स्तर बढ़ेगा, यह आने वाले वर्षों में क्लीनिकल प्रैक्टिस का हिस्सा बन सकता है। स्वास्थ्य बीमा कंपनियां जैविक उम्र के आधार पर बीमा प्रीमियम तय कर सकती हैं। हॉस्पिटल्स में रूटीन चेकअप में जैविक उम्र की गणना को शामिल किया जा सकता है। सरकारें इस डेटा का उपयोग जनसंख्या स्वास्थ्य रणनीति में कर सकती हैं।
अगर जैविक उम्र, मृत्यु दर और बीमारियों का संकेत देती है, तो इसे घटाने के लिए आहार में बदलाव- प्रोसेस्ड फूड से बचें, फल-सब्ज़ी और फाइबर युक्त आहार लें। नियमित व्यायाम- सप्ताह में 150 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी उम्र की रफ्तार को कम कर सकती है। योग और ध्यान- मानसिक शांति और न्यूरोप्लास्टिसिटी बढ़ाता है। नींद- 7-8 घंटे की गहरी नींद मस्तिष्क ऊतकों को स्वस्थ रखती है। सकारात्मक सोच- तनाव जैविक उम्र को बढ़ाता है, जबकि हँसी और संतुलित मन इसे घटाते हैं।
जहां यह शोध अत्यंत उपयोगी है, वहीं इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। हर व्यक्ति के मस्तिष्क का बनावट भिन्न होता है, अतः जनरलाइजेशन करना कठिन हो सकता है। तकनीक को सटीक और सुलभ बनाने में अभी समय लगेगा। कुछ आलोचकों का मानना है कि एमआरआई महंगा है, अतः आम जनता के लिए अभी यह व्यवहारिक नहीं है।
भारत जैसे देश में जहां बुजुर्ग की आबादी तेजी से बढ़ रही है और अल्जाइमर व स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं, वहां यह तकनीक वरदान साबित हो सकता है। AIIMS जैसे संस्थानों में इस तकनीक का पायलट परीक्षण। ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल एमआरआई वैन के माध्यम से जांच। सरकारी योजनाओं में रोकथाम आधारित स्वास्थ्य नीति की पहल संभावित है।
ड्यूक विश्वविद्यालय का यह शोध एक क्रांतिकारी सोच की शुरुआत है। मस्तिष्क अब केवल यादों का भंडार नहीं, बल्कि भविष्य की जीवनगाथा का पूर्वाभास भी दे सकता है। यह तकनीक यह समझने में मदद करती है कि लोग कैसे जी रहे हैं, और कैसे जीना चाहिए ताकि न केवल लंबी उम्र जिएं, बल्कि एक स्वस्थ, सक्रिय और संतुलित जीवन भी जी सकें।
