नोएडा टीवी स्टूडियो में मौलाना साजिद रशीद की पिटाई, डिंपल यादव पर आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद बवाल

Jitendra Kumar Sinha
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डिंपल यादव पर विवादास्पद टिप्पणी करने वाले मौलाना साजिद रशीद को नोएडा के एक टीवी स्टूडियो में पीटने का मामला सामने आया है। वीडियो में साफ दिख रहा है कि मौलाना स्टूडियो में खड़े हैं, तभी कुछ लोग अचानक आकर उन्हें थप्पड़ और घूंसे मारते हैं। यह घटना लाइव बहस के दौरान हुई, और बताया जा रहा है कि हमला समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने किया।


हमलावरों में एसपी अधिवक्ता सभा के राष्ट्रीय सचिव श्याम सिंह भाटी, छात्र सभा के जिलाध्यक्ष मोहित नागर और प्रदेश सचिव प्रशांत भाटी का नाम सामने आया है। वीडियो वायरल होते ही सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर जबरदस्त प्रतिक्रिया आई, कुछ लोगों ने इसे सही ठहराया तो कुछ ने इसे खुलेआम हिंसा करार दिया।


पूरा विवाद मौलाना साजिद रशीद की उस टिप्पणी से शुरू हुआ था, जिसमें उन्होंने सपा सांसद डिंपल यादव की मस्जिद में की गई यात्रा को लेकर अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा था कि डिंपल यादव का मस्जिद में बिना सिर ढके जाना और उनकी पीठ का दिखना "शर्मनाक" है। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि यह तस्वीर “नंगी” है और डिंपल को शर्म आनी चाहिए।


इस टिप्पणी को लेकर विरोध शुरू हुआ और लखनऊ में मौलाना के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई। उनके खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने, महिला सम्मान को ठेस पहुंचाने और सार्वजनिक अशांति फैलाने जैसी धाराएं लगाई गईं। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि यह सिर्फ डिंपल यादव का नहीं बल्कि सभी महिलाओं का अपमान है।


मौलाना ने अब तक माफी नहीं मांगी है। उनका कहना है कि मस्जिद में गैर-इस्लामी आचरण को लेकर उन्होंने जो कहा वह सही था। उल्टा उन्होंने डिंपल और अखिलेश यादव से पहले माफी की मांग की है, क्योंकि उनके अनुसार इन दोनों ने मस्जिद की पवित्रता का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया। मौलाना ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें मुस्लिम होने की वजह से टारगेट किया जा रहा है और उनकी बेटी को भी धमकियां मिल रही हैं।


इस विवाद ने संसद तक हलचल मचा दी है। एनडीए सांसदों ने डिंपल यादव के पक्ष में नारे लगाए और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की चुप्पी पर सवाल उठाए। वहीं, सपा की महिला सांसद इकरा हसन ने भी मौलाना की टिप्पणी की निंदा की और इसे समाज से बहिष्कृत करने योग्य बताया।


यह घटना कई सवाल खड़े करती है—क्या धार्मिक मंचों और विश्वास की सीमाओं के भीतर राजनीतिक बहसें होनी चाहिए? और अगर कोई टिप्पणी आपत्तिजनक है, तो क्या उसकी प्रतिक्रिया खुलेआम हिंसा होनी चाहिए?

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