संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस: पीएम मोदी, राहुल गांधी और अखिलेश यादव आमने-सामने

Jitendra Kumar Sinha
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संसद में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर बहस के दूसरे दिन राजनीतिक तापमान चरम पर पहुंच गया। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव समेत कई बड़े नेताओं ने अपनी बात रखी।


बहस की शुरुआत समाजवादी सांसद डिंपल यादव ने की। उन्होंने पूछा कि जब सरकार कहती है कश्मीर में सब सामान्य है, तो फिर 22 अप्रैल को पर्यटकों पर पहलगाम में आतंकी हमला कैसे हुआ? उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत में मौजूद थीं, फिर भी हमले को लेकर सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई? उन्होंने सीजफायर की जानकारी अमेरिका से मिलने पर भी सवाल खड़ा किया।


गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब में बताया कि पहलगाम हमले में शामिल तीनों आतंकियों को 28 जुलाई को ऑपरेशन महादेव के तहत मार गिराया गया। उन्होंने कहा कि भारत अब माफ नहीं करता, बल्कि सीधा हिसाब करता है।


राहुल गांधी ने सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर एक इमेज-मैनेजमेंट ऑपरेशन था। उन्होंने सवाल किया कि कोई भी देश पाकिस्तान की आलोचना क्यों नहीं कर रहा? उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को संसद में चुनौती दी कि वे ट्रंप को "झूठा" कहने की हिम्मत दिखाएं।


अखिलेश यादव ने चीन के साथ बढ़ते व्यापार पर चिंता जताई और मांग की कि अगले 10 वर्षों में भारत को चीन पर निर्भरता खत्म करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और चीन की नजदीकियां भारत के लिए खतरे की घंटी हैं।


प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 1 घंटे 40 मिनट के भाषण में कहा कि भारत अब पहले जैसा नहीं है, जो सिर्फ सहता था। उन्होंने कहा कि अब भारत हमला करता है और दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर करता है। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने खुद DGMO के जरिए भारत से संपर्क कर कार्रवाई रोकने की अपील की।


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ किया कि ऑपरेशन का उद्देश्य पूरा हो गया था, इसलिए कार्रवाई रोकी गई—अगर जरूरत पड़ी तो फिर से एक्शन लिया जाएगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बताया कि 10 मई को विदेशी नेताओं से कॉल आए कि पाकिस्तान अब लड़ाई नहीं चाहता, उसके बाद DGMO स्तर पर बातचीत हुई।


प्रियंका गांधी ने कहा कि जो लोग सरकार के भरोसे पहलगाम घूमने गए थे, उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की थी। उन्होंने इंटेलिजेंस फेल्योर और सरकार की चुप्पी पर सवाल खड़े किए।


इस पूरे घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया कि ऑपरेशन सिंदूर न सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई थी, बल्कि राजनीतिक लड़ाई का भी केंद्र बन गया है। सरकार इसे साहसिक निर्णय बता रही है, जबकि विपक्ष इसे 'इवेंट मैनेजमेंट' करार दे रहा है।

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