पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने कहा है कि पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्यों और आत्मरक्षा के लिए है। उनका यह बयान उस समय आया है जब भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में सीमा पर तनाव देखा गया। शरीफ ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान की नीति युद्ध की नहीं है, लेकिन अगर पाकिस्तान पर कोई हमला करता है तो देश अपनी रक्षा करना जानता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति है और उसका कार्यक्रम क्षेत्र में शक्ति का संतुलन बनाए रखने के लिए है, न कि किसी देश को धमकाने या युद्ध छेड़ने के लिए।
शहबाज़ शरीफ ने यह भी कहा कि भारत के साथ युद्ध किसी भी पक्ष के लिए लाभकारी नहीं होगा और क्षेत्रीय शांति के लिए संवाद की जरूरत है। हालांकि उन्होंने यह भी दोहराया कि अगर पाकिस्तान पर युद्ध थोपा जाता है तो उसे जवाब देना आता है। उन्होंने भारत पर यह भी आरोप लगाया कि वह पाकिस्तान को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस पर ध्यान देना चाहिए।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का यह बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति संकट में है, और भारत के साथ तनाव किसी भी तरह से उसे मदद नहीं देगा। वहीं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय लंबे समय से दक्षिण एशिया में परमाणु हथियारों की दौड़ और संभावित संघर्ष को लेकर चिंता जाहिर करता रहा है। शरीफ का यह बयान कहीं न कहीं उसी वैश्विक दबाव का परिणाम भी माना जा सकता है, जहां पाकिस्तान को यह साबित करना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल आत्मरक्षा और शांति बनाए रखने के लिए है।
हालांकि भारत की ओर से अभी इस बयान पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह 'नो फर्स्ट यूज़' की नीति का पालन करता है, यानी भारत पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा जब तक उस पर हमला न हो। ऐसे में शरीफ का यह बयान शांति की पहल के रूप में देखा जा सकता है या फिर एक कूटनीतिक दांव भी, ताकि वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को उग्र राष्ट्र के रूप में न देखा जाए।
असलियत यह है कि परमाणु शक्ति का मुद्दा सिर्फ तकनीकी नहीं बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक भी है। पाकिस्तान का यह रुख कितना व्यावहारिक है, यह आने वाले समय में भारत और पाकिस्तान के बीच के रिश्तों और सीमा पर स्थिति से साफ हो पाएगा।
