तेज प्रताप यादव का राजनीतिक भविष्य इन दिनों गहरे असमंजस में है। एक ओर वे लालू यादव के बड़े बेटे हैं, तो दूसरी ओर उनकी गतिविधियां और बयानों ने पार्टी और परिवार दोनों को बार-बार असहज किया है। हाल ही में उनके सोशल मीडिया पर किए गए बयानों ने एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने खुद को टिकट का प्रबल दावेदार बताया और सार्वजनिक रूप से यह सवाल उठाया कि आखिर उन्हें टिकट क्यों नहीं मिल रहा है। यह बात राजद नेतृत्व को नागवार गुजरी है, खासकर तेजस्वी यादव और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को। तेज प्रताप ने यहां तक कह दिया कि वे अपने क्षेत्र से किसी भी हाल में चुनाव लड़ेंगे, चाहे पार्टी टिकट दे या न दे। उनकी इस जिद और तेवर ने पार्टी के अंदरूनी समीकरणों को बिगाड़ दिया है।
तेज प्रताप का यह रवैया कोई नई बात नहीं है। अतीत में भी वे कई बार अजीबोगरीब बयानों और हरकतों के चलते सुर्खियों में रहे हैं। चाहे कृष्ण रूप धारण करना हो या ‘लॉर्ड कृष्णा की सेना’ बनाना हो, उन्होंने हमेशा खुद को पारंपरिक राजनीति से अलग दिखाने की कोशिश की है। लेकिन इस बार मामला ज्यादा गंभीर है क्योंकि राजद के लिए यह चुनावी साल है और पार्टी अपने संगठन को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है। ऐसे में तेज प्रताप की खुली नाराजगी पार्टी की छवि पर असर डाल सकती है।
राजद नेतृत्व के लिए यह स्थिति दोधारी तलवार जैसी है। एक तरफ वे तेज प्रताप को नजरअंदाज नहीं कर सकते क्योंकि वे लालू यादव के बेटे हैं, दूसरी ओर उनकी गतिविधियां पार्टी लाइन के खिलाफ जाती रही हैं। इस दुविधा में पार्टी फिलहाल तेज प्रताप को दरकिनार करने की रणनीति अपना रही है। तेजस्वी यादव की चुप्पी इस बात का संकेत है कि वे किसी भी तरह के टकराव से बचना चाहते हैं। पार्टी में तेज प्रताप के करीबी नेता भी धीरे-धीरे दूरी बना रहे हैं। उनके सार्वजनिक बयानों पर कोई खुलकर समर्थन नहीं कर रहा, जिससे यह साफ है कि तेज प्रताप धीरे-धीरे पार्टी में अकेले पड़ते जा रहे हैं।
तेज प्रताप का अगला कदम क्या होगा, यह अब सबकी निगाहों में है। क्या वे पार्टी के भीतर रहकर अपनी नाराजगी जताएंगे या फिर किसी नए राजनीतिक मंच की ओर कदम बढ़ाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। कुछ सूत्रों की मानें तो वे अपने कुछ समर्थकों के साथ अलग संगठन बनाने पर विचार कर रहे हैं, जबकि कुछ का कहना है कि वे किसी और पार्टी से हाथ मिला सकते हैं। लेकिन खुद तेज प्रताप बार-बार यह कह चुके हैं कि वे राजद को छोड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकते। इस विरोधाभास ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।
लालू यादव इस पूरे मामले में चुप हैं। वे जानते हैं कि बेटों के बीच बढ़ती दूरी पार्टी के लिए घातक हो सकती है। लेकिन बार-बार समझाने के बावजूद तेज प्रताप अपने रवैये में बदलाव नहीं ला रहे। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या राजद भविष्य में तेज प्रताप को लेकर कोई बड़ा फैसला ले सकती है। तेज प्रताप का राजनीतिक सफर अभी उस मोड़ पर खड़ा है जहां से आगे की राह या तो पार्टी में वापसी हो सकती है या फिर पूरी तरह से अलग दिशा।
तेज प्रताप की यह स्थिति न सिर्फ उनके राजनीतिक करियर के लिए चुनौती है, बल्कि यह राजद नेतृत्व की समझदारी और संयम की भी परीक्षा है। जिस तरह से हालात तेजी से बदल रहे हैं, उससे यह कहा जा सकता है कि आने वाले कुछ हफ्ते बिहार की राजनीति में काफी अहम साबित होने वाले हैं।
