ट्रम्प का टैरिफ हमला: दोस्ती की बात, लेकिन व्यापार में दंड

Jitendra Kumar Sinha
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डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर से वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। उन्होंने घोषणा की है कि 1 अगस्त 2025 से भारत के सभी निर्यात वस्तुओं पर अमेरिका 25% टैरिफ लागू करेगा। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब ट्रम्प भारत को “मित्र देश” कह रहे थे, लेकिन उनके मुताबिक, भारत के टैरिफ और गैर-शुल्क बाधाएं अमेरिकी व्यापार के लिए सबसे कठिन हैं।


ट्रम्प का आरोप है कि भारत वर्षों से अमेरिका से व्यापार में अनुचित लाभ लेता आया है, और अब जब भारत रूस से हथियार और ऊर्जा का सबसे बड़ा खरीदार बनता जा रहा है, तो यह “अमेरिकी हितों के विरुद्ध” है। उन्होंने चेतावनी दी है कि रूस से हथियार और ऊर्जा खरीदने पर भारत को अतिरिक्त आर्थिक दंड भी झेलना पड़ सकता है।


भारत सरकार ने इस कदम को गंभीरता से लिया है। सरकार का कहना है कि वह इसका आर्थिक विश्लेषण कर रही है और किसानों, छोटे उद्यमों और निर्यातकों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएगी। सरकार ने बातचीत के दरवाजे खुले रखे हैं, लेकिन यह साफ किया है कि राष्ट्रीय हित से समझौता नहीं किया जाएगा।


इस टैरिफ का सीधा असर भारत के उन क्षेत्रों पर पड़ेगा जो अमेरिका को बड़ा निर्यात करते हैं—जैसे वस्त्र उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न एवं आभूषण, फुटवियर और रसायन उत्पाद। भारत के लिए चुनौती यह भी है कि अब उसके उत्पाद अमेरिकी बाजार में वियतनाम और चीन जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे जो कम टैरिफ पर अपना माल भेज रहे हैं।


इसकी वजह से भारतीय रुपया कमजोर हो गया है और विदेशी मुद्रा बाजार में हलचल बढ़ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह टैरिफ लंबे समय तक बना रहा तो देश की GDP वृद्धि दर में भी गिरावट आ सकती है।


व्यापारिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रम्प का यह फैसला एक रणनीतिक दांव है जिससे भारत को दबाव में लाकर किसी व्यापक व्यापार समझौते की ओर ले जाया जा सके। उम्मीद है कि सितंबर तिमाही तक दोनों देशों के बीच किसी व्यापारिक समझौते की दिशा में प्रगति हो सकती है।


भारत के लिए यह समय सतर्क रणनीति अपनाने का है। उसे अपने निर्यात बाजारों में विविधता लानी होगी, घरेलू उद्योगों को समर्थन देना होगा और अमेरिका के साथ पारस्परिक सम्मान पर आधारित बातचीत को प्राथमिकता देनी होगी।


हालांकि यह संकट जैसा दिखता है, लेकिन यदि भारत अपनी कूटनीतिक समझदारी और आर्थिक ताकत को सही दिशा में लगाए, तो यह अवसर में भी बदला जा सकता है। वक्त आ गया है जब भारत को अपनी 'मित्रता' की परिभाषा अमेरिका को दोबारा समझानी होगी—आत्मसम्मान के साथ।

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