लोकसभा में एक बार फिर विपक्ष और सरकार के बीच तीखी बहस देखने को मिली जब राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह कहने की मांग कर दी कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प "झूठ बोल रहे हैं"। राहुल गांधी का कहना था कि यदि ट्रम्प का यह दावा झूठा है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया था, तो प्रधानमंत्री को संसद में आकर उन्हें झूठा करार देना चाहिए।
राहुल ने सवाल खड़ा किया कि क्या भारत की विदेश नीति इतनी कमजोर है कि किसी बाहरी नेता की बातों पर चुप्पी साध ली जाए। उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री ट्रम्प की बात को गलत मानते हैं, तो उन्हें खुलकर देश के सामने बोलना चाहिए।
इस पर सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया दी और राहुल गांधी के बयान को "बचकाना" और "अपरिपक्व" बताया। सरकारी सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री पहले ही संसद में स्पष्ट कर चुके हैं कि ट्रम्प से इस तरह की कोई बातचीत नहीं हुई थी और न ही उन्होंने युद्ध रोकने के लिए कोई दबाव बनाया था।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इस मुद्दे पर सफाई देते हुए कहा कि ट्रम्प का दावा आधारहीन है और भारत की विदेश नीति पूर्णतः स्वतंत्र और आत्मनिर्भर है। उन्होंने विपक्ष से अपील की कि वह विदेशी मामलों पर राजनीति न करें क्योंकि इससे देश की साख और रणनीतिक हितों पर असर पड़ता है।
सत्ता पक्ष का कहना है कि राहुल गांधी केवल सुर्खियों में बने रहने के लिए इस प्रकार के बयान दे रहे हैं और यह विषय राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति से जुड़ा हुआ है, जिससे राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
विपक्ष का तर्क है कि सरकार ट्रम्प के साथ अपने संबंधों के चलते इस मुद्दे पर नरमी दिखा रही है, जबकि उसे देश की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए।
कुल मिलाकर, यह बयानबाज़ी एक बार फिर यह साबित करती है कि भारत की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दे भी अब संसद के गलियारों में राजनीतिक हथियार बन चुके हैं। ट्रम्प का नाम लेकर राहुल ने जो सियासी तीर चलाया, उस पर सरकार ने ढाल उठा ली है — लेकिन इससे जनता के मन में विदेश नीति की पारदर्शिता को लेकर कई सवाल जरूर उठ खड़े हुए हैं।
