पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना

भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष को एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली आध्यात्मिक वस्तु माना गया है। यह न केवल एक धार्मिक आभूषण है, बल्कि एक ऊर्जात्मक उपकरण (Energy Tool) भी है जो साधक को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही लाभ देता है। शिवपुराण, पद्मपुराण, स्कंदपुराण जैसे अनेक ग्रंथों में रुद्राक्ष की महिमा का गुणगान किया गया है।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष इस दिव्य श्रृंखला में अत्यंत विशिष्ट स्थान रखता है। इसे "पापनाशक", "ज्ञानवर्धक" तथा "पुनर्जन्म से मुक्तिदाता" माना गया है। यह रुद्राक्ष उस साधक के लिए विशेष फलदायक है जो आत्मोन्नति, ज्ञान-साधना, आध्यात्मिक जागृति और कर्मबंधन से मुक्ति चाहता है।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष में पंद्रह प्राकृतिक रेखाएं (मुख) होता हैं, जो इसके ऊपर से नीचे तक जाता हैं। यह रेखा इसकी असली पहचान होता हैं। इसका आकार मध्यम से बड़ा होता है और रंग हल्का भूरा से गहरा कत्थई तक हो सकता है।

यह रुद्राक्ष मुख्यतः नेपाल और इंडोनेशिया में पाया जाता है, जिसमें नेपाल का रुद्राक्ष सबसे दुर्लभ और प्रभावशाली माना गया है।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष को भगवान पशुपति नाथ का प्रतीक माना गया है, जो सभी जीवों के स्वामी हैं। इसे काल भैरव और पितृदोष निवारण से भी जोड़ा जाता है।  यह मृत्यु के भय, पितृदोष, कर्म बंधन और कुंडली के राहु-केतु जैसे ग्रह दोषों को शांत करता है। शिव के रुद्र रूप की ऊर्जा को धारण करता है। इसे धारण करने से आत्मज्ञान और मुक्ति की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा सकता है।

पितृदोष और कर्मबंधन से मुक्ति - जिन व्यक्तियों को पितृदोष के कारण जीवन में निरंतर विघ्न, रोग, बाधा, दुर्भाग्य और आर्थिक संकट झेलने पड़ते हैं, उनके लिए यह रुद्राक्ष अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। यह पूर्व जन्म के बुरे कर्मों को काटता है।

पुनर्जन्म से मुक्ति- पुराणों में कहा गया है कि यह रुद्राक्ष मोक्ष का द्वार खोलता है। यह साधक को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त करने की ओर प्रेरित करता है।

आत्मज्ञान की प्राप्ति- पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष से ब्रह्मज्ञान, ध्यान और वैराग्य का विकास होता है। यह साधक की चेतना को उच्चतर स्तर पर ले जाता है।

रुद्राक्ष पर वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि इसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रॉपर्टीज पाया जाता है, जो शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष मानसिक तनाव, अवसाद, भय, चिंता जैसी समस्याओं को दूर करता है। नींद न आने की शिकायत को कम करता है। मस्तिष्क की सक्रियता बढ़ाता है। यह बाएँ और दाएँ मस्तिष्क के संतुलन में मदद करता है। स्मरण शक्ति और निर्णय क्षमता बढ़ता है।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष राहु, केतु और शनि जैसे ग्रहों के दुष्प्रभाव को शांत करता है। जिनकी कुंडली में पितृदोष, कालसर्प योग या राहु-केतु की महादशा चल रही हो, उनके लिए यह रुद्राक्ष वरदान समान है। इसे धारण करने से रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष उन्हें धारण करना चाहिए जो ध्यान, योग और साधना के क्षेत्र में अग्रसर हैं। जिन्हें पितृदोष, राहु-केतु की बाधा, या पुनः असफलता का सामना करना पड़ रहा हो। विद्यार्थी, शोधकर्ता, लेखक और वैराग्य मार्ग के जिज्ञासु इसे धारण कर सकते हैं। मानसिक शांति और आध्यात्मिक प्रगति चाहने वाले इसे जरूर धारण करें।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष को गौमूत्र, गंगाजल या पंचामृत में 1 घंटे तक डुबोकर रखना चाहिए। साफ जल से धोकर एक पीले कपड़े में रख कर, सोमवार के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर शिवलिंग के समक्ष बैठ कर,  रुद्राक्ष को सामने रखकर ॐ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।  ॐ ह्रीं नमः या ॐ पशुपतये नमः मंत्र का भी 108 बार जाप कर सकते हैं।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष को सोने, चाँदी या ताम्बे की माला में धारण किया जा सकता है। इसे गले, भुजा या कलाई में भी धारण किया जा सकता है। धारण करते समय नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए।

पौराणिक कथा है कि एक बार महर्षि भृगु ने तपस्या करते हुए देखा कि प्रजाजनों के पितर बार-बार जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसे हैं। उन्होंने शिवजी से समाधान मांगा। शिवजी ने उन्हें पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष की साधना करने की आज्ञा दी। इसके प्रभाव से उन्होंने न केवल पितरों का उद्धार किया, बल्कि ज्ञानविज्ञान की उच्चतम अवस्था को प्राप्त किया।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष को यदि पितृ यंत्र, काल भैरव यंत्र अथवा श्री यंत्र के साथ प्रयोग किया जाए, तो यह विशेष रूप से भूमि विवाद, कोर्ट केस, वंश वृद्धि की बाधा, पूर्वजों के क्रोध को शांत करने में सहायक होता है।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष धारण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि नकली रुद्राक्ष से बचें। हमेशा प्रमाणित विक्रेता से खरीदें। शराब, मांसाहार, झूठ, व्यभिचार जैसे कार्यों से दूरी बनाकर रखें। इसे धारण करते समय नियम, संयम और सात्त्विकता अपनाएं। रुद्राक्ष को कभी भी नीचे न गिराएं या अपवित्र स्थान पर न रखें।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष के संबंध में एक साधक का अनुभव है। काशी निवासी अरुण शर्मा ने वर्षों तक पितृदोष के कारण कुंडली दोष झेला। विवाह में विलंब, नौकरी में असफलता और मनःस्थिति डगमगाने लगी। किसी ज्ञानी पंडित ने उन्हें पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष पहनने की सलाह दी। मात्र तीन माह में न केवल उनका व्यवहार संतुलित हुआ, बल्कि उन्हें शोध के क्षेत्र में नियुक्ति भी मिली।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष केवल एक बीज नहीं है, बल्कि वह दिव्य बिंदु है जिसमें समाहित है शिव की पूर्ण कृपा। यह रुद्राक्ष साधक को भौतिक, मानसिक और आत्मिक तीनों ही स्तरों पर उठाता है। आज जब व्यक्ति कर्मों के बंधन, पितरों के ऋण और राहु-केतु के प्रभाव से जूझ रहा है, तब पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष शिव का आश्रय बनकर उबारने की शक्ति रखता है।

पन्द्रह मुखी रुद्राक्ष सामान्य जाप के लिए “ॐ पशुपतये नमः”, ज्ञान वर्धन हेतु “ॐ ह्रीं नमः”, शुद्धिकरण हेतु “ॐ नमः शिवाय” और पितृदोष शांति के लिए “ॐ काल भैरवाय नमः” का जाप करना श्रेयस्कर होगा।


 















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