अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में हाल ही में फिर से हलचल मच गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए नए टैरिफ ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में तनाव बढ़ा दिया है। इस मुद्दे पर अब ब्राजील के राष्ट्रपति लुईज इनासियो लूला दा सिल्वा ने खुलकर पहल करते हुए ब्रिक्स देशों के विशेष सम्मेलन की मांग की है। लूला का मानना है कि ट्रंप के टैरिफ निर्णय का असर केवल एक या दो देशों पर नहीं, बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय व्यापार ढांचे पर पड़ सकता है।
ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका, ये पांच देश मिलकर ब्रिक्स समूह बनाते हैं। यह संगठन उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है और वैश्विक व्यापार में इनकी हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। लूला ने इस मुद्दे पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत कर उन्हें भी ब्रिक्स सम्मेलन के विचार से सहमत करने की कोशिश की है। उनका मानना है कि अमेरिका के टैरिफ कदम का सामना केवल संयुक्त और रणनीतिक प्रयासों से ही किया जा सकता है।
ट्रंप प्रशासन का टैरिफ निर्णय कई देशों के निर्यात पर सीधा प्रहार कर सकता है। इससे न केवल ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भी व्यवधान पैदा हो सकता है। खासकर स्टील, एल्युमीनियम, ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों पर असर देखने को मिलेगा। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह व्यापारिक तनाव बढ़ता है तो यह नए "ट्रेड वॉर" का रूप ले सकता है।
चीन पहले से ही अमेरिका के साथ टैरिफ विवाद में उलझा हुआ है। ऐसे में लूला का यह प्रस्ताव चीन को भी एक रणनीतिक सहयोगी का मौका देता है। अगर ब्रिक्स देश मिलकर टैरिफ के खिलाफ ठोस नीति और वैकल्पिक बाजारों की रणनीति तैयार करता है, तो यह अमेरिका पर दबाव बनाने में कारगर हो सकता है।
भारत और रूस भी इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत के लिए कृषि, वस्त्र और आईटी सेवाएं अमेरिका के बड़े बाजार हैं, जबकि रूस ऊर्जा निर्यात में अमेरिका के प्रतिबंधों का पहले से सामना कर रहा है। ऐसे में ब्रिक्स सम्मेलन इन देशों के लिए एक साझा रणनीति तय करने का मंच बन सकता है।
लूला का ब्रिक्स सम्मेलन प्रस्ताव इस समय बेहद प्रासंगिक है, क्योंकि वैश्विक व्यापार का संतुलन बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है। यदि ब्रिक्स देश एकजुट होकर ट्रंप टैरिफ के खिलाफ ठोस रुख अपनाते हैं, तो यह न केवल उनके आर्थिक हितों की रक्षा करेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था में उनकी भूमिका को भी मजबूत करेगा। अब नजर इस बात पर है कि बाकी ब्रिक्स सदस्य इस प्रस्ताव पर कितनी तेजी से सहमत होते हैं और इसे अमल में लाने के लिए क्या कदम उठाते हैं।
