शिव सिर्फ देव नहीं - संपूर्ण चेतना है (प्रतीकों में छिपा है ब्रह्मांडीय रहस्य)

Jitendra Kumar Sinha
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भगवान शिव केवल एक देवता नहीं हैं, बल्कि वह सनातन धर्म में ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रतीक हैं। वे संहार के देव हैं, परंतु इस संहार में ही नवसृजन का बीज छिपा है। शिव का स्वरूप जितना रहस्यमयी है, उतना ही उनके शरीर पर सुशोभित आभूषणों और प्रतीकों का भी गूढ़ अर्थ है। हर आभूषण, हर अस्त्र और हर प्रतीक उनके व्यक्तित्व, दर्शन और ब्रह्मांडीय सत्य को परिभाषित करता है। 

शिव के वाहन नंदी को प्रायः एक शांत, स्थिर और श्रद्धालु बैल के रूप में दर्शाया जाता है। लेकिन नंदी शिव का वाहन है और शिव का प्रथम भक्त भी। इसका सीधा अर्थ है कि भगवान शिव सदा धर्म पर सवार रहते हैं। धर्म ही शिव की गति का आधार है। नंदी की स्थिरता, सहनशीलता और शांत स्वभाव यह सिखाता है कि यदि धर्म के पथ पर चलें, तो परमात्मा स्वयं सवारी करेगा। धर्म कोई कठोर नियम नहीं है, बल्कि आंतरिक अनुशासन और संयम है। नंदी प्रतीक है निष्ठा, सेवा और समर्पण का। नंदी सिखाता है कि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए श्रद्धा और स्थिरता आवश्यक है।

शिव के मस्तक पर सदा शोभायमान अर्धचंद्र केवल सौंदर्यवर्धक आभूषण नहीं है। चंद्रमा "मन" का कारक ग्रह माना जाता है। जब शिव उसे अपने सिर पर धारण करते हैं, तो वे एक स्पष्ट संदेश देते हैं- "मन तुम्हारे अधीन हो, न कि तुम उसके अधीन।"  मन की प्रकृति चंचल है, वह कभी स्थिर नहीं रहता। शिव अपने सिर पर चंद्रमा को धारण कर यह बताते हैं कि मन को वश में करने पर ही ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। इस प्रतीक से यह शिक्षा मिलती है कि मन को शांत और संयमित रखना आध्यात्मिक उन्नति की कुंजी है।

शिव का डमरू केवल एक वाद्य यंत्र नहीं है, बल्कि ब्रह्मांडीय कंपन का प्रतीक है। पौराणिक मान्यता है कि शिव के डमरू से ही संस्कृत के 14 महेश्वर सूत्र उत्पन्न हुए थे। यही सूत्र व्याकरण के मूल हैं। डमरू की आकृति ब्रह्मांड के फैलने और सिमटने के सिद्धांत को दर्शाती है। बिग बैंग और बिग क्रंच का सिद्धांत इसकी आधुनिक व्याख्या है। डमरू दर्शाता है कि हर ध्वनि की शक्ति है, और उसी ध्वनि से विचार, भाव और कर्म उत्पन्न होते हैं। शब्द ब्रह्म होता है।

शिव के गले में लिपटा हुआ सर्प न केवल उनके डरावने स्वरूप को दर्शाता है, बल्कि इसके पीछे गहरा संदेश छिपा है। शिव के गले में वासुकि नाग है, जो विष का प्रतिनिधित्व करता है। शिव उस विष को अपने गले में धारण करते हैं ताकि वह संसार में न फैले। सर्प चेतना और ऊर्जा (कुंडलिनी शक्ति) का प्रतीक है। शिव का यह रूप बताता है कि जब मनुष्य पूर्ण चेतना में होता है, तो वह विष को भी अमृत बना सकता है। नाग सिखाता है कि जीवन के खतरों और चुनौतियों के प्रति सदैव जागरूक और सतर्क रहना चाहिए।

त्रिशूल, शिव का प्रमुख शस्त्र है और यह तम, रज, और सत्व, इन तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। त्रिशूल वह अस्त्र है जिससे शिव अधर्म का संहार करते हैं। यह शक्ति, न्याय और नियंत्रण का प्रतीक है। त्रिशूल तीन शक्तियों का संगम है,  इच्छा (इच्छा शक्ति), क्रिया (क्रिया शक्ति) और ज्ञान (ज्ञान शक्ति)। जब तीनों एक साथ हो जाएं, तभी पूर्णता प्राप्त होती है। जीवन में संतुलन के लिए तीनों गुणों को पहचानना और उन पर नियंत्रण आवश्यक है। शिव यह संतुलन अपने त्रिशूल से दर्शाते हैं।

शिव की तीसरी आँख उनके ललाट में स्थित है, जो सामान्य आँखों से अलग है। तीसरी आँख खुलने का अर्थ है-  सत्य का संहार। यह विनाश नहीं, बल्कि अज्ञान का अंत है। तीसरी आँख चेतना के उस स्तर का प्रतिनिधित्व करती है जो भूत, वर्तमान और भविष्य को एक साथ देख सकता है। यह आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है। तीसरी आँख सिखाती है कि बाहरी दृष्टि के साथ-साथ अंतर्ज्ञान (इनसाइट) भी जरूरी है। विवेक और आत्मनिरीक्षण से ही सच्चाई को देख सकते हैं।

शिव की जटाएं न केवल सौंदर्य का प्रतीक हैं, बल्कि तपस्या और साधना की पहचान हैं। शिव की जटाओं से ही गंगा का अवतरण हुआ है। यह दर्शाता है कि तप और साधना से कोई भी शक्ति नियंत्रित किया जा सकता है। जटाएं दर्शाती हैं कि ऊर्जा को भीतर संचित करना और बाहर की भौतिकता से विलग रहना ही साधना का मार्ग है। आत्मसंयम और एकाग्रता ही मानसिक शांति और सफलता की कुंजी है।

शिव का पूरा शरीर भस्म से लिप्त होता है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है। भस्म मृत्यु और क्षणभंगुरता का प्रतीक है। यह स्मरण कराता है कि शरीर नश्वर है। भस्म से शिव यह दर्शाते हैं कि संसार की कोई भी वस्तु स्थायी नहीं है। वास्तविकता आत्मा है, शेष सब माया। अहंकार, लोभ, मोह- सब भस्म हो जाते हैं। जीवन में विनम्रता और वैराग्य आवश्यक है।

शिव को प्रायः बाघ की खाल पहने हुए दर्शाया जाता है। बाघ शक्ति और क्रूरता का प्रतीक है। शिव उसका वस्त्र पहनकर यह दर्शाते हैं कि वे प्रकृति की सबसे विकराल शक्ति को भी अपने अधीन कर सकते हैं। यह संकेत है कि जब साधक आत्मज्ञान प्राप्त करता है, तो प्रकृति की समस्त शक्तियां उसके अधीन हो जाती हैं। निर्भयता और आत्मबल से ही व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सकता है।

शिव के गले में रूद्राक्ष की माला रहता है। इसका प्रयोग ध्यान, जप और साधना के लिए किया जाता है। रूद्राक्ष शिव के आंसुओं से उत्पन्न हुआ माना जाता है और इसे धारण करने से शिव की कृपा प्राप्त होती है। रूद्राक्ष आत्म-संयम, ध्यान और उच्च ऊर्जा का संकेतमात्र है। एकाग्रता और सतत साधना से ही आत्मोन्नति संभव है।

भगवान शिव के आभूषण केवल श्रृंगार की वस्तुएं नहीं हैं। वे मानव जीवन के गूढ़ सत्य, ब्रह्मांडीय रहस्य और आत्मोन्नति की कुंजी हैं। प्रत्येक प्रतीक भीतर झांकने, मन को नियंत्रित करने और आत्मबोध की दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। शिव के रूप में वह गुरु प्राप्त होता है जो धर्म, विवेक, संयम, ध्यान और साहस का मार्ग दिखाता है।



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