केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के लिए परीक्षा शुल्क में वृद्धि करने का फैसला लिया है। अब भारत में सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों के छात्रों को प्रति विषय 20 रुपये अधिक देने होंगे। इस तरह परीक्षा शुल्क में लगभग 6.66 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। वहीं नेपाल और अन्य विदेशों में स्थित सीबीएसई स्कूलों के लिए यह बढ़ोतरी 10% प्रति विषय होगी।
सिर्फ थ्योरी ही नहीं, प्रैक्टिकल परीक्षाओं के शुल्क में भी संशोधन किया गया है। पहले जहां प्रति विषय 300 रुपये शुल्क था, अब इसमें 10 रुपये की वृद्धि कर दी गई है। इसका सीधा असर साइंस, कंप्यूटर साइंस और अन्य प्रैक्टिकल आधारित विषय पढ़ने वाले छात्रों पर पड़ेगा।
पहले एक विषय के लिए छात्र 300 रुपये परीक्षा शुल्क देते थे। उदाहरण के लिए, यदि किसी छात्र ने पांच विषय लिए हैं, तो उसे 1500 रुपये शुल्क देना पड़ता था। अब उसी स्थिति में यह राशि बढ़कर 1600 रुपये हो जाएगी। प्रैक्टिकल विषय जोड़ने पर यह खर्च और बढ़ जाएगा।
नेपाल और विदेशों में स्थित सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों के छात्रों के लिए शुल्क बढ़ोतरी का प्रतिशत अधिक रखा गया है। यहां प्रति विषय 10% की बढ़ोतरी होगी। यह निर्णय उन अभिभावकों के लिए आर्थिक रूप से अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिनके बच्चे विदेश में पढ़ते हैं।
सीबीएसई ने इस वर्ष से एक और महत्वपूर्ण बदलाव किया है। अब नौवीं और 11वीं कक्षा के रजिस्ट्रेशन तथा 10वीं से 12वीं तक की एलओसी (List of Candidates) में छात्रों की अपार आईडी को अनिवार्य रूप से लिंक करना होगा। अपार आईडी (APAAR ID) एक यूनिक डिजिटल पहचान है, जिसके माध्यम से छात्र की शैक्षणिक जानकारी को राष्ट्रीय स्तर पर रिकॉर्ड और ट्रैक किया जा सकता है। बोर्ड का मानना है कि इससे डेटा मैनेजमेंट आसान होगा और पारदर्शिता बढ़ेगी।
बोर्ड ने इस बढ़ोतरी के पीछे परीक्षा संचालन में आने वाले बढ़ते खर्च का हवाला दिया है, जिसमें परीक्षा केंद्रों की व्यवस्था, प्रश्नपत्र प्रिंटिंग, मूल्यांकन और डिजिटल रिकॉर्ड मैनेजमेंट शामिल है। कई अभिभावकों और छात्रों ने इस कदम पर चिंता व्यक्त किया है। उनका कहना है कि पहले ही शिक्षा खर्च लगातार बढ़ रहा है और अब परीक्षा शुल्क में बढ़ोतरी से यह बोझ और बढ़ जाएगा।
सीबीएसई का यह कदम प्रशासनिक दृष्टि से जरूरी हो सकता है, लेकिन इसका आर्थिक असर छात्रों और अभिभावकों को महसूस होगा। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह बदलाव परीक्षा संचालन को और अधिक सुव्यवस्थित करता है या फिर यह सिर्फ जेब पर बढ़ते बोझ के रूप में सामने आता है।
