आभा सिन्हा, पटना
भारत भूमि देवी-देवताओं की अनेक लीलाओं, रहस्यों और आस्थाओं की अमूल्य थाती रही है। असम के कामाख्या मंदिर के बाद भारत ही नहीं, दुनिया भर में दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ मंदिर है मां छिन्नमस्तिका का, जो झारखंड के रामगढ़ जिले के रजरप्पा में स्थित है। जनश्रुति है कि यहां मां स्वयं भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। देवी का यह रूप अत्यंत विचित्र, रहस्यमय और तांत्रिक शक्तियों से परिपूर्ण है। यह मंदिर न केवल भक्तों की श्रद्धा का केन्द्र है, बल्कि इतिहास, पुराण, संस्कृति और अध्यात्म का अद्वितीय संगम भी है।
रजरप्पा में स्थित यह मंदिर नवरात्रि, महाशिवरात्रि, और अन्य देवी पर्वों पर हजारों-लाखों श्रद्धालुओं से भर जाता है। मां का यह रूप, जहां वे स्वयं अपना मस्तक काटे हुए हैं और रक्त की धाराएं उनकी दो सखियों को पिलाती हैं, भारतीय देवी स्वरूपों में सबसे अनूठा और तांत्रिक माना जाता है। छिन्नमस्तिका का यह रूप हमें जीवन, मृत्यु, बलिदान, परोपकार और आत्मसंयम का एक गहरा संदेश देता है।
पौराणिक कथाओं में वर्णित इस रूप की उत्पत्ति अत्यंत भावुक और अलौकिक कथा से जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बार मां भगवती अपनी दो सखियों, जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गई थी। स्नान के बाद उनकी सहेलियों को तीव्र भूख लगी और उन्होंने मां से भोजन की मांग की। मां ने उन्हें थोड़ी प्रतीक्षा करने को कहा, परंतु भूख से व्याकुल जया-विजया व्यथित हो उठी। मां से अपनी सखियों की पीड़ा देखी नहीं गई और उन्होंने अपने शरीर का बलिदान देते हुए स्वयं का सिर काट डाला। उनके गले से तीन धाराएं रक्त की निकली, जिनमें से दो सखियों की ओर बहने लगीं और तीसरी स्वयं माता द्वारा पान की गई। इसी चमत्कारिक और आत्मबलिदानी रूप के कारण माता का नाम पड़ा “छिन्नमस्तिका”। यानि जिनका सिर छिन्न है। यह शक्ति न केवल बाह्य, बल्कि आंतरिक जागरण की प्रतीक है।
इस मंदिर की स्थापना की कथा को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ इसे 6000 वर्ष पुराना बताते हैं, तो कुछ इसे महाभारतकालीन मानते हैं। यह मंदिर केवल शक्ति का केंद्र नहीं है, बल्कि तांत्रिक साधकों के लिए सिद्धिपीठ भी माना जाता है। भारत भर से साधक, योगी और तांत्रिक यहां साधना के लिए आते हैं। खासकर नवरात्रों में रजरप्पा में श्रद्धालुओं का विशाल सैलाब उमड़ पड़ता है। जो भक्त यहां सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, कहते हैं कि मां उन्हें निराश नहीं करती हैं।
छिन्नमस्तिका देवी का यह मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर दूर और रामगढ़ से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर भैरवी और दामोदर नदियों के संगम पर स्थित है, जो स्वयं में एक अद्भुत प्राकृतिक दृश्य प्रस्तुत करता है। संगम स्थल पर जब भैरवी नदी की कलकल ध्वनि दामोदर में मिलती है, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो देवियों का मधुर राग प्रवाहित हो रहा हो। यह स्थान जहां एक ओर आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र है, वहीं इसकी भौगोलिक सुंदरता भी मन मोह लेती है।
मंदिर में स्थापित देवी की प्रतिमा अत्यंत विशिष्ट है। मां छिन्नमस्तिका का मस्तक उनके हाथों में है, और उनकी गर्दन से निकलती रक्त की धाराएं उनकी दोनों सहायिकाओं, जया और विजया की ओर जाती हैं, जो उनकी दोनों ओर खड़ी रहती हैं। यह मूर्ति भावनात्मक रूप से इतनी गूढ़ है कि दर्शक विस्मय और श्रद्धा से भर जाता है। यह प्रतिमा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण भी है।
मंदिर की उत्तरी दीवार पर एक शिलाखंड रखा गया है, जिस पर देवी का दक्षिणमुखी दिव्य रूप अंकित है। यह भी माना जाता है कि इस शिलालेख पर देवी की मूर्ति स्वयंभू रूप में प्रकट हुई थी। मंदिर का निर्माण वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार अत्यंत प्राचीन शैली में हुआ है। यहां तांत्रिक पूजा पद्धति के अनुसार, बलिप्रथा की परंपरा भी प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसमें बकरों की बलि दी जाती है। हालांकि अब इस परंपरा को सीमित किया गया है, फिर भी विशेष अवसरों पर आज भी यह अनुष्ठान सम्पन्न होता है।
रजरप्पा केवल छिन्नमस्तिका मंदिर के कारण प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यहां कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी स्थित हैं। यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर जैसे सात प्रमुख मंदिरों का समुच्चय है। इस कारण रजरप्पा एक धार्मिक परिसर के रूप में विकसित हो गया है, जो संपूर्ण आध्यात्मिक यात्रा का केंद्र बन गया है।
छिन्नमस्तिका मंदिर का एक विशेष आकर्षण इसकी तांत्रिक महत्ता है। यह मंदिर दस महाविद्याओं में से एक देवी को समर्पित है। दस महाविद्याएं तंत्र साधना की दस प्रमुख शक्तियां हैं, और छिन्नमस्तिका उनमें से एक अत्यंत जागृत, उग्र और रहस्यमयी रूप माना जाता है। मान्यता है कि तंत्र साधक यहां विशेष अनुष्ठान करके दिव्य सिद्धियां प्राप्त करते हैं। यह स्थल साधकों के लिए एक दिव्य प्रयोगशाला के समान है।
छिन्नमस्तिका मंदिर नारी शक्ति का अद्वितीय प्रतीक है। यह मंदिर यह सिखाता है कि नारी केवल ममता और करुणा की प्रतिमूर्ति नहीं है, बल्कि जब समय आए, तो वह बलिदान, परोपकार, आत्मबल और वीरता का भी सर्वोच्च रूप धारण कर सकती है। यह देवी का रूप सामाजिक संदेश भी देता है कि जब समाज भूखा, पीड़ित और कष्ट में हो, तब स्वयं का त्याग कर जनकल्याण की राह पर चलना ही सच्चा धर्म है।
मंदिर की व्यवस्था और प्रबंधन भी बहुत व्यवस्थित है। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए विश्राम गृह, पूजा सामग्री की दुकानें, जलपान गृह आदि उपलब्ध हैं। झारखंड सरकार तथा मंदिर न्यास समिति मिलकर यहां सुविधाओं का विकास कर रही है। विशेष पर्वों पर प्रशासन द्वारा सुरक्षा, चिकित्सा और साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था किया जाता है। आने-जाने के लिए सड़कें, बस सेवा, और स्थानीय यातायात की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
यहां तक कि भारत के कोने-कोने से लोग अपनी मनोकामना पूरी कराने आते हैं। विवाह में देरी हो, संतान की कामना हो, नौकरी, धन, आरोग्य या मानसिक शांति की चाह, हर मुराद मां छिन्नमस्तिका के दरबार में पूरी होती है, यह विश्वास श्रद्धालुओं के मन में गहराई से बैठा है। यही कारण है कि यहां हर वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
रजरप्पा का यह शक्तिपीठ केवल आस्था का केन्द्र नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, दर्शन, अध्यात्म और लोक मान्यताओं का जीवंत उदाहरण है। यह मंदिर यह सिद्ध करता है कि भारत की भूमि आज भी चमत्कारों, रहस्यों और दिव्यता से भरी हुई है। छिन्नमस्तिका देवी का यह मंदिर आधुनिक युग में भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना वह सहस्त्राब्दियों पहले था। यह मंदिर आने वाले पीढ़ियों को यह संदेश देता रहेगा कि नारी शक्ति के बिना धर्म, संस्कृति और समाज अधूरा है।
जो भी व्यक्ति रजरप्पा जाकर मां छिन्नमस्तिका के चरणों में शीश नवाता है, वह यह अनुभव करता है कि एक अदृश्य शक्ति उसे स्पर्श कर गई है। वहां की वायुमंडल में जो ऊर्जा है, वह भक्त के रोम-रोम को जागृत कर देता है। देवी की यह उपस्थिति हर कण-कण में महसूस होता है। ऐसे चमत्कारी, रहस्यमयी, और ऐतिहासिक मंदिर पर केवल गर्व ही नहीं, अपितु ध्यान और ध्यानावस्था में प्रवेश करने का अनुभव भी होता है।
