भारत सरकार ऊर्जा आयात पर निर्भरता घटाने और पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदार रुख अपनाने के तहत पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने की नीति को तेज़ी से लागू कर रही है। देशभर में अब ई10 (10% एथेनॉल मिश्रित) से बढ़कर ई20 (20% एथेनॉल मिश्रित) पेट्रोल की ओर कदम बढ़ाया जा चुका है और अगले लक्ष्य ई27 तक जाने की तैयारी है।
लेकिन जैसे-जैसे सरकार एथेनॉल की मात्रा बढ़ा रही है, वैसे-वैसे गाड़ियों के मालिकों के बीच भ्रम, चिंता और विरोध की स्थिति बनती जा रही है। एक हालिया सर्वे के अनुसार, दो-तिहाई वाहन मालिक ई20 को अनिवार्य बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे माइलेज घटा है, इंजन को नुकसान हो सकता है और मरम्मत का खर्च भी बढ़ा है।
तो क्या वाकई एथेनॉल मिला पेट्रोल वाहन मालिकों के लिए सिरदर्द बन गया है? या फिर यह परिवर्तन भविष्य के लिए जरूरी एक कदम है जिसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए?
भारत सरकार के 'एथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम' के तहत पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने की नीति लागू की गई है। इसका मुख्य उद्देश्य है पेट्रोलियम आयात पर निर्भरता घटाना, गन्ना किसानों को नया बाजार देना, कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना। ई10 यानि पेट्रोल में 10% एथेनॉल, ई20 यानि 20% एथेनॉल, ई27 यानि 27% एथेनॉल। 2025 तक सरकार का लक्ष्य है कि देशभर में पूरी तरह से ई20 पेट्रोल लागू हो जाए। कई ऑटो कंपनियां भी ई20- कम्प्लायंट गाड़ियां लॉन्च कर चुकी हैं।
लोकल सर्किल्स नामक एजेंसी द्वारा किए गए एक सर्वे में चौकाने वाले नतीजे सामने आए। प्रमुख निष्कर्ष है कि 66% वाहन मालिकों ने कहा है कि ई20 को अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। 44% वाहन मालिक चाहते हैं कि सरकार ई20 को वापस ले। 22% लोगों की राय है कि उपभोक्ताओं को ई0, ई10, और ई20 चुनने का विकल्प मिलना चाहिए। माइलेज में 1 से 5% तक की कमी की बात कई लोगों ने कही है। कई लोगों को वॉरंटी समाप्त होने का डर भी है क्योंकि उनके वाहन सिर्फ ई10 के लिए डिज़ाइन किया गया है।
इंजीनियरिंग और ऑटोमोबाइल विशेषज्ञों का मानना है कि एथेनॉल मिले पेट्रोल का इंजन पर असर इस बात पर निर्भर करता है कि वह वाहन ई20 के लिए डिज़ाइन किया गया है या नहीं। 2023 से पहले की गाड़ियों में ई20 को लेकर बदलाव नहीं हुए हैं। ई20 का लगातार उपयोग रबर, प्लास्टिक और एलुमिनियम पार्ट्स को नुकसान पहुंचा सकता है। इंजन में जंग लगने की आशंका। गाड़ी की परफॉर्मेंस और माइलेज में गिरावट। मेंटेनेंस खर्च में इजाफा होगा।
2023 के बाद के अधिकांश नए मॉडल्स ई20 कम्प्लायंट हैं। इनमें इंजन, फ्यूल सिस्टम और गैसकेट में आवश्यक सुधार किए गए हैं। कुछ कंपनियों ने ई85 तक कम्प्लायंट वाहन भी तैयार कर लिए हैं (अमेरिका में प्रचलित)।
सरकार का कहना है कि एथेनॉल की एनर्जी डेंसिटी पेट्रोल से कम होती है, इसलिए माइलेज में 1-2% की मामूली कमी आ सकती है। पुराने इंजन में यह कमी 3-6% तक हो सकती है। ई20 कम्प्लायंट इंजन में माइलेज लगभग समान रहता है। लेकिन कई लोग 5-10% तक माइलेज घटने की बात कर रहे हैं। कुछ मामलों में माइलेज में 15% तक गिरावट बताई गई है। इसका सीधा असर जेब पर पड़ता है।
एथेनॉल की रासायनिक प्रकृति ऐसी है कि यह हाईड्रोस्कोपिक होता है यानि हवा से नमी खींचता है। इससे फ्यूल लाइन में पानी आ सकता है और जंग लग सकता है। ई20 पेट्रोल से कार्बोरेटर, फ्यूल पंप, गैसकेट और अन्य हिस्से जल्दी खराब हो सकते हैं। पुराने वाहनों में 30,000 किमी के बाद रिप्लेसमेंट की जरूरत हो सकती है। इन सब कारणों से वाहन मालिकों को लगता है कि मेंटेनेंस कॉस्ट बढ़ रही है। इंजन की लाइफ घट रही है। वॉरंटी पर क्लेरिटी नहीं है।
वाहन निर्माता कंपनियों के अधिकांश यूजर मैनुअल में लिखा होता है कि वाहन केवल E10 पेट्रोल के लिए डिजाइन किया गया है। अब अगर उसमें ई20 भरवा रहे हैं तो कई सवाल खड़े होते हैं, क्या वॉरंटी वैलिड रहेगी? क्या इंजन फेल होने पर कंपनी जिम्मेदार होगी? क्या ग्राहकों को इसकी जानकारी दी गई? सरकार और कंपनियों को इस पर स्पष्ट नीति बनानी होगी जिससे ग्राहकों की चिंता दूर हो सके।
सरकार का एक बड़ा तर्क यह है कि एथेनॉल मिला पेट्रोल देश की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद है और इसे सस्ता मिलना चाहिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि फिलहाल ई10, ई20 और रेगुलर पेट्रोल की कीमतें लगभग समान हैं। ग्राहकों को कोई प्रत्यक्ष छूट या बेनिफिट नहीं मिल रहा है। माइलेज घटने के बाद प्रतिलीटर खर्च बढ़ रहा है। ऐसे में वाहन मालिक पूछ रहे हैं कि अगर माइलेज घट रहा है, इंजन को खतरा है और कीमत में कोई अंतर नहीं है तो फायदा क्या है?
अमेरिका, ब्राजील और यूरोप में एथेनॉल मिक्स्ड फ्यूल का उपयोग दशकों से हो रहा है। ब्राजील में ई85 तक का फ्यूल बहुत आम है, गाड़ियां फ्लेक्स-फ्यूल टेक्नोलॉजी के साथ आती हैं, पेट्रोल से सस्ता मिलता है एथेनॉल। अमेरिका में कई स्टेट्स में ई15 और ई85 का इस्तेमाल होता है, फ्यूल स्टेशनों पर ग्राहक को विकल्प मिलता है कि वह कौन सा फ्यूल भरे, ई85 केवल उन्हीं गाड़ियों में भरा जा सकता है जो उसके लिए डिजाइन की गई हैं। भारत में भी इसी मॉडल को अपनाने की मांग उठ रही है।
वाहन निर्माता कंपनियों के सामने दोहरी चुनौती है, पुराने मॉडल्स में बदलाव कैसे लाएं? नए मॉडल्स को कैसे ई27 या उससे ऊपर के लिए तैयार करें? कुछ कंपनियां ई20 कम्प्लायंट मॉडल्स लॉन्च कर चुकी हैं। कई कंपनियां फ्लेक्स फ्यूल टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं। लेकिन उनकी बड़ी चिंता यह है कि जबतक पेट्रोल का अलग-अलग ग्रेड नहीं मिलेगा, ग्राहक नाराज रहेंगे।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार देश की पेट्रोलियम आयात लागत घटेगी। गन्ना किसानों को बेहतर आमदनी मिलेगी। कार्बन उत्सर्जन घटेगा। ई20 से प्रदूषण कम होगा। इंजनों को कोई स्थायी नुकसान नहीं होता। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एथेनॉल जलने पर CO₂ का उत्सर्जन कम होता है। पेट्रोल की तुलना में एथेनॉल जैविक और नवीकरणीय है। ब्लेंडिंग के बाद भी पावर, टॉर्क पर असर नगण्य है।
इस पूरे विवाद को देखते हुए कुछ संभावित समाधान सामने आता है कि पंप पर ई0, ई10, और ई20 उपलब्ध हों। ग्राहक अपनी गाड़ी के मुताबिक फ्यूल चुन सकें। वॉरंटी और इंजन सुरक्षा पर दिशानिर्देश जारी हों। पेट्रोल पंप पर फ्यूल के प्रकार और उपयोग से जुड़ी जानकारी चस्पा हो। यदि एथेनॉल से वाहन को नुकसान हुआ तो मुआवजा कैसे मिलेगा? एथेनॉल मिला पेट्रोल सस्ता हो ताकि ग्राहक को राहत मिले।
भारत का ऊर्जा भविष्य निश्चित रूप से जैव ईंधन की ओर बढ़ रहा है। सरकार की नीति दूरदर्शी है और इसका पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक लाभ भी है। लेकिन किसी भी बदलाव को लागू करने के लिए जनभागीदारी, पारदर्शिता और तकनीकी सुदृढ़ता आवश्यक होती है। ई20 या ई27 जैसे मिश्रित ईंधन को लागू करने से पहले सरकार को चाहिए कि वह ग्राहकों की चिंता दूर करे, कंपनियों को दिशा-निर्देश दे और जनजागरूकता फैलाए।
