जंगलों की हरी-भरी शाखाओं के बीच, जब रात का सन्नाटा छा जाता है, तभी एक नन्हीं और प्यारी सी उड़न गिलहरी अपने पंखों जैसी झिल्ली फैलाकर पेड़ों के बीच हवा में तैरने लगती है। यह है “जापानी ड्वार्फ फ्लाइंग स्क्विरल”, जिसे जापानी भाषा में निहोन मोमोंगा कहा जाता है। अपनी क्यूटनेस और फुर्ती के लिए मशहूर यह गिलहरी जापान के होन्शू और क्यूशू द्वीपों के सब-अल्पाइन और सदाबहार (एवरग्रीन) जंगलों की शान है।
“जापानी ड्वार्फ फ्लाइंग स्क्विरल” का शरीर सिर्फ 14-20 सेंटीमीटर लंबा होता है, जबकि इसकी पूंछ 10-14 सेंटीमीटर तक होती है। वजन महज 150 से 220 ग्राम होने के बावजूद इसकी ताकत और उड़ने की क्षमता अद्भुत है। इसका फर भूरा-स्लेटी रंग का होता है और पेट का हिस्सा चमकीला सफेद, जिससे यह पेड़ों की छाल के साथ घुल-मिल जाती है। यह प्राकृतिक छद्मावरण (कैमोफ्लाज) इसे बाज, उल्लू और अन्य शिकारी जानवरों से बचाता है।
इसके अगले और पिछले पैरों के बीच की खास त्वचा की झिल्ली को पैटैजियम कहते हैं। यही इसकी असली “पैराशूट” है। जब यह गिलहरी एक पेड़ से दूसरे पेड़ की ओर छलांग लगाती है, तो पैटैजियम फैलाकर हवा में ग्लाइड करती है और 100 मीटर तक का सफर तय कर सकती है। उड़ते समय यह अपनी पूंछ का इस्तेमाल स्टीयरिंग की तरह करती है, जिससे दिशा और गति पर नियंत्रण बना रहता है।
यह गिलहरी पूरी तरह निशाचर है। दिन में यह पेड़ों के खोखलों या घोंसलों में आराम करती है और रात में भोजन की तलाश में निकलती है। इसका आहार मुख्य रूप से पेड़ों की छाल, पत्तियां, फल, बीज और कभी-कभी कीड़े-मकोड़ों से बनता है। इसकी बड़ी-बड़ी गोल काली आंखें अंधेरे में देखने के लिए अनुकूलित हैं, जो इसे और भी प्यारा बनाती हैं।
“जापानी ड्वार्फ फ्लाइंग स्क्विरल” अक्सर अकेली रहती है, लेकिन प्रजनन के समय नर और मादा साथ आते हैं। मादा साल में एक से दो बार 2-4 बच्चों को जन्म देती है। बच्चे जन्म के समय बेहद छोटे और कमजोर होते हैं, लेकिन माँ की देखभाल और सुरक्षा में तेजी से बड़े होते हैं।
यह गिलहरी जापान के जंगलों में आम तौर पर पाई जाती है, लेकिन वनों की कटाई और शहरीकरण के कारण इसका आवास (हैबिटैट) खतरे में है। जापान में इसे सांस्कृतिक रूप से भी प्यारा और शुभ माना जाता है। कई कार्टून, खिलौनों और पेंटिंग्स में इसकी तस्वीरें देखा जा सकता है।
“जापानी ड्वार्फ फ्लाइंग स्क्विरल” सिर्फ एक वन्यजीव नहीं है, बल्कि प्रकृति की नन्हीं कलाकृति है, जो याद दिलाता है कि जंगलों की रक्षा केवल जानवरों के लिए नहीं, बल्कि धरती के संतुलन के लिए भी जरूरी है। यह नन्हीं “उड़न परी” सिखाती है कि आकार छोटा हो सकता है, लेकिन सपनों और उड़ानों की कोई सीमा नहीं होती है।
