आभा सिन्हा, पटना
हिंदू धर्म में भगवान शिव को संहारक नहीं, बल्कि कल्याणकारी देवता माना गया है। वे आशुतोष हैं अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले। उनके प्रसन्न होने की सबसे प्रभावशाली और शास्त्रसम्मत विधि है “रुद्राभिषेक”। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसे करते ही नकारात्मक ऊर्जा का विनाश होता है और जीवन में सकारात्मकता का प्रवेश होता है। “रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्र:” यह मंत्र बताता है कि रुद्र अर्थात शिव वह शक्ति हैं जो समस्त दुःखों का नाश कर देता है।
वेदों और उपनिषदों में रुद्र और शिव एक ही शक्ति के विभिन्न रूप हैं। रुद्र का अर्थ है क्रोधी, विकराल, लेकिन यह विकरालता अधर्म के विरुद्ध होता है। वहीं शिव का अर्थ है शुभ, मंगल, करुणामयी। इसीलिए शिव को रुद्र भी कहा जाता है। "सर्वदेवात्मको रुद्रः सर्वे देवा: शिवात्मका:" सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र का वास है।
रुद्राभिषेक का शाब्दिक अर्थ होता है ‘रुद्र’ का अभिषेक, अर्थात शिवलिंग पर विशेष वैदिक मंत्रों के साथ विविध पवित्र द्रव्यों से स्नान कराना। यह साधना ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद तीनों में वर्णित है।
रुद्राभिषेक एक अत्यंत पवित्र प्रक्रिया है जो न केवल हमारे पापों का नष्ट करता है, बल्कि जीवन में आने वाला सभी बाधाओं को भी दूर करता है।
वेदों में कहा गया है कि रुद्राभिषेक करने से समस्त पाप नष्ट होता है, नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होता है, जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है, व्यक्ति के मनोरथ पूर्ण होता है, आत्मा में शिवत्व का जागरण होता है।
एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में यह विवाद हो गया था कि इनमें से श्रेष्ठ कौन है। तब ब्रह्मांड में एक तेजस्वी अनंत अग्नि-स्तंभ प्रकट हुआ। वह लिंग स्वरूप में था। दोनों देवता उसके आदि-अंत का पता लगाने निकले पर असफल रहे। तब उन्होंने उस दिव्य स्तंभ का अभिषेक कर विनम्रता पूर्वक प्रार्थना किया। तभी भगवान रुद्र प्रकट हुए और बोले "मैं ही आदि और अंत हूं।" यही पहला रुद्राभिषेक माना गया।
हमारे जीवन में जो कष्ट है, वह हमारे ही पापों और गलत कर्मों का फल होता है। रुद्राभिषेक एक ऐसा साधन है जिससे अपने पूर्वकर्मों के प्रभाव को समाप्त कर सकते हैं। अर्थात रुद्राभिषेक = आत्मशुद्धि + पाप क्षालन + शिव की कृपा प्राप्ति।
रुद्राभिषेक कभी भी किया जा सकता है, लेकिन कुछ विशेष दिन अत्यंत फलदायी माना गया हैं। वह दिन है सोमवार (विशेषतः सावन का), त्रयोदशी तिथि, प्रदोष काल, महाशिवरात्रि और श्रावण मास। श्रावण मास में प्रत्येक दिन रुद्राभिषेक अद्भुत फलदायी होता है।
रुद्राभिषेक की आवश्यक सामग्री में शामिल है शिवलिंग (पारद या पाषाण), पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर), शुद्ध जल / गंगाजल, बेल पत्र, धतूरा, आक, श्रृंगी / कलश, कुशा जल, विविध अभिषेक द्रव्य (जैसे दही, तिल, शहद, घी, फलरस आदि), मंत्रों की पुस्तक या ब्राह्मण।
रुद्राभिषेक विधि (संक्षिप्त रूप) है शिवलिंग को स्वच्छ जल से धोकर स्थापित करना, मन में ‘शिव’ के किसी स्वरूप का ध्यान करना, अभिषेक पात्र में द्रव्य भरना और कुमकुम एव मौली से शुद्ध करना, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय या रुद्राष्टाध्यायी का जाप करते हुए अभिषेक करना, अभिषेक के पश्चात जल से पुनः स्नान कराना, फूल, बिल्वपत्र, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पण करना और अंत में शिवाष्टक, शिवमहिम्न स्तोत्र या महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना।
शिव पुराण एव अन्य ग्रंथों में वर्णित है कि रुद्राभिषेक किस वस्तु से करने पर कौन सा फल मिलता है। जल से रुद्राभिषेक करने पर सर्वदोष नाश, मानसिक शांति मिलता है, मंत्र है “ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा”। दूध से रुद्राभिषेक करने पर शिव की कृपा, जीवन में शांति एव संतुलन का लाभ मिलता है, मंत्र है “ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम:”। दही से रुद्राभिषेक करने पर वाहन सुख, आराम एव स्थायित्व का लाभ मिलता है, मंत्र है “ॐ ह्रीं नम: शिवाय”। घी से रुद्राभिषेक करने पर रोग निवारण, दीर्घायु होने का लाभ मिलता है, मंत्र है “ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा”। शहद से रुद्राभिषेक करने पर संतान प्राप्ति, गृहस्थ सुख का लाभ मिलता है, मंत्र है “ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा”। गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करने पर आर्थिक समृद्धि, ऋण मुक्ति का लाभ मिलता है, मंत्र है “ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा”। सरसों के तेल से रुद्राभिषेक करने पर ग्रह बाधा नाश, शत्रु निवारण का लाभ मिलता है, मंत्र है “ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा”। काले तिल से रुद्राभिषेक करने पर तंत्र-बाधा एव नजर दोष निवारण होता है, मंत्र है “ॐ क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम:”। चने की दाल से रुद्राभिषेक कराने पर कार्य में उन्नति, शुभ आरंभ का फल मिलता है, मंत्र है “ॐ शं शम्भवाय नम:”। कुमकुम, केसर एव हल्दी से रुद्राभिषेक करने पर, आकर्षक व्यक्तित्व, सौंदर्य एव यश का लाभ मिलता है, मंत्र है “ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहा”।
रुद्राभिषेक कई प्रकार के होता है। लघु रुद्र- रुद्राष्टाध्यायी का 11 बार पाठ करने से समस्त कामना पूर्ति का लाभ मिलता है। महा रुद्र- 121 पंडितों द्वारा 11 बार रुद्रपाठ करने से विशेष मनोरथ सिद्धि का लाभ मिलता है। अतिरुद्र- 1331 पंडितों द्वारा 11 बार पाठ करने से महान साधनायें और सिद्धियाँ का लाभ मिलता है।
रुद्राभिषेक करते समय ध्यान देने योग्य बातें हैं, तांबे के पात्र में दूध, दही, पंचामृत नहीं रखना चाहिए, शिवलिंग पर सीधा केसर या सिंदूर न चढ़ाना चाहिए, अभिषेक करते समय जल की पतली धारा होना चाहिए, मानसिक एकाग्रता और श्रद्धा अत्यंत आवश्यक होता है।
यदि योग्य ब्राह्मण उपलब्ध हों तो रुद्राभिषेक ब्राह्मण द्वारा ही कराना चाहिए। यदि न हो तो थोड़े संस्कृत ज्ञान के साथ भक्त स्वयं भी कर सकते हैं। शिवमहिम्न स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र, रुद्राष्टक।
रुद्राभिषेक के लिए प्रभावशाली शिव मंत्र है, पंचाक्षरी मंत्र- ॐ नमः शिवाय, महामृत्युंजय मंत्र- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे……,रुद्र गायत्री मंत्र- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे…, अघोर मंत्र- ॐ नमो भगवते रुद्राय।
रुद्राभिषेक कोई मात्र कर्मकांड नहीं है। यह आत्मा को शुद्ध करने, पुराने पापों से मुक्त होने, और शिव के शुभाशीर्वाद को पाने की विधि है।
जब पूर्ण श्रद्धा और भाव से "ॐ नमः शिवाय" का जाप करते हुए जल, दूध या अन्य द्रव्यों से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, तो न केवल शिव की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि स्वयं में शिवत्व का उदय होता है।
