काल, दिशा, मृत्यु, भय और भटकाव से रक्षा करने वाले देवता हैं - “काल भैरव”

Jitendra Kumar Sinha
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भारत भूमि आध्यात्मिकता, रहस्यों और लोकमान्य आस्थाओं की सजीव प्रयोगशाला रही है। ऐसी ही एक रहस्यमयी, चमत्कारी और भक्तिपूर्ण कथा है उज्जैन नगरी के श्री कालभैरव मंदिर की। यह केवल एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि लोक और परलोक के बीच के अंतर को मिटा देने वाला स्थान है, जहां शिव का एक रूप "काल" बनकर स्वयं प्रकट होता है। यहां भक्तों की भक्ति और विश्वास के सामने विज्ञान भी मौन खड़ा हो जाता है।

नारद मुनि और पवनपुत्र हनुमान, अनेक नगरों की यात्रा करते हुए मालवा क्षेत्र में अवस्थित अवंतिकापुरी पहुँचे, जिसे आज हम उज्जैन के नाम से जानते हैं। इस पवित्र नगरी को शिप्रा नदी अपने आंचल में समेटे हुए है, और यहीं स्थित है “महाकालेश्वर” बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक।

जैसे ही वे उज्जैन के श्री कालभैरव मंदिर पहुंचे, वहां का वातावरण आध्यात्मिक रस में डूबा हुआ था। आरती का समय था। 33 दीपों की आरती, तीन पंक्तियों में 11-11 दीप,  समर्पण, श्रद्धा और दिव्यता का अद्वितीय संगम था। भक्तों की भक्ति, तालियों की गूंज और वाद्ययंत्रों की ध्वनि ने पूरे मंदिर परिसर को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया था।

हनुमान और नारद उस दिव्यता से इतने प्रभावित हुए कि मंदिर के एक कोने में बैठकर ध्यान करने लगे। लेकिन उनका ध्यान सिर्फ साधना के लिए नहीं था, वे उस रहस्य को समझना चाहते थे, जो कालभैरव के इस स्वरूप को विशिष्ट बनाता है।

ध्यानमग्न अवस्था में उन्होंने देखा कि भक्तगण भगवान कालभैरव को मद्य अर्पित कर रहे हैं। यह परंपरा अन्य किसी भी मंदिर में नहीं देखी जाती है। हर भक्त अपने साथ लाया हुआ मद्य भगवान के कपालपात्र में अर्पित करता है। हैरानी की बात यह थी कि भगवान उस मद्य को तुरंत ग्रहण कर लेते थे, दो तिहाई भाग कुछ ही क्षणों में लुप्त हो जाता था।

नारद मुनि इस परंपरा को देखकर विस्मित हो गए। उन्होंने हनुमान जी से पूछा कि “क्या ये देवता सिर्फ मद्य का ही पान करते हैं?” हनुमान जी ने उत्तर दिया कि "इन्हें महाकाल का एक रौद्र रूप समझो। ये मृत्यु के देवता हैं, जिन पर श्मशान भैरवी अदृश्य रूप से सवार रहती हैं। यह देवता न केवल मद्य, अपितु प्रत्येक प्राणी के रक्त आदि सप्तधातुओं का भी पान करते हैं।"

नारद जी संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने कहा कि “क्या कोई सात्विक पदार्थ भैरव को अर्पित नहीं किया जा सकता?” हनुमान जी ने कहा कि पुजारी से अनुमति लेकर प्रयास करें।

नारद जी ने अपनी दिव्य शक्ति से तुरंत एक थाल में फलों, मेवों और मिष्ठानों को उत्पन्न किया और उसे अर्पित करने का प्रयास किया। लेकिन कालभैरव ने एक कण भी स्वीकार नहीं किया। वही हाल तब भी हुआ जब नारद जी ने गंगाजल और तुलसीदल अर्पित किए, कुछ भी स्वीकार नहीं हुआ। नारद मुनि हताश हो गए। एक महर्षि, एक ब्रह्मर्षि, देवों के गायक जब असफल हो जाएं, तो वह पीड़ा ईश्वर भी समझ सकते हैं।

हनुमान जी ने अर्धरात्रि के समय नारद जी को निर्देश दिया कि वे एक स्वर्णपात्र में गंगाजल और तुलसीदल लाएं। जब नारद जी लौटे, तब हनुमान जी ने उस जल को भैरव मंत्रों से अभिमंत्रित करना आरंभ किया। मंत्रों की शक्ति से गंगाजल का रंग धीरे-धीरे बदलने लगा और अंततः वह मद्यार्क के रूप में परिवर्तित हो गया।

हनुमान जी ने उसी मंत्रोच्चार के साथ यह जल कालभैरव के कपालपात्र में अर्पित किया। और तब जो हुआ वह चमत्कारी था,  जल को ग्रहण करने की ध्वनि, फिर अग्नि की ज्वाला और अंत में वही पात्र रत्नपात्र में परिवर्तित हो गया, जिसमें अब गंगाजल और तुलसीदल भरे थे।

यह घटना केवल एक चमत्कार नहीं है, एक तंत्र और मंत्र साधना की चरम स्थिति को दर्शाती है। कालभैरव का स्वरूप तामसिक, रौद्र और श्मशान वासी है। यह उन साधकों के लिए है, जो जीवन और मृत्यु के मध्य के रहस्य को समझना चाहते हैं।

कालभैरव संपूर्ण नियंत्रण के देवता हैं, काल, दिशा, मृत्यु, भय और भटकाव से रक्षा करने वाले। उनका पूजन रात्रि में, विशेषकर महाशिवरात्रि की अर्धरात्रि में, विशेष फलदायक माना गया है। भैरव के मंत्रों द्वारा किसी भी पदार्थ को तात्कालिक रूप से रूपांतरित कर देने की यह प्रक्रिया सगुण से निर्गुण की ओर यात्रा का संकेत देती है।

आज के भौतिक विज्ञान के पास वह कसौटी नहीं है, जिससे वह कालभैरव के इस चमत्कार का परीक्षण कर सके। लेकिन जिस प्रकार ऊर्जा, ध्वनि तरंगें, और पदार्थ की स्थिति विज्ञान के लिए भी अब रहस्य बनती जा रही है, ऐसे में यह मान लेना कि कोई अदृश्य शक्ति नहीं है, यह स्वयं विज्ञान की सीमा को नकारना है।

श्री कालभैरव आज भी उज्जैन में मद्यपान करने वाले देवता के रूप में पूजे जाते हैं, लेकिन इस परंपरा के पीछे छिपा तांत्रिक, अलौकिक और दिव्य रहस्य अभी भी उद्घाटित नहीं हो सका है।

आज का युग विज्ञान और तर्क का है, लेकिन भारत की सनातन परंपरा में ऐसे अनगिनत स्थल हैं, जहां श्रद्धा तर्क से ऊपर उठकर दिव्यता को स्पर्श करती है। उज्जैन के श्री कालभैरव मंदिर की यह कथा न केवल भक्ति का परिचायक है, बल्कि यह बताती है कि जब इच्छा सच्ची हो और मंत्र शक्तिशाली हो, तब जल भी मद्य बन सकता है और फिर गंगाजल भी। हनुमान और नारद की यह कथा यह भी दर्शाती है कि हर साधक को समय, विधि और पात्रता के अनुसार ही सिद्धि प्राप्त होती है। यदि कालभैरव की भक्ति सच्चे भाव से की जाए, तो वह हर काल का भय हर लेते हैं और भक्त को निर्भय बना देते हैं।



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