ओडिशा सरकार ने सामाजिक संवेदनशीलता और संवैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। राज्य सरकार ने सभी विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और शैक्षणिक संस्थानों को निर्देश दिया है कि वे अपने सभी आधिकारिक दस्तावेजों, संवादों, अभिलेखों, जाति प्रमाणपत्रों और अन्य सरकारी पत्राचार में ‘हरिजन’ शब्द का उपयोग बंद करें। इसके स्थान पर केवल ‘अनुसूचित जाति’ (Scheduled Caste) शब्द का प्रयोग किया जाएगा।
सरकार द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत लिया गया है। अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जातियों की परिभाषा और उनकी सूची को स्पष्ट किया गया है। इस सूची के तहत केंद्र सरकार समय-समय पर संशोधन कर सकती है, लेकिन शब्दावली के रूप में केवल “Scheduled Caste” अथवा उसके अधिकृत भाषाई अनुवाद का ही उपयोग किया जाना चाहिए।
यह फैसला ओडिशा मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों के आधार पर लिया गया है। आयोग ने राज्य सरकार को सुझाव दिया था कि ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग न केवल संवैधानिक दृष्टि से अनुचित है, बल्कि यह कई लोगों के लिए अपमानजनक और अवमाननापूर्ण भी माना जाता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी समय-समय पर इस शब्द के प्रयोग को बंद करने की सलाह दी है।
‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग महात्मा गांधी ने सामाजिक सुधार और अस्पृश्यता उन्मूलन के प्रयासों के दौरान किया था, जिसका अर्थ था ‘भगवान के लोग’। हालांकि, समय के साथ इस शब्द को लेकर कई दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आपत्ति जताई, क्योंकि उनके अनुसार, यह शब्द वास्तविक सामाजिक पहचान को छिपाने के साथ-साथ एक प्रकार के दया भाव को भी दर्शाता है। इसके बजाय वे संविधान प्रदत्त आधिकारिक शब्द ‘अनुसूचित जाति’ का प्रयोग अधिक उपयुक्त मानते हैं।
राज्य सरकार के पत्र के अनुसार, अब से किसी भी सरकारी आदेश, अधिसूचना, प्रमाणपत्र, भर्ती विज्ञापन, शैक्षणिक दस्तावेज या अन्य आधिकारिक संचार में ‘हरिजन’ शब्द नहीं लिखा जाएगा। यदि कहीं पहले से यह शब्द दर्ज है, तो संशोधन कर इसे ‘अनुसूचित जाति’ से प्रतिस्थापित किया जाएगा।
यह कदम न केवल प्रशासनिक सुधार है, बल्कि सामाजिक सम्मान और संवेदनशीलता का भी प्रतीक है। सरकार का मानना है कि सही शब्दावली का प्रयोग समाज में सम्मानजनक संवाद और समानता को प्रोत्साहित करेगा। यह निर्णय अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है, क्योंकि संवेदनशील शब्दों का प्रयोग समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाता है।
ओडिशा सरकार का यह निर्णय एक बार फिर यह साबित करता है कि संवैधानिक मूल्यों, सामाजिक समानता और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए केवल कानून ही नहीं, बल्कि भाषा का चयन भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
