पश्चिम बंगाल सरकार का बड़ा फैसला - प्राइम टाइम में दिखाना होगा “बंगला फिल्म”

Jitendra Kumar Sinha
0




पश्चिम बंगाल की कला और संस्कृति देशभर में अपनी गहरी जड़ों और विशिष्ट पहचान के लिए जानी जाती है। साहित्य, संगीत, नाटक और फिल्मों में बंगाल का योगदान अद्वितीय रहा है। लेकिन बदलते समय के साथ सिनेमा हॉल में क्षेत्रीय फिल्मों की हिस्सेदारी कम होती जा रही थी। ऐसे में राज्य सरकार ने बंगाली फिल्मों को पुनः प्रमुख स्थान दिलाने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है।

बुधवार को पश्चिम बंगाल सरकार ने घोषणा की है कि अब राज्य के सभी सिनेमाघरों में रोजाना प्राइम टाइम  यानि दोपहर 3 बजे से रात 10 बजे तक के दौरान बंगाली फिल्में दिखाना अनिवार्य होगा। यह आदेश तुरंत प्रभाव से लागू होगा और सभी मल्टीप्लेक्स एवं सिंगल-स्क्रीन थिएटर्स को इसका पालन करना होगा।

इस फैसले का मुख्य उद्देश्य है बंगाली फिल्म इंडस्ट्री को बढ़ावा देना और स्थानीय कलाकारों, तकनीशियनों एव निर्माताओं को अधिक अवसर प्रदान करना। डिजिटल प्लेटफॉर्म और बाहरी भाषाओं की फिल्मों के बढ़ते प्रभाव के कारण बंगाली सिनेमा की दर्शक संख्या घट रही थी। सरकार चाहती है कि स्थानीय दर्शक अपनी मातृभाषा और संस्कृति से जुड़े रहें और नए कलाकारों को मंच मिले।

बंगाली फिल्मों का इतिहास स्वर्णिम रहा है। सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन जैसे दिग्गज निर्देशकों ने बंगाल की कहानियों को वैश्विक मंच पर पहुंचाया। "पाथेर पांचाली", "चारुलता", "मेघे ढाका तारा" जैसी फिल्में आज भी विश्व सिनेमा में क्लासिक माना जाता है। आधुनिक दौर में भी बंगाली फिल्में सामाजिक मुद्दों, साहित्यिक रूपांतरणों और पारिवारिक कथाओं के जरिए अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए हैं।

सरकार के इस निर्णय से स्थानीय फिल्म उद्योग में नई ऊर्जा का संचार होगा। अब उन्हें प्राइम टाइम में स्क्रीन मिलने की गारंटी होगी, जिससे बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में वृद्धि होगी। उभरते हुए अभिनेता, निर्देशक और तकनीशियन अपनी प्रतिभा दिखा सकेंगे। लोग परिवार के साथ स्थानीय भाषा की फिल्में देखने के लिए प्रेरित होंगे, जिससे सांस्कृतिक जुड़ाव मजबूत होगा।

यह कदम कुछ मल्टीप्लेक्स मालिकों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि वे प्राइम टाइम में हिंदी या अंग्रेजी की बड़ी बजट वाली फिल्मों से अधिक कमाई करते हैं। ऐसे में उन्हें व्यापारिक रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा। लेकिन सरकार का मानना है कि लंबे समय में यह स्थानीय फिल्म उद्योग और दर्शकों दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगा।

पश्चिम बंगाल सरकार का यह कदम न केवल बंगाली फिल्म उद्योग के पुनर्जीवन में सहायक होगा, बल्कि क्षेत्रीय भाषा और संस्कृति को संरक्षित एव प्रोत्साहित करने में भी मील का पत्थर साबित हो सकता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नीति दर्शकों की पसंद और सिनेमाघरों की कमाई पर कैसा प्रभाव डालती है।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top