मानव सभ्यता ने हमेशा से असंभव को संभव करने का सपना देखा है। पहले चाँद पर उतरना, फिर इंटरनेट और अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence - AI) का चमत्कार। विज्ञान ने हर क्षेत्र में मनुष्य की सीमाओं को तोड़ते हुए नए-नए आविष्कार किए हैं। लेकिन अब चीन से आई खबर ने पूरे विश्व को हैरत में डाल दिया है।
चीन की एक टेक कंपनी "काइवा टेक्नोलॉजी" (Kiwa Technology) ने एक ऐसा प्रेगनेंसी रोबोट (Pregnancy Robot) विकसित करने का दावा किया है, जो एक इंसानी महिला की तरह गर्भ में शिशु को पाल सकेगा। यह रोबोट अपने पेट में लगे कृत्रिम गर्भाशय (Artificial Womb) के जरिए भ्रूण को 10 महीने तक पालकर स्वस्थ शिशु को जन्म देगा।
कृत्रिम गर्भ या आर्टिफिशियल वूम्ब एक ऐसी वैज्ञानिक तकनीक है, जिसमें इंसानी मां की गर्भाशय की नकल की जाती है। इसमें भ्रूण को एक पारदर्शी थैलीनुमा संरचना में रखा जाता है, जिसमें उसे वही पोषण, ऑक्सीजन और सुरक्षा मिलती है जो एक मां के गर्भ में मिलती है।
इस तकनीक में भ्रूण को नली (umbilical cord-like tube) से जोड़ा जाता है। विशेष तरल (amniotic fluid substitute) से भरी थैली उसे सुरक्षा देती है। सेंसर लगातार भ्रूण की धड़कन, विकास और पोषण की निगरानी करते रहता है। एआई सिस्टम अपने आप तय करता है कि भ्रूण को कब कितना ऑक्सीजन, पानी और पोषण देना है।
काइवा टेक्नोलॉजी ने इस कृत्रिम गर्भ को एक रोबोट के शरीर में लगाने का फैसला किया है। इसे "प्रेगनेंसी रोबोट" नाम दिया गया है। डॉ. झांग किफेंग (Dr. Zhang Qifeng), जो इस कंपनी के संस्थापक हैं, उनका दावा है कि यह रोबोट इंसानी महिला की तरह पूरे 10 महीने तक भ्रूण को पाल सकेगा। बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया को भी स्वचालित (Automated Delivery) बना देगा। लागत करीब 1 लाख युआन (लगभग 14 लाख रुपए) होगी। यह प्रयोग सरोगेसी (Surrogacy) की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
आज के समय में सरोगेसी (किराए की कोख) कई देशों में कानूनी और सामाजिक बहस का मुद्दा है। गरीब महिलाओं को आर्थिक दबाव में सरोगेट बनना पड़ता है। कई जगह इसे शोषण की तरह देखा जाता है। कई देशों ने इस पर प्रतिबंध भी लगाया है। ऐसे में यह प्रेगनेंसी रोबोट उन परिवारों के लिए समाधान हो सकता है जो बच्चा चाहते हैं लेकिन सरोगेसी या प्राकृतिक गर्भधारण संभव नहीं है।
बांझ दंपतियों के लिए आशा का किरण हो सकता है। जोड़े जो संतान सुख से वंचित हैं, वे बिना सरोगेसी के माता-पिता बन सकेंगे। महिलाओं पर बोझ कम होगा, गर्भधारण और प्रसव की शारीरिक व मानसिक पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। जनसंख्या नियंत्रण और चयन, सरकारें नियंत्रित तरीके से बच्चे पैदा करने की अनुमति दे सकती हैं। चिकित्सा में उपयोग, समय से पहले जन्मे (Premature) बच्चों को कृत्रिम गर्भ में रखा जा सकेगा। सुरक्षित गर्भावस्था, बीमारियों, गर्भपात और जोखिमों से बचाव हो सकता है।
लेकिन यह आविष्कार केवल फायदे ही नहीं लाता है, इसके साथ कई गहरे सवाल भी जुड़े हैं। मां-बच्चे का भावनात्मक रिश्ता, क्या रोबोट वह मातृत्व का अहसास दे पाएगा जो एक असली मां देती है? समाज पर असर, अगर गर्भधारण मशीनों में होने लगेगा तो क्या प्राकृतिक मातृत्व की अहमियत खत्म हो जाएगी? नैतिक संकट, क्या मशीनों के जरिए जीवन पैदा करना नैतिक रूप से सही है? सुरक्षा और हैकिंग का खतरा, अगर इस तकनीक का दुरुपयोग हुआ तो? असमानता का डर, अमीर लोग इसे खरीद पाएंगे, गरीब नहीं। इससे समाज में विभाजन और गहरा सकता है।
कृत्रिम गर्भ का सपना नया नहीं है। 1924 में ब्रिटिश वैज्ञानिक जे. बी. एस. हॉल्डेन ने "ectogenesis" (बाहरी गर्भधारण) की अवधारणा पेश की थी। 2017 में अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम थैली में मेमने (lamb) के भ्रूण को सफलतापूर्वक पालकर जन्म दिलाया। जापान और इजराइल जैसे देशों में भी इस पर शोध चल रहा है। लेकिन चीन का यह प्रयोग पहली बार इसे व्यावसायिक स्तर पर लाने की कोशिश है।
भारत समेत कई देशों में यह बहस छिड़ सकती है कि क्या ईश्वर की बनाई प्रक्रिया को बदलना सही है? क्या बच्चे का जन्म मशीन से होने पर उसे उतना ही "पवित्र" माना जाएगा? क्या इससे परिवार और रिश्तों की परिभाषा बदल जाएगी?
भारत में सरोगेसी पहले से ही बड़ा मुद्दा रही है। सरकार ने हाल ही में सरोगेसी से जुड़े कानून बनाए हैं। अगर प्रेगनेंसी रोबोट भारत में आ गया तो सरोगेसी उद्योग खत्म हो सकता है। मेडिकल टूरिज्म का नया अध्याय शुरू होगा। धार्मिक और सामाजिक बहसें तेज होंगी।
इस तकनीक से यह सवाल और बड़ा हो गया है कि भविष्य में मां की परिभाषा क्या होगी? क्या इंसान मशीनों पर पूरी तरह निर्भर हो जाएगा? क्या यह कदम मानवता को आगे ले जाएगा या भावनाओं से दूर कर देगा?
एक दंपति अस्पताल में जाए और कैप्सूल जैसी मशीन से कहे, "हमें एक बच्चा चाहिए।" मशीन 9 महीने तक भ्रूण को पालकर स्वस्थ शिशु दे दे। बच्चे का लिंग, आंखों का रंग, बुद्धिमत्ता सब कुछ "प्रोग्राम" किया जा सके। यह किसी साइंस-फिक्शन फिल्म जैसा लगता है, लेकिन चीन का प्रयोग बता रहा है कि यह अब हकीकत बनने वाला है।
"प्रेगनेंसी रोबोट" निस्संदेह विज्ञान की एक बड़ी उपलब्धि है। यह उन लाखों लोगों के लिए आशा की किरण है जो संतान सुख से वंचित हैं। लेकिन यह तकनीक केवल विज्ञान नहीं, बल्कि समाज, धर्म, नैतिकता और संस्कृति से जुड़ा मुद्दा है।
