लव-कुश ने किया था प्रथम पूजन - जिसे लोग कहते हैं जिंदा शिवलिंग - “भुवनेश्वरधाम”

Jitendra Kumar Sinha
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भारत भूमि पर जहां-जहां शिवलिंग की स्थापना हुई है, वहां-वहां शिव का चमत्कारी प्रभाव भी देखा गया है। लेकिन बिहार के सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल क्षेत्र में अवस्थित भुवनेश्वरधाम की विशेषता यह है कि यहां स्थित शिवलिंग को ‘जिंदा शिवलिंग’ कहा जाता है। यह अकेला ऐसा शिवलिंग है जिसके आकार में हर वर्ष एक से डेढ़ इंच की वृद्धि होती है। यही कारण है कि सावन के पावन महीने में हजारों कांवरिये मुंगेर के छर्रापट्टी घाट से गंगाजल लाकर इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।

भुवनेश्वरधाम के बारे में यह मान्यता भी है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश जब वनवास काल में विद्याध्ययन और यात्रा के दौरान इस अंचल में पहुंचे थे, तब उन्होंने ही इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर प्रथम बार पूजन किया था। इस कारण यह स्थान अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक बन गया है। लोककथाओं में वर्णित है कि लव-कुश बाल्यावस्था में अत्यंत तेजस्वी थे और शिव के प्रति उनका गहन समर्पण था। उन्होंने जहां-जहां विश्राम किया, वहां शिव की पूजा की। भुवनेश्वरधाम उन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है।

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहां स्थित ‘जिंदा शिवलिंग’ है। ग्रामीण और श्रद्धालु इसे जिंदा इसलिए मानते हैं क्योंकि शिवलिंग हर वर्ष अपने आकार में वृद्धि करता है। हर वर्ष जनवरी में मापी जाती है लंबाई। ग्रामीण श्रद्धालु जनवरी महीने में शिवलिंग की लंबाई और मोटाई मापते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि हर साल इसकी लंबाई में 1 से 1.5 इंच की बढ़ोतरी देखी जाती है। वर्तमान में इस शिवलिंग की लंबाई करीब साढ़े तीन फीट और मोटाई ढाई फीट के आसपास है। इसकी बढ़ती हुई आकृति लोगों की श्रद्धा को और मजबूत करता है।

सावन का महीना शिवभक्ति का पर्व होता है और भुवनेश्वरधाम में यह पर्व किसी मेले से कम नहीं होता है। कांवरियों की कतारें, गंगाजल से भरे घड़े और गूंजता ‘बोल बम’ का जयकारा पूरे क्षेत्र को शिवमय बना देता है। श्रद्धालु मुंगेर जिले के छर्रापट्टी घाट से गंगाजल भरकर सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर भुवनेश्वरधाम पहुंचते हैं। कई श्रद्धालु डाक कांवर की तरह दौड़ते हुए आते हैं, जिससे उनकी आस्था और ऊर्जा का अंदाजा लगाया जा सकता है।

भुवनेश्वरधाम चकभारो पंचायत में स्थित है जो सिमरी बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर पूर्व दिशा में पड़ता है। मंदिर करीब 30 फीट ऊंचे टीले पर बना हुआ है, जिससे यह दूर से ही भव्य और आकर्षक नजर आता है। मंदिर के चारों ओर हरियाली, खेत और ग्रामीण परिवेश इसे एक शांत और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। मंदिर के समीप स्थित एक प्राचीन पोखर की खुदाई के दौरान अष्टधातु की कई प्राचीन मूर्तियां मिली हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध रहा है।

भुवनेश्वरधाम मंदिर के निर्माण को लेकर एक और मान्यता यह है कि यह मंदिर राजा भोज के काल में निर्मित किया गया था। राजा भोज मध्यकाल के एक शक्तिशाली और धर्मपरायण राजा माने जाते हैं जिन्होंने देशभर में कई मंदिरों का निर्माण कराया था। लोककथाओं में बताया गया है कि उन्होंने इस क्षेत्र में भ्रमण के दौरान इस स्थान की पवित्रता और विशेषता को समझते हुए यहां मंदिर निर्माण कराया था।

इस धाम की केवल धार्मिक ही नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह स्थान ग्रामीण एकता का प्रतीक है, जहां सभी जाति और वर्ग के लोग मिलकर पूजा करते हैं। स्थानीय त्योहारों और मेलों का केंद्र बन चुका है। कई ग्रामीण समितियां और ट्रस्ट इस मंदिर की सेवा और देखरेख में जुटी रहती हैं। छात्रों और युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है, जहां उन्हें आस्था, परंपरा और संस्कृति से जोड़ने का अवसर मिलता है।

सावन और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां भजन संध्या और कीर्तन होता है जिसमें सैकड़ों लोग भाग लेते हैं। हर सोमवार को शिवभक्तों के लिए अन्नदान कार्यक्रम होता है। प्रतिदिन प्रातः और संध्या आरती में बड़ी संख्या में लोग सम्मिलित होते हैं। भुवनेश्वरधाम में सावन का महीना ऐसा लगता है मानो श्रद्धा, भक्ति और आस्था का महासंगम हो रहा हो। महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्रों में फूल, बेलपत्र, धतूरा, और जल लेकर मंदिर आती हैं। पुरुष कांवर लेकर लंबी यात्रा करते हैं। युवा वर्ग डाक कांवर बनकर अपनी ऊर्जा और संकल्प शक्ति का परिचय देता है।

भुवनेश्वरधाम न केवल एक पवित्र तीर्थ है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और अध्यात्म का जीवंत उदाहरण भी है। लव-कुश का शिवलिंग, राजा भोज की भक्ति, जिंदा शिवलिंग का चमत्कार, और सावन में श्रद्धालुओं का महासागर,  यह सब इसे एक दिव्य स्थल बनाता है।



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