यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर ऊर्जा संकट गहराया, लेकिन भारत ने अपनी रणनीतिक सूझबूझ से इसका लाभ उठाया। रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना भारत के लिए न सिर्फ आर्थिक रूप से फायदेमंद रहा, बल्कि इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार और तेल रिफाइनरियों को भी मजबूती मिली।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तब रूस ने अपने ऊर्जा संसाधनों को एशियाई देशों की ओर मोड़ा। भारत ने इस मौके को भांपते हुए बड़ी मात्रा में रियायती दरों पर कच्चे तेल की खरीदारी शुरू की। रिपोर्टों के अनुसार, 2023-24 में भारत के कुल कच्चे तेल आयात का लगभग 36 प्रतिशत हिस्सा रूस से आया।
रूसी तेल न केवल सस्ता था, बल्कि भारत को इसे स्थानीय मुद्राओं में खरीदने की छूट भी मिली, जिससे डॉलर पर निर्भरता कम हुई। इससे आयात बिल पर दबाव घटा और सरकार को घरेलू ईंधन कीमतों को नियंत्रित रखने में मदद मिली। भारत की कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की रिफाइनरियों ने रूसी ग्रेड के तेल को अच्छी तरह प्रोसेस किया और पेट्रोल-डीजल की आपूर्ति बनाए रखी।
हालांकि इस रणनीति की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आलोचना भी हुई। पश्चिमी देशों ने इसे अप्रत्यक्ष रूप से रूस को आर्थिक मदद देना बताया, लेकिन भारत ने साफ किया कि वह अपने ऊर्जा हितों की रक्षा कर रहा है। विदेश मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है और कोई भी आयात इसी आधार पर तय किया जाता है।
इस नीति का असर यह भी रहा कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हुई और मुद्रास्फीति पर भी नियंत्रण बना रहा। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर भारत इस तरह के रणनीतिक निर्णय लेता रहा, तो वैश्विक अस्थिरता के बावजूद उसकी आर्थिक प्रगति बनी रह सकती है।
रूस से तेल आयात को लेकर भारत की यह नीति आने वाले वर्षों में भी जारी रह सकती है, जब तक यह देश के लिए व्यावहारिक और फायदेमंद साबित होती है।
