बिहार विधानमंडल के सदस्यों के लिए एक अहम बदलाव किया गया है, जिससे उनकी दूरसंचार सुविधा से जुड़ी प्रक्रिया और आसान हो गई है। (सदस्यों का वेतन, भत्ता और पेंशन) नियमावली, 2006 के नियम-14 (दूरभाष की सुविधा) में संशोधन कर अब यह प्रावधान किया गया है कि सदस्यों को अपने टेलीफोन और इंटरनेट बिल का विवरण प्रस्तुत नहीं करना होगा। इसके स्थान पर उन्हें एक निर्धारित एकमुश्त राशि (Lump Sum Amount) सीधे प्रदान की जाएगी।
पहले नियम के तहत विधानमंडल के सदस्यों को टेलीफोन या इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करने के बाद संबंधित बिल की प्रतिलिपि जमा करनी पड़ती थी। भुगतान तभी स्वीकृत होता था जब बिल की जांच और सत्यापन हो जाता था। इस प्रक्रिया में समय लगता था और कई बार तकनीकी कारणों से बिल के भुगतान में देरी भी होती थी।
नए संशोधन के तहत सदस्य अब किसी टेलीफोन कंपनी या इंटरनेट प्रदाता का बिल नहीं देंगे। सरकार द्वारा तय की गई निश्चित राशि सीधे सदस्य को दे दी जाएगी। कागजी कार्रवाई और बिल जांच की औपचारिकताओं से राहत मिलेगी। सदस्य अपनी सुविधा और आवश्यकता के अनुसार किसी भी सेवा प्रदाता को चुन सकते हैं।
इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य विधानमंडल सदस्यों के कार्य में सुगमता लाना और प्रशासनिक प्रक्रिया को सरल बनाना है। डिजिटल युग में इंटरनेट और टेलीफोन सुविधा उनके कार्य का अभिन्न हिस्सा है, चाहे वह मतदाताओं से संपर्क हो, सरकारी बैठकों में वर्चुअल उपस्थिति, या क्षेत्रीय समस्याओं का संचार। बिल जमा करने और जांच कराने की औपचारिकताओं को हटाकर समय और संसाधनों की बचत होगी।
इस संशोधन पर कई सदस्यों ने स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह बदलाव उनके दैनिक कार्य को आसान करेगा और प्रशासनिक बोझ कम करेगा। वहीं, कुछ का मानना है कि इस एकमुश्त राशि का निर्धारण पारदर्शी तरीके से और वास्तविक खर्च को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
वर्तमान समय में डिजिटल कनेक्टिविटी जनप्रतिनिधियों के लिए केवल एक सुविधा नहीं है, बल्कि जिम्मेदारी भी है। टेलीफोन और इंटरनेट से वे अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं की सीधी निगरानी कर सकते हैं, आपातकालीन हालात में तुरंत प्रतिक्रिया दे सकते हैं और नीतिगत चर्चाओं में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
बिहार विधानमंडल का यह कदम प्रशासनिक सरलीकरण की दिशा में एक सकारात्मक पहल है। इससे न केवल सदस्यों को सुविधा मिलेगी, बल्कि शासन तंत्र में कार्यकुशलता भी बढ़ेगी। अगर एकमुश्त राशि का निर्धारण उचित तरीके से किया जाए, तो यह बदलाव अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है।
