मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की है कि बिहार में अब सरकारी शिक्षकों की बहाली में डोमिसाइल यानी स्थानीय निवास प्रमाणपत्र अनिवार्य होगा। यह नई व्यवस्था सीधे तौर पर वर्ष 2025 में आयोजित होने वाली TRE‑4 परीक्षा से लागू होगी। यानी अब सिर्फ बिहार के मूल निवासियों को शिक्षक बनने का प्राथमिक अधिकार मिलेगा। मुख्यमंत्री ने यह घोषणा शिक्षा विभाग के एक कार्यक्रम में की, जहां उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य के युवाओं को रोजगार में वरीयता देने के लिए यह कदम उठाया गया है।
नीतीश कुमार ने कहा कि TRE‑4 परीक्षा के पहले माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा (STET) कराई जाएगी, ताकि योग्य अभ्यर्थियों की संख्या बढ़े। उन्होंने आगे कहा कि TRE‑5 परीक्षा वर्ष 2026 में ली जाएगी और उसमें भी यही डोमिसाइल नीति लागू रहेगी। शिक्षा विभाग को नियमों में आवश्यक संशोधन करने के निर्देश दिए जा चुके हैं ताकि इस नई नीति को पूरी तरह लागू किया जा सके।
इस नीति के लागू होते ही बिहार की महिला अभ्यर्थियों को 35 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा, जबकि अन्य राज्यों की महिला अभ्यर्थियों को सामान्य वर्ग के तहत माना जाएगा। यह बदलाव उन लाखों छात्रों की मांग पर आधारित है जो लंबे समय से सरकारी नौकरियों में बिहार के युवाओं को वरीयता देने की मांग कर रहे थे। खासकर हाल के वर्षों में इस मांग को लेकर राजधानी पटना में कई विरोध-प्रदर्शन भी हुए।
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि राज्य में पहले ही TRE‑1 से TRE‑3 के माध्यम से लगभग 3.25 लाख शिक्षकों की भर्ती की जा चुकी है। फिर भी लगभग 20,000 पद खाली हैं जिन्हें आगामी TRE‑4 के माध्यम से भरा जाएगा। इस भर्ती प्रक्रिया में लगभग 50,000 पदों के लिए विज्ञापन निकाला जाएगा।
नीतीश कुमार के इस निर्णय को आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक अहम राजनीतिक रणनीति माना जा रहा है। यह फैसला न केवल स्थानीय युवाओं के लिए राहतभरा है, बल्कि इसे बिहार के शिक्षा तंत्र को सशक्त बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
इस प्रकार बिहार सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अब शिक्षकों की भर्ती में बाहरी राज्यों के उम्मीदवारों को पिछली तरह प्राथमिकता नहीं दी जाएगी। स्थानीय युवाओं के लिए यह एक सुनहरा अवसर है, साथ ही एक संदेश भी कि अब नौकरी पहले अपने घर के लोगों को दी जाएगी।
