जम चुके हाइड्रॉलिक फ्लूइड ने बनाया 200 मिलियन डॉलर के विमान को आग का गोला

Jitendra Kumar Sinha
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अमेरिका के अलास्का स्थित ईलिसन एयर फोर्स बेस पर इस साल जनवरी में हुआ F-35A लाइटनिंग II फाइटर जेट का हादसा अब अमेरिकी वायुसेना की सबसे गंभीर तकनीकी विफलताओं में से एक माना जा रहा है। लगभग 200 मिलियन डॉलर की कीमत वाले इस अत्याधुनिक फाइटर जेट को दुनिया का सबसे एडवांस्ड युद्धक विमान कहा जाता है, लेकिन दुर्घटना ने यह दिखा दिया कि तकनीकी कमियां कभी-कभी सबसे महंगी मशीनों को भी पूरी तरह नाकाम कर सकती हैं। रिपोर्ट के अनुसार टेकऑफ़ के तुरंत बाद पायलट ने देखा कि विमान का लैंडिंग गियर पूरी तरह खुल नहीं पा रहा है। इस समस्या की वजह निकली हाइड्रॉलिक फ्लूइड में पानी मिल जाना, जो अलास्का की कड़ाके की ठंड में जम गया और लैंडिंग गियर के सामान्य संचालन को बाधित कर दिया।


पायलट ने तुरंत समस्या को कंट्रोल करने की कोशिश की और विमान को सुरक्षित उतारने के लिए कई कदम उठाए। उसने एयरबेस कंट्रोल से संपर्क किया और लॉकहीड मार्टिन के पांच इंजीनियरों के साथ करीब 50 मिनट तक हवा में रहते हुए कॉन्फ्रेंस कॉल की। इस दौरान इंजीनियरों ने हर संभव तकनीकी समाधान सुझाया—‘टच एंड गो’ लैंडिंग के दो प्रयास भी किए गए—लेकिन दोनों बार सिस्टम ने गड़बड़ की और विमान को सुरक्षित रनवे पर नहीं उतारा जा सका। असली संकट तब सामने आया जब विमान के “Weight on Wheels” सेंसर ने गलत संकेत देना शुरू कर दिया। यह सेंसर, जो बताता है कि विमान हवा में है या ज़मीन पर, उसने ठंड और फ्लूइड की गड़बड़ी के चलते विमान को “ऑन ग्राउंड” मोड में डाल दिया, जबकि वह वास्तव में हवा में था। इससे विमान के कई ऑटोमैटिक सिस्टम बिगड़ गए और स्थिति पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो गई।


पायलट ने आखिरी प्रयास के तौर पर आपातकालीन लैंडिंग की तैयारी की, लेकिन खतरे को देखते हुए अंततः उसे इजेक्ट करना पड़ा। पायलट पैराशूट के सहारे सुरक्षित बाहर निकल आया और उसे केवल मामूली चोटें आईं। लेकिन विमान हवा में ही अनियंत्रित होकर ज़मीन से टकरा गया और देखते ही देखते आग का गोला बनकर पूरी तरह नष्ट हो गया।


दुर्घटना की जाँच रिपोर्ट में कई स्तरों पर खामियाँ बताई गई हैं। सबसे पहली और अहम वजह थी हाइड्रॉलिक फ्लूइड का दूषित होना, जिसमें पानी मिलने से जमाव की स्थिति बनी। दूसरी बड़ी गलती थी एयरफोर्स की हज़ार्डस मैटेरियल प्रोग्राम की कमजोर निगरानी—यानि कि विमान के फ्लूइड और मैकेनिकल सिस्टम की नियमित जाँच और रखरखाव में लापरवाही। तीसरी वजह बताई गई पायलट और क्रू द्वारा कुछ मानक निर्देशों का पालन न किया जाना, जिसने समस्या को और गंभीर बना दिया। रिपोर्ट में साफ कहा गया कि यह हादसा केवल तकनीकी खराबी का नतीजा नहीं था बल्कि प्रक्रियाओं की अनदेखी और अनुशासन की कमी ने भी इसमें बड़ा योगदान दिया।


इस हादसे ने अमेरिका के F-35 प्रोग्राम पर भी नए सवाल खड़े कर दिए हैं। यह वही विमान है जिसके प्रति यूनिट लागत लगभग 200 मिलियन डॉलर तक जाती है और जिसे 21वीं सदी का सबसे सक्षम मल्टीरोल फाइटर माना जाता है। लेकिन इस घटना ने दिखाया कि अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स, स्टेल्थ टेक्नोलॉजी और टॉप-क्लास एवियोनिक्स से लैस होने के बावजूद यदि मेंटेनेंस और निगरानी में चूक हो तो पूरा सिस्टम धराशायी हो सकता है। यह भी चिंता जताई जा रही है कि अगर ऐसी विफलता किसी युद्ध या ऑपरेशन के दौरान होती तो इसके परिणाम कहीं अधिक भयावह हो सकते थे।


अब अमेरिकी वायुसेना ने आदेश दिया है कि सभी F-35 विमानों में हाइड्रॉलिक फ्लूइड और उससे जुड़ी सप्लाई चेन की गहन जाँच हो। साथ ही सभी एयरबेस पर ‘Weight on Wheels’ सेंसर की संवेदनशीलता और कार्यप्रणाली को फिर से कैलिब्रेट करने के निर्देश दिए गए हैं। लॉकहीड मार्टिन ने भी माना है कि इस दुर्घटना से गंभीर सबक लेना होगा और डिजाइन तथा मेंटेनेंस प्रोटोकॉल दोनों में सुधार जरूरी है।


अलास्का की इस ठंडी ज़मीन पर हुई यह दुर्घटना आज दुनिया भर में चर्चा का विषय है, क्योंकि यह केवल एक जेट का नुकसान नहीं बल्कि आधुनिक सैन्य तकनीक की सीमाओं का खुलासा है। इस हादसे ने साबित किया कि चाहे विमान कितना भी उन्नत क्यों न हो, प्रकृति की परिस्थितियों और मानवीय त्रुटियों के सामने उसकी परख हमेशा कठिन होगी।

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