आभा सिन्हा, पटना
सनातन संस्कृति में रुद्राक्ष केवल एक बीज या आभूषण नहीं है, बल्कि एक दिव्य शक्ति का केन्द्र माना गया है। भगवान शिव के अश्रु से उत्पन्न रुद्राक्ष को धारण करने मात्र से साधक के अंदर चेतना का विस्तार होता है, कर्मबंधनों का क्षय होता है और आध्यात्मिक उन्नयन प्रारंभ हो जाता है। हर रुद्राक्ष की अपनी विशेषता है और जब बात सत्तरह मुखी रुद्राक्ष की हो, तो यह सिर्फ एक आध्यात्मिक उपकरण नहीं बल्कि मृत्यु के भय को समाप्त कर देने वाला दिव्य कवच है।
सत्तरह मुखी रुद्राक्ष को यमराज अर्थात काल के अधिपति का स्वरूप माना जाता है। यह रुद्राक्ष मृत्यु के भय, अकाल मृत्यु, असाध्य रोग और पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले कर्मबंधन से रक्षा करता है। इसे धारण करने से जीवन में स्थायित्व, अनुशासन, आयु वृद्धि और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
सत्तरह मुखी रुद्राक्ष के शासक देवता यमराज होते हैं, इसका संबंध शनि और राहु ग्रह से रहता है और तत्व वायु और आकाश है। सत्तरह मुखी रुद्राक्ष का बीज मंत्र है- “ॐ यमाय नमः” / “ॐ ह्रीं हूम नमः”
पुराणों के अनुसार, यमराज केवल मृत्यु के देवता नहीं हैं, बल्कि न्याय और समय के अधिपति भी हैं। सत्तरह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने वाला व्यक्ति यमराज के नियंत्रण में रहते हुए भी अकाल मृत्यु, दुर्घटनाओं, अप्रत्याशित मृत्यु, और जन्म-मरण के चक्र से ऊपर उठ जाता है।
शिवपुराण में यह भी उल्लेखित है कि जो साधक मृत्युंजय जप के साथ सत्तरह मुखी रुद्राक्ष की साधना करता है, उसे शिवलोक में स्थान प्राप्त होता है, और मोक्ष की प्राप्ति सुनिश्चित होती है।
जो व्यक्ति सत्तरह मुखी रुद्राक्ष को विधिपूर्वक धारण करता है, उसे किसी भी प्रकार की अचानक मृत्यु, दुर्घटना या रोग से सुरक्षा मिलती है।
यमराज केवल मृत्यु नहीं, बल्कि अनुशासन, सत्य और समय के प्रतीक भी हैं। इसलिए सत्तरह मुखी रुद्राक्ष पहनने से व्यक्ति जीवन में सही निर्णय, संयम और समय का पालन करने लगता है।
जो साधक मृत्यु के भय से आगे बढ़ना चाहता है और समाधि या निर्वाण की दिशा में जाना चाहता है, उसके लिए यह रुद्राक्ष अत्यंत लाभकारी है।
कई ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यह रुद्राक्ष राहु-शनि के दोष, गुरु दोष, कालसर्प दोष और पितृ दोष से राहत प्रदान करता है।
पूर्व जन्म के कर्म जो इस जीवन में बाधा बन रहा हों, उससे मुक्ति का मार्ग सत्तरह मुखी रुद्राक्ष से प्रशस्त होता है।
रुद्राक्ष एक जैव-चुंबकीय बीज है जो शरीर में नेगेटिव ऊर्जा को हटाकर पॉजिटिव ऊर्जा का संचार करता है। सत्तरह मुखी रुद्राक्ष, विशेष रूप से अज्ञा चक्र (ब्रौ चक्र) और सहस्रार चक्र को सक्रिय करता है। इसके प्रभाव से तंत्रिकाएं संतुलित होता है और मानसिक भय दूर होता है।
सत्तरह मुखी रुद्राक्ष बहुत दुर्लभ होता है। इस लिए इसका लिए पहचान महत्वपूर्ण है। इसकी रेखाएं 17 प्राकृतिक मुख या रेखाएं जो बीज पर ऊपर से नीचे तक स्पष्ट होना चाहिए। असली रुद्राक्ष जल में डूब जाता है। छेद करने पर किसी प्रकार की दरार या टूट-फूट नही होना चाहिए। इस लिए लेबोरेटरी सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र) खरीदते समय ले लेना चाहिए।
सत्तरह मुखी रुद्राक्ष सोमवार या शनिवार को, विशेष रूप से अमावस्या, सोमवती अमावस्या या श्रावण मास के किसी सोमवार को धारण करना चाहिए। धारण करने से पहले पंचगव्य या गंगाजल से धोकर, चांदी/सोने/पंचधातु की चेन या लाल धागा में शांत और पवित्र स्थान पर, सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन कर, रुद्राक्ष को गंगाजल में धोकर पंचोपचार पूजन कर, यमराज या महाकाल की मूर्ति/चित्र के समक्ष रखकर ॐ यमाय नमः (108 बार) जाप कर श्रद्धापूर्वक गले में या हाथ में धारण करना श्रेष्कर होगा।
सत्तरह मुखी रुद्राक्ष जिन्हें अकाल मृत्यु का भय हो, जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो, जो शनि, राहु, गुरु, कालसर्प दोष से पीड़ित हो, जो तंत्र-साधना, मंत्र-सिद्धि, मृत्युंजय साधना करना चाहते हो और जो पूर्वजों के कर्मों से मुक्त होना चाहते हो, उन्हें धारण करना चाहिए।
सत्तरह मुखी रुद्राक्ष को महामृत्युंजय मंत्र के साथ प्रयोग करने से इसका प्रभाव हजार गुना बढ़ जाता है।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
इसका नियमित जाप करने से रोग, मृत्यु, मानसिक भय और कालदोष खत्म हो जाता है।
तांत्रिक परंपरा में सत्तरह मुखी रुद्राक्ष को कवच की तरह प्रयोग किया जाता है। मृत्यु को स्थगित करने वाली साधना में, शमशान साधना में, शिव और कालभैरव की सिद्धि के लिए, पूर्व जन्म के कर्म क्षय हेतु और कालिका मंत्र, भैरव मंत्र, यम मंत्र के सिद्धि के लिए।
साधकों में काशी निवासी शिवकुमार पांडे का कहना है कि जिन्होंने ब्रेन ट्यूमर के निदान के लिए यह रुद्राक्ष धारण किया और 6 माह के भीतर रिपोर्ट सामान्य आ गया। राजस्थान के एक पूर्व पुलिस अधिकारी का कहना है कि जिन्हें चार बार दुर्घटनाओं से बचाव हुआ वह सभी बार सत्तरह मुखी रुद्राक्ष धारण किए हुए थे। एक तांत्रिक साधिका का अनुभव है कि इस रुद्राक्ष को गंगाजल और मृत्युंजय मंत्र के साथ सिद्ध करने के बाद, उनकी समाधि की अवस्था स्थायी हो गई।
आज के तनावपूर्ण, रोगग्रस्त और अनिश्चित जीवनशैली में, सत्तरह मुखी रुद्राक्ष एक दिव्य औषधि की भांति कार्य करता है। चाहे वह कार्यालय में दबाव, कोर्ट-कचहरी के विवाद, रहस्यमयी मानसिक रोग, या शत्रु बाधाएं हों यह रुद्राक्ष स्थिरता और सुरक्षा देता है।
सत्तरह मुखी रुद्राक्ष केवल जीवन को दीर्घ नहीं बनाता है, बल्कि मृत्यु को भी सार्थक बनाता है। यह शिव का वह अमूल्य उपहार है जो साधक को जीवन-मरण के चक्र से पार ले जाता है। यह मोक्ष, समाधि और ब्रह्मानंद का बीज है। यदि आप जीवन को गहराई से जीना और मृत्यु को सहजता से अपनाना चाहते हैं, तो सत्तरह मुखी रुद्राक्ष आपका आध्यात्मिक सहचर अवश्य बन सकता है।
