मुल्तान से कराची तक फैली है मेवाड़ के कंवला का हेमशाही मठ

Jitendra Kumar Sinha
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भारत की पवित्र भूमि अनेक चमत्कारी मठों, आश्रमों और संत परंपराओं की जन्मभूमि रही है। हर क्षेत्र में कोई न कोई ऐसा स्थल अवश्य है, जो केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और धर्म का जीवंत प्रतीक होता है। ऐसा ही एक अविस्मरणीय स्थान है “कंवला का हेमशाही मठ”, जो राजस्थान के सिलावटी अंचल में स्थित है। यह मठ केवल एक धार्मिक आश्रम नहीं है, बल्कि सदीयों की साधना, त्याग, युद्ध, चमत्कारों और भक्ति परंपरा का ऐसा गौरवशाली प्रतीक है, जिसकी महिमा न केवल भारत, बल्कि आज के पाकिस्तान तक फैली हुई है।

कंवला के समीप बसा यह मठ “हेमशाही एकलिंगनाथ कंक्लेश्वर महादेव जागीर” के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां एक महान संत "हेमशाही बाबा" ने कठोर तप किया था। उनका संबंध आहीर समाज से था, जो अपनी परंपरागत वीरता, भक्ति और पशुपालन संस्कृति के लिए जाना जाता है। एकलिंगनाथ महादेव की कृपा से उन्हें दिव्य ज्ञान और सिद्धियाँ प्राप्त हुईं। इसके बाद उन्होंने इस स्थल पर एक आश्रम और मंदिर की स्थापना की।

हेमशाही बाबा ने यह स्थान एक जागीर स्वरूप में संचालित किया, जहां धर्म, नीति, सेवा और तप का अद्भुत समन्वय दिखता था। समय बीतने के साथ यह मठ ना केवल एक आध्यात्मिक केंद्र बना, बल्कि नागा साधुओं, युद्ध-पराक्रमी संतों और चमत्कारी तपस्वियों का केंद्र बन गया।

हेमशाही मठ के निकट स्थित बबलेश्वर सरोवर, केवल एक जलाशय नहीं है बल्कि एक पौराणिक सुरक्षा कवच की भांति मठ को सुरक्षित करता है। कहा जाता है कि किसी भी संकट के समय इस सरोवर की लहरें तेज हो जाती थीं, और यह प्राकृतिक संकेत बन जाता था कि कोई अनिष्ट पास है। इसका पानी रोगनाशक माना जाता है और साधुओं के स्नान का विशेष महत्व है।

मठ का निर्माण नागर शैली में हुआ है, जो राजस्थान और गुजरात की पारंपरिक मंदिर वास्तुकला है। ऊँचे शिखर, नक्काशीदार स्तंभ, और भग्न मंदिर अवशेष इसकी गाथा बयां करते हैं। मुख्य मंदिर परिसर, तोरण द्वार, समाधि स्थल और छोटे मंदिर इस बात के साक्षी हैं कि यह मठ राजकीय संरक्षण और लोक श्रद्धा दोनों का केन्द्र रहा है।

हेमशाही मठ का सबसे महान पहलू रहा है, यहां के महात्माओं का जीवन, तप, त्याग और चमत्कार। इन संतों की जीवन गाथाएँ श्रद्धालुओं को आज भी रोमांचित कर देता है। ब्रह्मलीन स्वामी संतोषपुरी महाराज के बारे में प्रसिद्ध है कि उन्होंने कठिन तप से देवताओं को प्रसन्न कर अनेक चमत्कार किए। भक्तों की अनगिनत मनोकामनाएँ उन्होंने पूरी कीं। ब्रह्मलीन हेमपुरी महाराज का पराक्रम प्रसिद्ध "नौरंगशाह के दरबार" तक पहुँचा। वहां के लोगों ने इनकी आध्यात्मिक शक्ति के सामने सिर झुका दिया। ब्रह्मलीन त्रिलोकपुरी महाराज एक सैन्य संगठन के अग्रणी थे और नागा साधुओं की टुकड़ी बनाकर मठ की रक्षा और सामाजिक सुरक्षा का कार्य करते थे। ब्रह्मलीन रामपुरी महाराज को भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वज्ञान होता था। लोग उन्हें "चलता-फिरता पंचांग" कहते थे। ब्रह्मलीन हंसपुरी महाराज का जीवन शांत, सौम्य और सादगी भरा था। वे त्याग और सेवा के प्रतीक थे। ब्रह्मलीन सतीषपुरी महाराज ने अपने हृदय से स्वेच्छा से मांस निकालकर ईश्वर को अर्पित कर भक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया था।

हेमशाही मठ ना केवल संतों का, बल्कि राजा-महाराजाओं का भी आस्था केंद्र रहा है। मेवाड़ के महाराणा मोकल ने स्वयं इस मठ को दान में भूमि दी थी। जोधपुर नरेश ने अहमदाबाद आक्रमण के समय हेमशाही मठ के नागा साधुओं से सैन्य सहयोग लिया था। यह मठ प्राचीन ओलावट नगरी के सांस्कृतिक केंद्रों से भी जुड़ा रहा है।

यह मठ केवल राजस्थान तक सीमित नहीं रहा। यहां के संतों की ख्याति रामेश्वरम से लेकर मुल्तान और कराची तक फैली। जब विभाजन के पहले के समय में पाकिस्तान भारत का ही हिस्सा था, तब मुल्तान और कराची से श्रद्धालु इस मठ में दर्शन के लिए आया करते थे।

आज भी वहां बसे कुछ परिवार इस मठ के संविधान, सिद्धांत और परंपराओं को अपने जीवन में आत्मसात करते हैं। यह एक दुर्लभ उदाहरण है कि कैसे एक ग्रामीण मठ की गूंज सीमाओं को लांघकर अंतरराष्ट्रीय सम्मान अर्जित करती है।

वर्तमान समय में भी हेमशाही मठ के मठाधीश उसी परंपरा का पालन कर रहे हैं जो उनके पूर्ववर्तियों द्वारा स्थापित की गई थी। संध्या आरती, भगवत कथा, यज्ञ, साधना, भंडारा, और सामाजिक सेवा जैसे कार्य अनवरत चल रहा है।

हेमशाही मठ की सबसे अनोखी बात यह है कि यह मठ जागीर परंपरा के अंतर्गत आता है। इसका अर्थ है कि यहां का संचालन न केवल धार्मिक संस्था के रूप में होता है, बल्कि यह एक प्रकार की धार्मिक-प्रशासकीय व्यवस्था भी है। यहां के तत्कालीन महंत इस मठ के प्रबंधक, न्यायकर्ता, अध्यापक, संरक्षक और नेतृत्वकर्ता सभी कुछ होते हैं। यह व्यवस्था समाजवादी संत-संस्था का अद्भुत उदाहरण है।

कंवला का हेमशाही मठ सिर्फ एक साधना स्थल नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक धरोहर है। इसकी चमत्कारी गाथाएँ, वीरता के किस्से, त्याग की कथाएँ, और दूर-दराज़ देशों तक फैली ख्याति इसे एक अनोखा तीर्थ बना देता है।

कंवला का हेमशाही मठ आज भी एक जीवंत परंपरा है, जहां संन्यास और संसार का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। धूप, दीप, नैवेद्य और साधना की गूंज यहां अनवरत बहती है। यह मठ आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाता है कि त्याग, तप और भक्ति की परंपरा कभी मरती नहीं, बस स्वरूप बदलती है।



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