मातृभूमि के प्रति आत्मबल और समर्पण का उत्सव है - “स्वतंत्रता दिवस”

Jitendra Kumar Sinha
0

 



प्रत्येक वर्ष देश में 15 अगस्त को “स्वतंत्रता दिवस” के मनाया जाता है, यह भारतवासियों के आत्मबल, आत्मगौरव और मातृभूमि के प्रति समर्पण का उत्सव होता है। यह वह दिन है जब पूरा भारत एक सुर में "जय हिन्द" कहता है और अपने वीर सपूतों को नमन करता है जिन्होंने हँसते-हँसते मातृभूमि पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। आजादी की इस पावन स्मृति में न केवल इतिहास जीवंत होता है, बल्कि भीतर छिपे उस राष्ट्रीय चेतना को भी महसूस कराता है, जो सदैव देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देती है।

स्वतंत्रता दिवस का मूल संदेश उस संघर्ष से मिलता है जिसमें न जाने कितने अनाम और नामी क्रांतिकारियों ने अपना जीवन अर्पित कर दिया। महात्मा गांधी का सत्याग्रह, भगत सिंह की क्रांति, नेताजी सुभाष चंद्र बोस का 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा' का आह्वान, चंद्रशेखर आजाद की बंदूक और झांसी की रानी की तलवार, यह सब देश की आजादी के वह पृष्ठ है जो गौरव से भर देता है। स्वतंत्रता दिवस का यह पर्व स्मरण कराता है कि यह देश किसी एक जाति, भाषा या धर्म का नहीं है, बल्कि करोड़ों देशवासियों के त्याग और संघर्ष का फल है।

आज जब 21वीं सदी के तीसरे दशक में देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, तो आत्मबल और आत्मनिर्भरता का भाव पहले से कहीं अधिक प्रबल हुआ है। 'आत्मनिर्भर भारत' का सपना केवल आर्थिक स्वावलंबन नहीं है, बल्कि वैचारिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक गौरव और तकनीकी समृद्धि की ओर भी संकेत करता है। स्वदेशी आंदोलन की भावना आज 'मेक इन इंडिया', 'डिजिटल इंडिया' और 'स्टार्टअप इंडिया' के माध्यम से नए आयाम प्राप्त कर रहा है। यह आत्मबल ही है जिसने भारत को कोरोना जैसे वैश्विक संकट में भी आत्मनिर्भर बनाकर उभारा। जहाँ भारत ने न केवल अपने नागरिकों को टीका लगाया, बल्कि अन्य देशों को भी वैक्सीन भेजी।

स्वतंत्रता दिवस केवल उत्सव नहीं है,  बल्कि एक संवेदनशील आह्वान है कि “देश सर्वोपरि।” हमारे सेनानायक, किसान, वैज्ञानिक, शिक्षक, डॉक्टर, श्रमिक, सभी किसी न किसी रूप में मातृभूमि की सेवा में रत हैं। उनका समर्पण ही राष्ट्र की प्रगति का आधार है। सैनिकों का बलिदान, सीमाओं पर तैनात जवानों का साहस और उनके परिजनों की त्याग भावना, इस पर्व को और भी अर्थपूर्ण बनाती है। वह दिन-रात अपने प्राणों की बाजी लगाकर देशवासियों को सुरक्षा का कवच प्रदान करते हैं।

स्वतंत्रता दिवस युवाओं के लिए केवल तिरंगा फहराने का अवसर नहीं है, बल्कि एक प्रतिबद्धता है, अपने ज्ञान, कौशल और विचारों से राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनने की। आज देश को Digital Warriors, Ethical Hackers, Clean Energy Innovators, Teachers, Bureaucrats और कई अन्य क्षेत्रों में समर्पित राष्ट्रसेवकों की आवश्यकता है। आज का युवा टेक्नोलॉजी से लैस है, वह क्रांति की बंदूक नहीं है, बल्कि नवाचार और विचारों से बदलाव ला सकता है। देशभक्ति अब केवल सैनिक बनना नहीं है, बल्कि हर क्षेत्र में उत्कृष्टता के द्वारा भारत का नाम ऊँचा करना है।

15 अगस्त को जब आकाश में तिरंगा लहराता है, तो वह केवल तीन रंगों की बात नहीं करता है, वह कहता है कि यह देश सभी का है। केसरिया साहस और बलिदान का, श्वेत शांति और सच्चाई का, हरा समृद्धि और विकास का प्रतीक है, तो बीच का चक्र निरंतर प्रगति का संदेश देता है।



यह तिरंगा उस राष्ट्र का प्रतीक है जिसने अपने सांस्कृतिक वैभव, आध्यात्मिक ऊँचाई और वैज्ञानिक उपलब्धियों से विश्व को चकित किया 

स्वतंत्रता अधिकार देती है, लेकिन साथ ही कर्तव्य भी सौंपती है। आज जब हम स्वतंत्र हैं, तो हमें अपने संविधान, लोकतंत्र, और सामाजिक समरसता की रक्षा करनी होगी। नागरिक के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम करों का भुगतान ईमानदारी से करें, कानूनों का पालन करें, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें, सामाजिक समरसता बनाए रखें, पर्यावरण और संस्कृति की रक्षा करें।

सच्चे देशभक्त वह नहीं है जो केवल नारों में जिएँ, बल्कि वह है जो प्रतिदिन अपनी आचरण से देश के लिए कुछ अच्छा करें।

आजादी का यह पर्व अब केवल शासकीय आयोजन नहीं रहा, यह अब घर-घर का उत्सव बन गया है। स्कूलों में नन्हे बच्चों द्वारा प्रस्तुत देशभक्ति गीत, गाँवों में प्रभात फेरी, नगरों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, सब यह दर्शाता है कि भारत के हर कोने में आज भी राष्ट्रप्रेम जीवंत है। यही तो आत्मबल है, यही समर्पण है, जो हर पीढ़ी को स्वतंत्रता के मोल से परिचित कराता है।

आजादी का यह पर्व याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल बाहरी गुलामी से नहीं, बल्कि आंतरिक विभाजनों, भ्रष्टाचार, असमानता, सांप्रदायिकता और कुपोषण से भी होनी चाहिए। जब तक देश का अंतिम नागरिक भय, भूख और भेदभाव से मुक्त नहीं होता है, तब तक आजादी अधूरी लगती है।

एक सशक्त राष्ट्र की कल्पना बिना नारीशक्ति के सशक्तिकरण के संभव नहीं है। स्वतंत्रता दिवस पर यह संकल्प लेना चाहिए कि बेटियों को शिक्षा, सुरक्षा और समान अवसर दें। भारत की कल्पना चावला, पी. वी. सिंधु, किरण बेदी, मिताली राज जैसी बेटियाँ यह प्रमाण हैं कि जब महिला सशक्त होती है, तो राष्ट्र सशक्त होता है।

स्वतंत्रता दिवस अपने शहीदों की आत्मा से जुड़ने का अवसर देता है। उनका बलिदान जीवन में एक ऐसी प्रेरणा है जिसे कभी भुला नहीं जा सकता है। जैसे कोई शब्द नहीं होता है माँ की ममता बताने के लिए, वैसे ही कोई वाक्य नहीं होता है शहीदों का ऋण चुकाने के लिए। उनकी याद में न केवल दो मिनट का मौन रखना चाहिए, बल्कि उनके सपनों का भारत गढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' का सपना केवल एक नारा नहीं है, यह भारत की आत्मा है। स्वतंत्रता दिवस पर यह प्रतिज्ञा लेना चाहिए कि जाति, भाषा, क्षेत्र, पंथ या राजनीति से ऊपर उठकर भारतीयता को प्राथमिकता देंगे। यही वह आत्मबल है जो देश को महाशक्ति बना सकता है।

भारत जब 2047 में स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरा करेगा, तो वह कैसा होगा, यह आज के संकल्पों और कार्यों पर निर्भर करता है। एक ऐसे भारत का निर्माण करना है जहाँ हर बच्चा शिक्षित हो, हर युवा रोजगार से युक्त हो, हर महिला सुरक्षित और स्वावलंबी हो, हर नागरिक स्वस्थ और जागरूक हो, हर क्षेत्र प्रगतिशील और पर्यावरण अनुकूल हो।

15 अगस्त केवल ध्वजारोहण, मिठाई और परेड का दिन नहीं होता है, यह हृदय से जुड़ने का दिन है, देश की आत्मा से। यह समझना होगा कि देशभक्ति केवल आपातकाल में नहीं, बल्कि हर दिन, हर कर्म, हर सोच में होनी चाहिए। जो व्यक्ति स्वच्छता रखता है, समय का सम्मान करता है, पर्यावरण की रक्षा करता है, दूसरों की सहायता करता है  सही मायने में वह सच्चा देशभक्त है। 



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top