अमेरिका ने हाल ही में भारत के कपड़ा और उससे जुड़े सामानों पर 50% टैरिफ लगा दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत से जो भी टेक्सटाइल, गहने, जूते या चमड़े का सामान वहाँ जाएगा, उस पर अब दोगुना टैक्स लगेगा। स्वाभाविक है, इसका असर भारतीय निर्यातकों और छोटे व्यापारियों पर पड़ना तय है। भारत के लिए कपड़ा उद्योग केवल कारोबार नहीं बल्कि रोजगार और रोज़मर्रा की अर्थव्यवस्था का बड़ा सहारा है, ऐसे में यह झटका हल्का नहीं है।
लेकिन सरकार ने इसे हाथ पर हाथ धरकर देखने के बजाय तुरंत रणनीति तैयार कर ली है। अब भारत अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय लगभग 40 नए देशों में अपने टेक्सटाइल और उससे जुड़े उत्पादों का बाज़ार खोजने जा रहा है। इनमें जापान, कोरिया, जर्मनी, फ्रांस, यूके, इटली, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मैक्सिको, यूएई और रूस जैसे देश शामिल हैं। इन बाज़ारों में कपड़ा और परिधान का आयात सालाना लगभग 590 अरब डॉलर का है। भारत की हिस्सेदारी अभी यहाँ बहुत कम है, इसलिए यह चुनौती के साथ-साथ बड़ा मौका भी है।
इस योजना में भारत के दूतावास और विभिन्न निर्यात संवर्धन परिषदें अहम भूमिका निभाएँगी। देश के प्रमुख टेक्सटाइल क्लस्टर्स—सूरत, पानिपत, तिरुपुर और भदोही जैसे इलाकों—को इन नए बाज़ारों से जोड़ने की तैयारी है। ट्रेड फेयर्स, अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों और “ब्रांड इंडिया” अभियान के ज़रिए भारतीय कपड़ों की गुणवत्ता और विविधता को सामने रखा जाएगा।
सरकार ने इस काम को आसान बनाने के लिए वित्तीय मदद की भी योजना बनाई है। छोटे और मध्यम निर्यातकों को बिना गारंटी वाले ऋण, सस्ता व्यापार वित्त और अन्य सहूलियतें दी जाएँगी ताकि वे नए देशों तक पहुँच सकें। यह कदम सिर्फ कपड़े तक ही सीमित नहीं है, बल्कि रत्न-आभूषण, चमड़ा और जूते जैसे क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।
संक्षेप में कहें तो अमेरिका ने जिस तरह का दबाव बनाया, भारत ने उसे अवसर में बदलने की कोशिश शुरू कर दी है। एक तरफ परंपरागत उद्योग की रक्षा का भाव है, दूसरी तरफ नए दौर की ज़रूरतों को समझकर नए साझेदार ढूँढने की रणनीति है।
