डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करता तो अमेरिका भारत पर भारी टैरिफ लगाएगा। ट्रंप का आरोप है कि भारत रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीदकर उसे मुनाफे के लिए वैश्विक बाजार में बेच रहा है, जिससे रूस को यूक्रेन युद्ध में आर्थिक सहायता मिल रही है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं कि यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं।
ट्रंप के इस बयान के बाद भारत सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। विदेश मंत्रालय ने इसे अनुचित और अव्यवहारिक करार देते हुए कहा कि भारत की तेल खरीद पूरी तरह से ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हित से जुड़ा हुआ निर्णय है। भारत ने यह भी साफ कर दिया कि रूस से तेल खरीदना कोई नया कदम नहीं है और यह पहले से चल रहे दीर्घकालिक समझौतों का हिस्सा है। जब पश्चिमी देश खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं, तो भारत को निशाना बनाना दोहरा मापदंड है।
सरकार ने यह भी बताया कि अमेरिका और यूरोपीय देश अब भी रूस से महत्वपूर्ण चीजें जैसे उर्वरक, रसायन और परमाणु सामग्री खरीद रहे हैं। इसके बावजूद भारत पर इस तरह के आरोप लगाना असंगत है। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए अपने हितों की रक्षा करता रहेगा।
ट्रंप ने यह भी कहा है कि अगर भारत अपनी रणनीति नहीं बदलता, तो वह 100 प्रतिशत तक टैरिफ बढ़ा सकते हैं और अन्य दंडात्मक कदम भी उठा सकते हैं। उन्होंने 7 अगस्त तक की समय सीमा तय की है, जिसके बाद भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
इस बयान का असर बाजार पर भी पड़ा है। 5 अगस्त को भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले गिरकर 87.80 तक पहुंच गया, हालांकि बाद में भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से स्थिति थोड़ी संभली।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह बयान सिर्फ भारत पर दबाव बनाने के लिए नहीं है, बल्कि यह अमेरिका में चल रहे चुनावों के मद्देनज़र एक राजनीतिक रणनीति भी हो सकती है। ट्रंप अक्सर भारत और चीन जैसे देशों को निशाने पर लेकर घरेलू समर्थन जुटाने की कोशिश करते रहे हैं।
फिलहाल यह साफ है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के साथ खड़ा है और दबाव में आने को तैयार नहीं है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका अपने रुख में कोई नरमी लाता है या भारत के खिलाफ वास्तव में कड़े आर्थिक कदम उठाता है।
