अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त 25% टैरिफ से भारत की कालीन और रत्न उद्योगों को बड़ा झटका लगने की आशंका है। विशेषकर हाथ से बने फ़र्श, कालीन और पारंपरिक डिज़ाइन वाले रग्स जैसे उत्पादों पर भारी असर पड़ेगा। यदि यह टैरिफ 50% तक पहुँच गया तो लगभग 25 लाख लोग, जो इस कारोबार से जुड़े हैं, गरीबी की कगार पर पहुँच सकते हैं।
भारत में कालीन उद्योग का लगभग 98% उत्पादन निर्यात के लिए होता है और इनमें सबसे बड़ा बाज़ार अमेरिका है। ऐसे में बढ़े हुए शुल्क से सीधे तौर पर मांग घटेगी और निर्यातक कंपनियों के साथ-साथ लाखों कारीगरों पर असर पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश के भदोही जैसे इलाकों में, जहाँ कालीन निर्माण मुख्य आजीविका है, स्थिति और गंभीर हो सकती है। पहले से ही कम दाम और ऊँची प्रतिस्पर्धा से जूझ रहे कारीगरों की हालत और बिगड़ जाएगी। उद्योग जगत के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर शुल्क दर बढ़ती है, तो कारोबार चौपट हो सकता है और लाखों कारीगर बेरोजगारी और गरीबी का सामना करेंगे।
इस संकट का असर केवल कालीन उद्योग तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि रत्न और गहनों के निर्यात पर भी पड़ेगा। भारतीय रत्न उद्योग का लगभग 30% वैश्विक कारोबार अमेरिका पर निर्भर है। अगर टैरिफ बढ़ा तो यह व्यापार भी भारी दबाव में आ सकता है।
कुल मिलाकर, अमेरिकी टैरिफ नीतियों ने भारत की पारंपरिक कालीन और रत्न उद्योगों को गहरे संकट में डाल दिया है, और इससे करोड़ों रुपये का नुकसान तथा लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी खतरे में पड़ सकती है।
