उत्तरकाशी में बादल फटने से तबाही: सेना के जवानों ने बताया मौत का मंजर

Jitendra Kumar Sinha
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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में 5 अगस्त 2025 की रात आई प्राकृतिक आपदा ने तबाही मचा दी। धाराली, हर्षिल और इसके आसपास के क्षेत्रों में बादल फटने की घटना के बाद भयंकर फ्लैश फ्लड आया, जिसने सब कुछ बहा दिया। इस विनाशकारी बाढ़ में सेना का कैंप, होटल, दुकानें, मकान और सड़कें तक पानी की रफ्तार में समा गए। नदी अचानक विकराल हो गई और जिस किसी को रास्ते में पाया, अपने साथ बहा ले गई।


इस आपदा में कम से कम चार लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है और 50 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं। इनमें सेना के आठ से ग्यारह जवान भी शामिल हैं, जो हर्षिल के पास तैनात थे और अचानक आई इस आपदा की चपेट में आ गए। कई घायलों को बचा लिया गया है और सेना की मेडिकल टीम उनका इलाज कर रही है। अब तक 130 से अधिक लोगों को बचाया गया है, लेकिन मौसम की खराबी, मलबा और टूटी सड़कें राहत और बचाव कार्य में लगातार बाधा डाल रही हैं।


घटना के प्रत्यक्षदर्शी एक घायल सैनिक ने बताया कि रात लगभग 2 बजे तेज गर्जना और भारी बारिश शुरू हुई। इसके कुछ मिनटों बाद ही नदी का पानी अचानक बढ़ गया और पूरे क्षेत्र में अफरातफरी मच गई। मिट्टी, चट्टानों और पेड़ों के साथ एक विशाल जलधारा कैंप की ओर बढ़ी और देखते ही देखते सब कुछ बह गया। सैनिकों ने एक-दूसरे को चेतावनी देने के लिए सीटी और चीख-पुकार का सहारा लिया, लेकिन सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि भागने तक का मौका नहीं मिला। जो सैनिक बच पाए, वे मलबे में दबे साथियों को बाहर निकालने की कोशिश में पूरी रात लगे रहे।


स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि यह बारिश सामान्य नहीं थी। ऊपर पहाड़ से कई जगहों पर एकसाथ पानी, मलबा और चट्टानें गिरीं। कुछ ने कहा कि ऐसा लगा जैसे पहाड़ फट गया हो। जिस गांव में कल तक रौनक थी, वो आज कीचड़ और पत्थरों का ढेर बन गया है। कई लोग अभी भी लापता हैं, जिनकी तलाश में स्थानीय लोग और बचाव टीमें लगातार जुटी हुई हैं।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस आपदा पर दुख जताया है और हर संभव राहत देने का आश्वासन दिया है। राहत और बचाव कार्यों को तेज करने के लिए सेना, NDRF, SDRF, और वायुसेना की टीमों को लगाया गया है। ड्रोन और खोजी कुत्तों की मदद से लापता लोगों को ढूंढ़ने का प्रयास जारी है।


यह आपदा एक बार फिर यह दिखा गई कि हिमालयी क्षेत्र कितनी नाजुक स्थिति में है। मौसम की मार, ग्लेशियरों का पिघलना और पर्यावरण असंतुलन अब त्रासदी में तब्दील होता जा रहा है। उत्तरकाशी की ये घटना केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक दर्दनाक हकीकत है। मुश्किल समय में पहाड़ के लोग एक बार फिर हिम्मत के साथ डटे हुए हैं, लेकिन सवाल ये है कि कब तक प्रकृति की अनदेखी हम पर ऐसे ज़ख्म छोड़ती रहेगी?

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