भारत ने अमेरिका के साथ ₹31,500 करोड़ का एक बड़ा रक्षा सौदा रद्द कर दिया है, और यह फैसला सीधे तौर पर डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ के जवाब में लिया गया है। यह सौदा अमेरिका से अत्याधुनिक हथियारों और रक्षा उपकरणों की खरीद को लेकर था, जिसमें उन्नत तकनीक वाले सैन्य ड्रोन और मिसाइल सिस्टम शामिल थे। भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध बताते हुए खारिज कर दिया और इसका संदेश साफ था — जब सम्मानजनक व्यापार नहीं होगा, तो साझेदारी भी नहीं होगी।
दरअसल, भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ महीनों से व्यापार वार्ता चल रही थी। अमेरिका चाहता था कि भारत उसके कृषि, डेयरी और टेक्नोलॉजी क्षेत्र में बाजार खोले, जबकि भारत चाहता था कि अमेरिकी टैरिफ में कटौती हो और उसे रणनीतिक साझेदार का दर्जा मिले। बातचीत पांच दौर तक चली, लेकिन कुछ मुद्दों पर मतभेद कायम रहे — खासकर डेयरी उत्पादों और डिजिटल डेटा से जुड़ी नीतियों पर। भारत ने कई बार अपनी स्थिति स्पष्ट की, लेकिन अमेरिका की तरफ से अपेक्षित लचीलापन नहीं दिखा।
1 अगस्त को ट्रंप प्रशासन ने अचानक भारत पर 25% टैरिफ लागू कर दिया, और साथ ही एक और 25% का पेनल्टी टैरिफ भी जोड़ दिया, जिससे कुल प्रभावी दर 50% हो गई। इस फैसले को भारत ने झटका माना और इसे व्यापारिक विश्वास के खिलाफ करार दिया। इसके बाद भारत सरकार ने अमेरिका को दिया गया ₹31,500 करोड़ का रक्षा सौदा रद्द कर दिया। सूत्रों के अनुसार, भारत अब इस सौदे को घरेलू निर्माण के जरिए पूरा करना चाहता है और इसके लिए 'मेक इन इंडिया' को प्राथमिकता दी जा रही है।
माना जा रहा है कि भारत अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान की संभावित खरीद को भी रद्द कर सकता है। इस निर्णय से दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग पर गंभीर असर पड़ सकता है। अमेरिकी कंपनियों को बड़ा नुकसान होने की संभावना है क्योंकि भारत का रक्षा बाजार दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ बाजार है, और यहां से एक बार बाहर होना मतलब वर्षों की मेहनत पर पानी फेर देना।
भारत सरकार के इस फैसले को सख्त लेकिन ज़रूरी कदम के रूप में देखा जा रहा है। सरकार का मानना है कि साझेदारी आपसी सम्मान पर आधारित होनी चाहिए, न कि दबाव और शर्तों पर। रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने भी साफ किया है कि भारत अपनी संप्रभुता और आत्मनिर्भरता से समझौता नहीं करेगा, चाहे कीमत कुछ भी हो।
यह घटनाक्रम दोनों देशों के संबंधों में आई दरार को उजागर करता है। कभी जिसे सामरिक सहयोग का स्वर्ण युग कहा जा रहा था, वह अब अविश्वास और प्रतिरोध के दौर में पहुंच गया है। यह स्पष्ट है कि भारत अब न तो दबाव में झुकेगा, न ही अवांछित समझौते करेगा। अब आगे की दिशा कूटनीति और राष्ट्रीय हितों के संतुलन से तय होगी।
