आभा सिन्हा, पटना
हिन्दू धर्म में दीपक का विशेष महत्व होता है। दीपक केवल एक साधारण प्रकाश का स्रोत नहीं होता है, बल्कि यह ऊर्जा, ज्ञान और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। जब नवरात्र का पावन पर्व आता है, तब माँ दुर्गा के भक्त पूरे श्रद्धा भाव से अखंड ज्योत जलाते हैं। यह ज्योत पूरे नौ दिनों तक बिना बुझाए निरंतर प्रज्ज्वलित रखी जाती है। इसे केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि साधना, श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि जहाँ अखंड ज्योति जलती रहती है, वहाँ दिव्य शक्ति का वास होता है। माँ दुर्गा स्वयं उस स्थान पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं।
नवरात्र का अर्थ है – "नौ रातें", जो शक्ति की आराधना के लिए समर्पित हैं। यह पर्व वर्ष में दो बार चैत्र और आश्विन माह में आता है। माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा इन दिनों में की जाती है। नवरात्र में घटस्थापना की जाती है। माता के समक्ष विशेष पूजा-पाठ का आयोजन होता है। व्रत, भजन, पाठ, दुर्गा सप्तशती का पाठ और हवन का विधान होता है और सबसे महत्वपूर्ण होता है “अखंड ज्योत” का जलना। अखंड दीपक माता के आशीर्वाद को निरंतर बनाए रखने का माध्यम माना गया है। यह दीप केवल प्रकाश ही नहीं फैलाता है बल्कि घर के वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
“अखंड ज्योत” का अर्थ है, ऐसी लौ जो कभी खंडित न हो। निरंतरता, जिसमें कोई रुकावट न आए। प्रकाश, ज्ञान, ऊर्जा और दिव्यता का प्रतीक होता है। हिन्दू दर्शन के अनुसार, दीपक का संबंध "आत्मा" और "परमात्मा" से है। दीपक का जलना यह संदेश देता है कि जिस प्रकार लौ अंधकार को दूर करती है, उसी प्रकार ज्ञान और भक्ति जीवन के दुख, क्लेश और अज्ञान को मिटाता है।
नवरात्र में अखंड दीप जलाना माता की आराधना का प्रमुख अंग है। मान्यता है कि इससे माता का आशीर्वाद सदा घर पर बना रहता है। जो भक्त नवरात्र में संकल्प लेकर अखंड दीप जलाते हैं, उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। दीपक की ज्योति से घर का वातावरण शुद्ध होता है और वास्तु दोष दूर होता है। जहाँ अखंड दीप जलता है, वहाँ नकारात्मक शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर पाती है। अखंड ज्योत को लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। यह धन-धान्य, स्वास्थ्य और शांति लाती है।
अखंड दीप जलाना जितना पवित्र है, उतना ही इसमें अनुशासन आवश्यक है। शास्त्रों में इसके कुछ नियम बताए गए हैं। दीपक मंदिर में माता की प्रतिमा या तस्वीर के सामने रखा जाता है। दीपक की लौ बाएँ से दाएँ की ओर झुकनी चाहिए। इसे कभी सूना नहीं छोड़ा जाता, हमेशा किसी की उपस्थिति आवश्यक है। दीपक में बार-बार बत्ती नहीं बदलनी चाहिए। दीपक से दीपक नही जलाना चाहिए इसे अशुभ माना गया है। सामान्यतः घी का दीपक सर्वोत्तम माना गया है। यदि बिना कारण के दीपक बुझ जाए, तो इसे अपशकुन माना जाता है। दीपक में कपूर या लौंग डालने से वातावरण शुद्ध और सुगंधित रहता है।
वास्तु शास्त्र में दीपक को घर की ऊर्जा का स्रोत बताया गया है। उत्तर-पूर्व दिशा में दीपक जलाना सबसे शुभ माना जाता है। घी का दीपक घर में सुख-शांति और स्वास्थ्य बढ़ाता है। सरसों के तेल का दीपक नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है। अखंड दीपक जलने से परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।
अक्सर लोग मानते हैं कि यह केवल धार्मिक परंपरा है, लेकिन इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपा हैं। घी और कपूर की महक घर के वातावरण को शुद्ध करती है और बैक्टीरिया को नष्ट करती है। दीपक की लौ को देखने से मस्तिष्क शांत होता है और तनाव कम होता है। दीपक जलने से वातावरण में हल्की गर्मी पैदा होती है जो वायु शुद्धि में सहायक होती है। लगातार दीपक की लौ को देखने से ध्यान और एकाग्रता बढ़ती है।
अखंड ज्योत केवल एक दीपक नहीं है, बल्कि यह साधक की साधना का प्रतीक है। जब साधक संकल्प लेकर नवरात्र में दीपक जलाता है, तो यह उसकी अडिग निष्ठा को दर्शाता है। अखंड दीप निरंतर साधना और भक्ति का प्रतीक है। यह साधक को नकारात्मकता से बचाकर आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।
घी और कपूर की महक से सांस की नली साफ होती है। दीपक की रोशनी से मन प्रसन्न रहता है। नियमित रूप से दीपक के सामने बैठने से अवसाद और चिंता कम होती है। दीपक की लौ और सुगंध से नींद बेहतर आती है।
स्वर्णिम रंग की लौ, धन-धान्य की प्राप्ति का संकेत होता है। लौ का ऊँचा उठना, भाग्योदय का संकेत होता है। दीपक का बार-बार बुझना, घर में किसी समस्या का संकेत होता है। लौ का काँपना, वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का संकेत होता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में अखंड दीपक जलाने की परंपरा अलग-अलग रूपों में प्रचलित है। उत्तर भारत में दुर्गा पूजा और शक्ति साधना के समय। महाराष्ट्र में देवी मंदिरों में विशेषत अखंड दीप जलता है। दक्षिण भारत में कई मंदिरों में दीप स्तंभ (दीपमालिका) अखंड रूप से जलते रहते हैं। राजस्थान में शक्ति पीठों में अखंड ज्योत का विशेष महत्व है।
गांव-गांव में यह मान्यता है कि जहाँ अखंड दीप जलता है, वहाँ देवता का विशेष वास होता है। लोग इसे सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक मानते हैं। ग्रामीण परिवेश में अक्सर लोग मानते हैं कि अखंड दीप जलाने से खेत-खलिहान सुरक्षित रहते हैं और विपत्तियाँ नहीं आती है।
आज की व्यस्त जीवनशैली में भी लोग अखंड दीप जलाते हैं। यह परंपराओं से जोड़े रखता है। यह मानसिक शांति और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है। यह परिवार में एकता और सामंजस्य का प्रतीक है।
नवरात्र में अखंड ज्योत जलाना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह जीवन दर्शन है। यह सिखाता है कि जीवन में भी भक्ति और श्रद्धा निरंतर जलती रहनी चाहिए। दीपक की लौ की तरह जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना चाहिए। अखंड ज्योत माता दुर्गा की कृपा का प्रतीक है। यह घर-परिवार को सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और शांति देती है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह वातावरण को शुद्ध करती है और मानसिक संतुलन बनाए रखती है। इसलिए नवरात्र में अखंड दीप जलाना हर दृष्टि से मंगलकारी और लाभकारी है।
