दरभंगा के पंचांगकारों और पंडित सभा के निर्णय अनुसार - इस बार नवरात्र का क्रम 11 दिनों तक चलेगा

Jitendra Kumar Sinha
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भारत त्योहारों की भूमि है। यहां हर पर्व का अपना महत्व, परंपरा और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव है। इन्हीं त्योहारों में से एक है “दशहरा”, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है। यह त्योहार केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। हर वर्ष नवरात्रि के दस दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की जाती है और दसवें दिन यानि विजयादशमी को देवी की प्रतिमाओं का विसर्जन होता है। लेकिन इस बार दरभंगा में एक खास स्थिति बनी है यहां दशहरा 10 नहीं, बल्कि 11 दिनों तक मनाया जायेगा।

पंचांगकारों और पंडित सभा के गहन विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया है कि इस बार तिथियों के संयोग के कारण नवरात्र का क्रम 11 दिनों तक चलेगा। 22 सितंबर को कलश स्थापन के साथ नवरात्र आरंभ होगा और 02 अक्तूबर को विजयादशमी मनायी जाएगी। विसर्जन 11वें दिन होगा, जिससे भक्तों को एक दिन अधिक तक मां दुर्गा के दर्शन का अवसर मिलेगा।

हिन्दू धर्म में पर्व-त्योहारों का निर्धारण पंचांग के आधार पर किया जाता है। पंचांग पांच अंगों- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण, पर आधारित होता है। जब कोई तिथि दो दिनों तक रहती है या एक तिथि का संयोग विसर्जन तिथि के साथ नहीं बैठता, तो त्योहार की अवधि लंबी हो जाती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। दरभंगा की पंडित सभा में पंचांगकारों ने गहन विचार-विमर्श कर यह निर्णय लिया कि 22 सितंबर को कलश स्थापना और नवरात्र आरंभ होगा। मां दुर्गा की प्रतिमाओं का पूजन लगातार 10 दिनों तक किया जायेगा। 02 अक्तूबर को विजयादशमी मनायी जायेगी। विसर्जन का कार्य 11वें दिन यानि 03 अक्तूबर को किया जायेगा। यह स्थिति पंचांग में तिथियों के संयोग के कारण बनी है।

दशहरा भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। इसे मुख्यतः दो कारणों से मनाया जाता है। देवी दुर्गा की विजय- नवरात्र में मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए इसे असत्य पर सत्य की विजय का पर्व माना जाता है। श्रीराम की विजय-  इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया और सीता जी को वापस लाया। इसीलिए इसे विजयादशमी कहा जाता है। इस दिन रावण दहन की परंपरा भी प्रचलित है, जिसमें बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक प्रदर्शन होता है।

दरभंगा, जिसे मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है, का दशहरा बेहद खास होता है। यहां दुर्गा पूजा का इतिहास सैकड़ों वर्षों पुराना है। दरभंगा राज परिवार ने इस पर्व को और भव्य रूप दिया है। यहां की दुर्गा पूजा में परंपरा, संस्कृति और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इस बार का 11 दिनों का दशहरा यहां की परंपरा को और भी विशेष बना देगा। भक्तों को एक दिन अधिक तक मां दुर्गा की आराधना का अवसर मिलेगा। साथ ही विसर्जन के दिन शोभायात्रा और उत्सव का भी अलग ही आनंद रहेगा।

लंबी अवधि का पूजन-  सामान्यतः नवरात्र 9 या 10 दिनों तक चलता है, लेकिन इस बार 11 दिनों का विशेष योग बना है। भक्तों के लिए अधिक अवसर- श्रद्धालु एक दिन और मां दुर्गा के दर्शन कर सकेंगे। आर्थिक और सामाजिक प्रभाव- बाजारों में सजावट, खरीदारी और मेलों की अवधि बढ़ जाएगी। सांस्कृतिक उत्सव का विस्तार- नाट्य-प्रदर्शन, रावण दहन और झांकी की तैयारियों में भी एक दिन का विस्तार होगा।

विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन होता है। इसे देवी की विदाई के रूप में देखा जाता है। भक्तजन ‘अगले वर्ष फिर आना’ की प्रार्थना के साथ माता को विदा करते हैं। इस बार चूंकि विसर्जन 11वें दिन होगा, इसलिए भक्तों के लिए यह अवसर और भी भावुक और विशेष रहेगा।

हिन्दू धर्म में तिथि का अत्यधिक महत्व है। एक भी तिथि का हेरफेर पूरे पर्व की अवधि को बदल सकता है। जैसे इस बार द्वितीया तिथि दो दिनों तक रहने और दशमी के साथ विसर्जन तिथि का मेल न बैठने के कारण दशहरा 11 दिनों का हो गया। इसे पंचांग की वैज्ञानिकता भी कहा जा सकता है, क्योंकि खगोलीय गणनाओं के आधार पर ही तिथियों का निर्धारण होता है।

दशहरा केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। इस बार का 11 दिनों का दशहरा सामाजिक एकता को और मजबूत करेगा। कलात्मक प्रस्तुतियों (रामलीला, नृत्य-नाट्य, झांकी) का समय बढ़ाएगा। आर्थिक गतिविधियों (बाजार, मेला, सजावट) में और तेजी लाएगा।

दरभंगा में इस बार का दशहरा ऐतिहासिक और विशेष होने वाला है। पंडित सभा के पंचांगकारों ने तिथियों के गहन अध्ययन के बाद इसे 11 दिनों का घोषित किया है। इससे भक्तों को अधिक समय तक पूजा और दर्शन का अवसर मिलेगा। साथ ही सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी यह पर्व और अधिक प्रभावी और आनंददायी होगा।


 


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