आभा सिन्हा, पटना
भारतीय संस्कृति और धर्म में नवरात्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह केवल उत्सव ही नहीं बल्कि साधना, आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का पर्व है। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक स्वरूप का अपना विशेष महत्व और रहस्य है। नवरात्र के नवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है। वह देवी, जो सम्पूर्ण सृष्टि को सिद्धियां प्रदान करती हैं और साधकों को आत्मज्ञान, मुक्ति तथा मोक्ष का आशीर्वाद देती हैं।
‘नवरात्र’ शब्द का अर्थ है नौ रातें। यह नौ दिन और रातें साधना और शक्ति की उपासना के प्रतीक माने जाते हैं। भारत के ऋषि-मुनियों ने रात्रि को साधना और तपस्या के लिए अधिक उपयुक्त माना है। इसी कारण दीपावली, शिवरात्रि, होलिका दहन और नवरात्र जैसे पर्व रात्रि में मनाने की परंपरा रही है। नवरात्र में यह विश्वास किया जाता है कि देवी दुर्गा स्वयं पृथ्वी पर अवतरित होकर भक्तों के बीच रहती हैं और उनके दुखों का निवारण करती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब राक्षस महिषासुर ने पृथ्वी और स्वर्गलोक में अत्याचार करना शुरू किया, तब देवताओं ने एकत्र होकर अपनी शक्तियों का संयोग किया और मां दुर्गा का प्राकट्य हुआ। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भीषण युद्ध हुआ और दसवें दिन देवी ने महिषासुर का वध किया। यही कारण है कि दशहरा और विजयादशमी को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।
मां सिद्धिदात्री को कमल या सिंह पर विराजमान दर्शाया जाता है। उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें वे शंख, गदा, कमल और चक्र धारण करती हैं। उनके स्वरूप में सौम्यता और करुणा के साथ-साथ सिद्धियों का अद्भुत तेज झलकता है। वे भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करती हैं और उनकी अज्ञानता का नाश करती हैं।
कथाओं में वर्णित है कि ब्रह्मांड की रचना के समय देवी कुष्मांडा ने त्रिमूर्ति की उत्पत्ति की, ब्रह्मा (सृजन), विष्णु (पालन) और शिव (संहार)। भगवान शिव ने देवी से पूर्णता प्रदान करने का वरदान मांगा। तब देवी ने मां सिद्धिदात्री का प्राकट्य किया।
मां सिद्धिदात्री ने भगवान शिव को 18 प्रकार की सिद्धियां प्रदान कीं। इनमें अष्ट सिद्धियां और दस गौण सिद्धियां शामिल हैं। इन्हीं सिद्धियों के कारण भगवान शिव अर्धनारीश्वर रूप में भी विख्यात हुए। मां सिद्धिदात्री ने ही उनके आधे शरीर को स्त्री स्वरूप में परिवर्तित किया, जिससे सृष्टि के निर्माण की प्रक्रिया संभव हुई।
मां सिद्धिदात्री द्वारा प्रदत्त सिद्धियों में प्रमुख अष्ट सिद्धियां हैं अणिमा- स्वयं को अति सूक्ष्म बना लेने की शक्ति। महिमा- स्वयं को असीमित विशाल बना लेने की शक्ति। गरिमा- अत्यधिक भारी बनने की शक्ति। लघिमा- अत्यंत हल्का बनने की शक्ति। प्राप्ति- इच्छित वस्तु प्राप्त करने की शक्ति। प्राकाम्य- मनोकामना पूर्ण करने की शक्ति। ईशित्व- सृष्टि पर ईश्वरतुल्य अधिकार की शक्ति। वशित्व- सबको वश में करने की शक्ति। इसके अतिरिक्त दस गौण सिद्धियां भी हैं जो साधक को अद्भुत शक्तियों से संपन्न करती हैं। इन सभी सिद्धियों का दान मां सिद्धिदात्री ने भगवान शिव को किया।
मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव अर्धनारीश्वर कहलाए। अर्धनारीश्वर का स्वरूप स्त्री और पुरुष के सामंजस्य का प्रतीक है। यह केवल दार्शनिक विचार ही नहीं बल्कि सृष्टि के संतुलन का भी संदेश है। इस रूप में भगवान शिव यह प्रदर्शित करते हैं कि स्त्री और पुरुष मिलकर ही जीवन और सृष्टि का निर्माण कर सकते हैं।
नवरात्र के नवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा विशेष महत्व रखती है। भक्तजन इस दिन विशेष पूजा-पाठ करते हैं। प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर, कलश स्थापना के साथ मां सिद्धिदात्री का ध्यान करना चाहिए, लाल या गुलाबी पुष्प, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर, शंख और घंटी बजाकर देवी का आह्वान कर, मां के मंत्र का जाप “सिद्धगन्धर्व- यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि । सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।” करना चाहिए। कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। इस दिन नौ कन्याओं को भोजन कराकर आशीर्वाद लिया जाता है।
मां सिद्धिदात्री की पूजा करने वाले भक्तों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, अष्ट सिद्धि और नव निधि की प्राप्ति। अज्ञान का नाश और आत्मज्ञान का प्रकाश। जीवन में बुद्धि और विवेक का विकास। मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति। कठिनाइयों से मुक्ति और इच्छित फल की प्राप्ति।
हिमाचल प्रदेश में नंदा पर्वत पर मां सिद्धिदात्री का प्रसिद्ध तीर्थ स्थित है। यह स्थान सिद्धपीठ के रूप में जाना जाता है और यहां पर देवी की विशेष पूजा-अर्चना होती है। यह तीर्थ श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है बल्कि दार्शनिक संदेश भी देता है। वे यह सिखाती हैं कि जीवन में सिद्धियों की प्राप्ति तभी संभव है जब श्रद्धा, निष्ठा और आत्मसंयम के मार्ग पर चलें।
नवरात्र की नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा का विशेष महत्व है। वे सभी सिद्धियों की दात्री हैं और साधकों को आत्मज्ञान का वरदान देती हैं। भगवान शिव को अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रतिष्ठित करने वाली मां सिद्धिदात्री जीवन में संतुलन, सामंजस्य और पूर्णता का संदेश देती हैं। भक्त जब पूरे विधि-विधान और श्रद्धा से मां सिद्धिदात्री की आराधना करते हैं तो उन्हें जीवन में सफलता, शांति, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि नवरात्र के नौ दिनों में मां सिद्धिदात्री की पूजा को साधना का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण माना गया है।
