प्राचीन शाटियाल शिलालेखों की विरासत - “शिला-गैलरी”

Jitendra Kumar Sinha
0





उत्तर पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में कराकोरम हाईवे के किनारे स्थित “शाटियाल शिलालेख” मानव सभ्यता की उन अनमोल निशानियों में गिना जाता है, जो हजारों वर्ष पुरानी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है। कराकोरम की ऊंची और कठोर पहाड़ियों के बीच बसी यह शिला-गैलरी अपने भीतर बीते युगों की कहानी समेटे हुए है।

शाटियाल से राइकोट ब्रिज तक लगभग 100 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में ये शिलालेख फैले हुए हैं। इसे दुनिया की सबसे बड़ी खुली शिला-गैलरी कहा जाता है। यहां अब तक लगभग 50,000 से अधिक शिलाचित्र और करीब 5,000 शिलालेख दर्ज किया जा चुका है। इन शिलालेखों में मानव जीवन की झलक, धार्मिक आस्थाएं, सामाजिक संरचनाएं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की कहानियां स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं।

शाटियाल की चट्टानों पर बने चित्र केवल कला की अभिव्यक्ति नहीं हैं, बल्कि यह उस काल की सभ्यता और संस्कृति का प्रतिबिंब भी हैं। इसमें प्राचीन मानव द्वारा शिकार के दृश्य, युद्ध के चित्रण, धार्मिक प्रतीक, पशु-पक्षियों की आकृतियां और यात्रा मार्गों का उल्लेख मिलता है। इससे स्पष्ट होता है कि कराकोरम क्षेत्र न केवल व्यापारिक मार्ग था बल्कि विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों के मिलन का केंद्र भी था।

इन शिलालेखों में बौद्ध धर्म, हिन्दू धर्म और स्थानीय आस्थाओं के प्रतीक भी देखने को मिलता है। कराकोरम का यह इलाका प्राचीन काल से ही सिल्क रूट का हिस्सा रहा है, जहां से व्यापारी और यात्री गुजरते हुए अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक छाप छोड़ते गए। विशेषकर बौद्ध स्तूपों और प्रतीकों का अंकन इस बात का प्रमाण है कि यह क्षेत्र बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का महत्वपूर्ण केंद्र रहा होगा।

इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, इन शिलालेखों की उम्र हजारों वर्ष पुरानी है। यह प्राचीन लेखन प्रणाली और भाषा के विकास की भी झलक देता है। इनमें से कुछ शिलालेख संस्कृत, खरोष्ठी और ब्राह्मी जैसी लिपियों में लिखे गए हैं, जो भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक पहुंच को दर्शाता है।

आज यह शिला-गैलरी मानव इतिहास का जीवंत संग्रहालय है, किंतु आधुनिक विकास कार्य, मौसम की मार और उपेक्षा के कारण यह धरोहर खतरे में है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते इसका संरक्षण नहीं किया गया तो यह अद्वितीय विरासत धीरे-धीरे नष्ट हो सकती है। यूनैस्को जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की पहल और स्थानीय प्रशासन की जागरूकता इस धरोहर को बचाने के लिए आवश्यक है।

शाटियाल शिलालेख केवल पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां नहीं हैं, बल्कि यह मानवता के विकास की गाथा हैं। यह स्थल बताता है कि प्राचीन मनुष्य कैसे सोचता था, जीता था और अपनी भावनाओं को पत्थरों पर अंकित कर अमर कर देता था। कराकोरम की इन चट्टानों में छिपी यह अनमोल विरासत आज भी अपनी जड़ों से जुड़ने का संदेश देती है और साथ ही इसके संरक्षण की आवश्यकता पर बल देती है।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top