काठमांडू से आई एक ऐतिहासिक खबर ने पूरे दक्षिण एशिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने देश के नाम अपने विशेष संबोधन में यह घोषणा की है कि अब नेपाल में मतदान की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दी गई है। यह कदम नेपाल की राजनीति में एक बड़ा और साहसिक बदलाव माना जा रहा है।
नेपाल में हाल के वर्षों में युवा वर्ग के बीच लोकतांत्रिक भागीदारी और अधिकारों को लेकर गहन असंतोष देखा गया है। इस असंतोष ने “जेन-जी आंदोलन” का रूप लिया, जिसमें 16 से 25 वर्ष तक के युवाओं ने सड़क से सोशल मीडिया तक आवाज उठाई। उनका मुख्य तर्क यह था कि जब 16 साल का युवा देश की अर्थव्यवस्था, तकनीक, शिक्षा और श्रम बाजार में सक्रिय भूमिका निभा सकता है, तो उसे लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित क्यों रखा जाए। यही दबाव राजनीतिक गलियारों तक पहुँचा और अंततः सरकार ने चुनाव कानून में बदलाव कर अध्यादेश पारित किया।
प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने कहा है कि 5 मार्च तक देश में चुनाव संपन्न कराए जाएंगे और इस बार पहली बार 16 वर्ष से ऊपर के युवाओं को भी मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा। इससे नेपाल की मतदाता संख्या में भारी बढ़ोतरी होने की संभावना है। आँकड़ों के अनुसार, नेपाल की लगभग 35% आबादी 16 से 24 वर्ष के बीच की है। इसका सीधा मतलब है कि अब देश की राजनीति में युवाओं की निर्णायक भूमिका होगी।
किसी भी लोकतंत्र की मजबूती उसके नागरिकों की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है। नेपाल में यह कदम युवाओं को राजनीति से जोड़ने का एक अनूठा अवसर प्रदान करेगा। अब तक, 18 वर्ष से कम आयु वाले युवा केवल छात्र राजनीति या आंदोलनों तक ही सीमित रहते थे। लेकिन अब वे प्रत्यक्ष रूप से चुनाव और नीति निर्माण की प्रक्रिया में शामिल होंगे।
यह फैसला ऐतिहासिक है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। 16 वर्ष के युवाओं की राजनीतिक समझ अभी विकसित हो रही होती है। ऐसे में यह आशंका है कि वे प्रचार या गलत सूचनाओं के शिकार हो सकते हैं। इतने कम उम्र में मतदान का अधिकार देने से पहले राजनीतिक साक्षरता और चुनावी प्रक्रिया की शिक्षा बेहद जरूरी होगी। युवाओं को लुभाने के लिए दल किस तरह की नीतियाँ और वादे करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
नेपाल का यह निर्णय न केवल उसके आंतरिक लोकतंत्र को नई दिशा देगा, बल्कि दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के लिए भी एक मिसाल पेश करेगा। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में मतदान की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष है। ऐसे में नेपाल का यह कदम बहस छेड़ सकता है कि क्या अन्य देशों को भी युवाओं को जल्दी मताधिकार देने की दिशा में सोचना चाहिए।
नेपाल ने मतदान की उम्र घटाकर 16 वर्ष कर दी है, जो युवाओं के विश्वास और उनकी भागीदारी को बढ़ाने वाला ऐतिहासिक कदम है। यह बदलाव केवल चुनावी आँकड़ों का विस्तार नहीं है, बल्कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नई ऊर्जा और दिशा देने वाला है। आने वाले चुनाव इस बात का पहला परीक्षण होगा कि क्या नेपाल का युवा वर्ग वास्तव में राजनीति की कमान संभालने के लिए तैयार है।
