प्राचीन मिस्र की अद्भुत स्थापत्य विरासत का प्रतीक है - “अबू सिंबेल का मंदिर”

Jitendra Kumar Sinha
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दक्षिणी मिस्र में नील नदी के पश्चिमी तट पर स्थित “अबू सिंबेल का मंदिर” प्राचीन मिस्र की स्थापत्य कला और धार्मिक आस्था का जीवंत उदाहरण है। यह मंदिर न केवल मिस्र की सांस्कृतिक विरासत का गौरव है, बल्कि मानव प्रतिभा और तकनीकी कुशलता का प्रतीक भी है। इसे मिस्र के महान फराओ रामेसेस द्वितीय ने अपने शासनकाल (1264–1244 ईसा पूर्व) में बनवाया था। यह मंदिर देवताओं आमुन, रा-होराखती, पताह और स्वयं रामेसेस द्वितीय को समर्पित है।

“अबू सिंबेल मंदिर” को रेत-पत्थरों की विशाल पहाड़ी काटकर बनाया गया था। इसके प्रवेश द्वार पर चार विशालकाय मूर्तियां हैं, जिनमें प्रत्येक की ऊँचाई लगभग 66 फीट है। ये मूर्तियां स्वयं फराओ रामेसेस द्वितीय की हैं, जो अपने शासन की शक्ति और दिव्यता का प्रतीक हैं। मंदिर के भीतर जाने पर ‘हाइपोस्टाइल हॉल’ दिखाई देता है, जिसमें अनेक विशाल स्तंभ और दीवारों पर सुंदर नक्काशियां हैं। ये नक्काशियां उस समय की धार्मिक मान्यताओं, युद्धों और उत्सवों की झलक प्रस्तुत करती हैं।

इस हॉल की सबसे उल्लेखनीय विशेषता इसकी प्रकाश व्यवस्था है। सूर्य की किरणें साल में दो बार, 22 फरवरी और 22 अक्टूबर को मंदिर के भीतर देवताओं की प्रतिमाओं तक पहुंचती हैं और उन्हें आलोकित करती हैं। यह वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत अद्भुत संयोग है, जो प्राचीन मिस्री वास्तुकारों की खगोल संबंधी समझ को दर्शाता है।

1960 के दशक में जब अस्वान हाई डैम का निर्माण शुरू हुआ था, तब इस क्षेत्र में बनने वाली झील नासेर के कारण अबू सिंबेल मंदिर के डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया था। मिस्र सरकार ने इस विरासत को बचाने के लिए यूनेस्को की सहायता ली। 1964 से 1968 के बीच मंदिर को काटकर 210 फीट ऊँचाई पर नए स्थान पर स्थापित किया गया। यह विश्व स्तर पर एक ऐतिहासिक संरक्षण परियोजना थी, जिसमें मंदिर को 1,000 से अधिक पत्थर के टुकड़ों में काटकर नए सिरे से जोड़ा गया।

रामेसेस द्वितीय ने यह मंदिर अपने शासन की महिमा और देवताओं के प्रति भक्ति व्यक्त करने के लिए बनवाया था। मंदिर के भीतर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ मिस्री धार्मिक विचारों की गहराई को दर्शाता है, जहाँ राजा को देवता के समान पूजनीय माना जाता था। मंदिर के समीप ही उनकी प्रिय रानी नेफरतारी को समर्पित एक छोटा मंदिर भी है, जो मिस्र की स्त्री-शक्ति और प्रेम की भावना का प्रतीक है।

अबू सिंबेल का मंदिर केवल पत्थरों का समूह नहीं है, बल्कि मानव सभ्यता की रचनात्मकता, आस्था और दृढ़ संकल्प का जीवंत स्मारक है। यह सिखाता है कि विरासत केवल अतीत की धरोहर नहीं है, बल्कि भविष्य की प्रेरणा भी है। मिस्र की रेत के बीच खड़ा यह मंदिर आज भी संसार को प्राचीन सभ्यता की अद्भुत उपलब्धियों की कहानी सुनाता है।



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