एक नवंबर से क्लेम सेटलमेंट होगा आसान - ग्राहक अपने बैंक खाते में जोड़ सकेंगे चार नॉमिनी

Jitendra Kumar Sinha
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भारतीय बैंकिंग प्रणाली में 1 नवंबर 2025 से एक ऐतिहासिक बदलाव लागू होने जा रहा है। अब खाताधारक अपने बैंक खाते में चार नॉमिनी जोड़ सकेंगे। यह कदम वित्त मंत्रालय द्वारा ग्राहकों की सुविधा, पारदर्शिता और क्लेम सेटलमेंट की प्रक्रिया को आसान बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है। अब तक एक खाता में एक या दो नॉमिनी जोड़ने की अनुमति थी, लेकिन अब ग्राहक अपनी इच्छा से चार लोगों को नामित कर सकेंगे।

इस बदलाव का प्रभाव न केवल व्यक्तिगत बैंकिंग अनुभव पर पड़ेगा बल्कि इससे वित्तीय उत्तराधिकार प्रक्रिया भी अधिक पारदर्शी और सुव्यवस्थित बनेगा।

नॉमिनी या नामांकित व्यक्ति वह होता है जिसे खाताधारक अपनी मृत्यु या अक्षम होने की स्थिति में खाते की धनराशि प्राप्त करने का अधिकार देता है। बैंकिंग प्रणाली में नॉमिनी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह तय करता है कि खाताधारक के निधन के बाद उसकी जमा राशि या संपत्ति किसे मिलेगा। नॉमिनी व्यवस्था विवादों को रोकता है और धन की पहुंच को सुनिश्चित करता है। यह बैंक और ग्राहकों दोनों के लिए सुरक्षा का एक स्तंभ है।

अब तक अधिकांश बैंकों में एक ही नॉमिनी जोड़ने की अनुमति थी। कई बार ऐसा होता था कि एकल नॉमिनी की अनुपस्थिति में या उनके निधन की स्थिति में परिजनों को क्लेम प्रक्रिया में कठिनाइयाँ होती थी। इसीलिए, वित्त मंत्रालय ने बैंकिंग व्यवस्था को अधिक लचीला, मानवकेंद्रित और पारदर्शी बनाने के लिए इसे आधुनिक रूप दिया है।

1 नवंबर 2025 से खाताधारक अपने खाते में चार नॉमिनी जोड़ सकेंगे। वित्त मंत्रालय के अनुसार, ग्राहक यह भी तय कर पाएंगे कि यह नॉमिनी सिमल्टेनियस (Simultaneous) होंगे या सक्सेसिव (Successive)।

सिमल्टेनियस में खाताधारक सभी नॉमिनियों को एक साथ धन का हिस्सा देने का निर्णय ले सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी खाता में 10 लाख रुपये हैं और चार नॉमिनी चुने गए हैं, तो खाताधारक यह तय कर सकता है कि पहले को 40%, दूसरे को 30%, तीसरे को 20% और चौथे को 10% मिले। कुल प्रतिशत का योग 100 होना अनिवार्य होगा।

सक्सेसिव में नॉमिनियों को क्रमबद्ध रूप से चुना जाएगा। पहला नॉमिनी प्राथमिक हकदार होगा। यदि वह उपलब्ध नहीं है या उसका निधन हो जाता है, तो दूसरा नॉमिनी क्लेम का हकदार बनेगा, और इसी तरह तीसरा और चौथा।

सेफ डिपॉजिट और लॉकर के मामलों में केवल सक्सेसिव नॉमिनेशन की अनुमति होगी, क्योंकि यह वस्तु-आधारित संपत्ति से जुड़ा मामला है।

नई व्यवस्था के तहत, खाताधारक अपनी सुविधा के अनुसार,  चार तक नॉमिनी चुन सकेंगे और हर नॉमिनी का हिस्सा स्वयं निर्धारित कर सकेंगे। यह हिस्सा प्रतिशत में तय किया जाएगा ताकि बैंकिंग लेनदेन में कोई अस्पष्टता न रहे। उदाहरण के तौर पर अगर किसी व्यक्ति ने चार नॉमिनी चुने हैं और उसके खाते में 8 लाख रुपये हैं, तो वह यह स्पष्ट कर सकता है कि पहले नॉमिनी को 3 लाख, दूसरे को 2 लाख, तीसरे को 2 लाख और चौथे को 1 लाख मिले।

यह व्यवस्था क्लेम सेटलमेंट के दौरान पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी और किसी भी तरह के कानूनी विवाद की संभावना को कम करेगी।

वित्त मंत्रालय के अनुसार, बैंकिंग प्रणाली में एकरूपता (uniformity) लाने और ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए यह बदलाव आवश्यक था। अब तक विभिन्न बैंकों में नॉमिनी से जुड़ी प्रक्रियाएं अलग-अलग थीं, कहीं डिजिटल प्लेटफॉर्म पर यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी, तो कहीं नॉमिनी बदलने या रद्द करने की प्रक्रिया जटिल थी। इसलिए मंत्रालय ने “बैंकिंग कंपनियों (नॉमिनेशन) नियम 2025” तैयार किया है।

इसमें नॉमिनेशन जोड़ने, संशोधित करने, रद्द करने और क्लेम करने की पूरी प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य ग्राहक सुविधा को बढ़ाना, क्लेम सेटलमेंट में देरी को खत्म करना, बैंकों के लिए प्रक्रियाओं को एकसमान बनाना, उत्तराधिकार विवादों से बचाव, डिजिटलीकरण और ई-नॉमिनेशन को बढ़ावा देना है। 

नए नियमों के बाद सबसे बड़ा लाभ क्लेम प्रक्रिया में मिलेगा। अभी तक बैंक खाताधारक के निधन के बाद परिजनों को दस्तावेजों और सत्यापन की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था। लेकिन अब यदि चार नॉमिनी पंजीकृत हैं और प्रतिशत तय है, तो बैंक को किसी अतिरिक्त कानूनी प्रक्रिया में नहीं जाना पड़ेगा। इससे पारिवारिक विवादों में कमी, बैंकों पर प्रशासनिक दबाव घटना, दावों के निपटान में समय की बचत और खाताधारक की संपत्ति के प्रति सुरक्षा की गारंटी होगी।

वित्त मंत्रालय का कहना है कि यह व्यवस्था बैंकिंग जगत में पारदर्शिता और ग्राहक-केंद्रितता का नया अध्याय खोलेगी।

नई नीति के तहत सेफ डिपॉजिट बॉक्स और लॉकर सुविधाओं में केवल सक्सेसिव नॉमिनेशन की अनुमति होगी। इसका कारण यह है कि लॉकर में रखी वस्तुएं (जैसे गहने, दस्तावेज़ या संपत्ति पत्र) विभाज्य नहीं होती है। इसलिए यदि पहला नॉमिनी मौजूद नहीं है, तो दूसरा नॉमिनी उत्तराधिकारी बनेगा।

यह कदम उन जटिल परिस्थितियों से निपटने में मदद करेगा, जहां परिवार के सदस्य लॉकर की वस्तुओं पर दावा करते हैं। अब बैंक को यह स्पष्ट दिशा-निर्देश मिलेगा कि किसे वैधानिक रूप से लॉकर की वस्तुओं तक पहुंच दी जानी है।

वित्त मंत्रालय ने इस बदलाव के साथ-साथ पब्लिक सेक्टर बैंकों (PSBs) को भी कई नए अधिकार प्रदान किए हैं। इनमें शामिल हैं अनक्लेम्ड राशि का प्रबंधन- अब सरकारी बैंक अपने उन शेयरों, ब्याज या बॉन्ड रिडेम्पशन की रकम को इन्वेस्टर एजुकेशन एंड प्रोटेक्शन फंड (IEPF) में ट्रांसफर कर सकेंगे, जिनका कोई दावेदार नहीं है। यह व्यवस्था पहले केवल कंपनियों के लिए थी, अब बैंकिंग क्षेत्र पर भी लागू होगी। ऑडिटर्स को बेहतर मेहनताना देने का अधिकार- इससे बैंकों को उच्च गुणवत्ता वाले ऑडिट प्रोफेशनल्स को जोड़ने में मदद मिलेगी, जिससे वित्तीय रिपोर्टिंग की गुणवत्ता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार या लेखा विसंगतियों की संभावना घटेगी। इन कदमों से सार्वजनिक बैंकों में प्रशासनिक सुधार और वित्तीय अनुशासन दोनों मजबूत होंगे।

बैंकिंग कंपनियों (नॉमिनेशन) नियम 2025 में डिजिटल प्रक्रियाओं को विशेष प्राथमिकता दी जाएगी। ग्राहक नेट बैंकिंग, मोबाइल ऐप या बैंक की वेबसाइट से अपने नॉमिनी जोड़, संशोधित या रद्द कर सकेंगे। इससे ग्रामीण और शहरी दोनों ग्राहकों को लाभ मिलेगा। ई-नॉमिनेशन से दस्तावेजी त्रुटियाँ घटेगी और ग्राहक का अनुभव बेहतर होगा।

अब खाताधारक कई सदस्यों को वित्तीय सुरक्षा दे सकता है। स्पष्ट प्रतिशत तय होने से क्लेम विवादों में कमी आएगी। क्लेम सेटलमेंट हफ्तों से घटकर कुछ दिनों में हो सकेगा। नॉमिनी जोड़ने, हटाने या बदलने की सुविधा किसी भी समय। लोग अपने वित्तीय अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक होंगे। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राहकों को नियमों की जानकारी देना चुनौती होगी। कुछ बैंकों की आईटी प्रणालियों को अपडेट करना पड़ेगा। यदि डेटा एकीकृत नहीं हुआ तो गलत दावे हो सकते हैं। अगर पारिवारिक मतभेद हैं तो नॉमिनी होने के बावजूद विवाद संभव हैं।

बैंकिंग विशेषज्ञ डॉ. एस. के. गुप्ता का कहना है  “चार नॉमिनी की व्यवस्था वित्तीय उत्तराधिकार के क्षेत्र में गेम चेंजर साबित होगा। इससे खाते की राशि के वितरण में पारदर्शिता बढ़ेगी और बैंकों पर क्लेम विवादों का बोझ घटेगा।” वित्तीय सलाहकार अनीता शर्मा के अनुसार “अक्सर परिवारों में एक नॉमिनी के निधन या अनुपस्थिति से समस्याएँ उत्पन्न होती थी। अब बहु-नॉमिनी व्यवस्था से यह समस्या खत्म हो जाएगी। यह कदम महिलाओं और बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।” ऑडिट विशेषज्ञ आर. के. मिश्रा कहते हैं “पब्लिक सेक्टर बैंकों को मिले नए अधिकार वित्तीय नियंत्रण और ऑडिट गुणवत्ता को मजबूत करेंगे। अब बैंकों के लिए पारदर्शी ऑडिट प्रथाओं को अपनाना आसान होगा।”

यह बदलाव केवल ग्राहकों के लिए ही नहीं, बल्कि बैंकों के संचालन पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा। क्लेम सेटलमेंट की प्रक्रिया डिजिटल और डेटा-संचालित बनेगी। बैंकिंग सिस्टम में मानकीकरण बढ़ेगा। ग्राहक संतुष्टि दर में वृद्धि होगी। बैंकिंग सेवाओं पर लोगों का भरोसा और अधिक मजबूत होगा। इसके अलावा, यह परिवर्तन “वित्तीय समावेशन” (Financial Inclusion) की दिशा में भी बड़ा कदम है, क्योंकि इससे हर वर्ग के लोगों को अपनी वित्तीय संपत्ति की सुरक्षा का भरोसा मिलेगा।

विश्व के कई देशों में पहले से मल्टी-नॉमिनी व्यवस्था प्रचलित है जैसे कि अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में खाताधारक कई नॉमिनी जोड़ सकते हैं। भारत में यह व्यवस्था देर से आई, परंतु अब इसे डिजिटल बैंकिंग और यूनिफॉर्म नियमों से जोड़ा जा रहा है, जो इसे और अधिक प्रभावी बनाता है। भारत की जनसंख्या और विविध पारिवारिक संरचना को देखते हुए, यह नीति भविष्य में वित्तीय विवादों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

1 नवंबर 2025 के बाद बैंक अपने ग्राहकों को नए नॉमिनेशन फॉर्म प्रदान करेंगे। ग्राहक बैंक शाखा या ऑनलाइन पोर्टल पर जा कर नॉमिनी जोड़ने का विकल्प चुन कर नॉमिनी का नाम, जन्मतिथि, संबंध और हिस्सा (%) दर्ज कर, ई-ओटीपी या हस्ताक्षर से पुष्टि करेंगे। बैंक द्वारा सत्यापन के बाद नॉमिनी अपडेट हो जाएगा। ग्राहक चाहें तो पुराने नॉमिनी को रद्द कर नए जोड़ सकते हैं। हर संशोधन की ई-रिकॉर्ड बैंक के सिस्टम में सुरक्षित रखी जाएगी।

वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इस परिवर्तन का उद्देश्य ग्राहकों को अधिक आजादी, पारदर्शिता और सुरक्षा प्रदान करना है। अब ग्राहकों को नॉमिनी चुनने में पूरी स्वतंत्रता होगी, और बैंकों को क्लेम के समय किसी अतिरिक्त दस्तावेज या वैधानिक घोषणा की आवश्यकता नहीं होगी।

1 नवंबर 2025 से लागू होने वाला यह बदलाव भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में “ग्राहक सशक्तिकरण” का नया अध्याय खोलने जा रहा है। अब ग्राहक अपने जीवनकाल में यह सुनिश्चित कर सकेंगे कि उनकी मेहनत की कमाई उचित हाथों में जाए। यह केवल एक तकनीकी बदलाव नहीं है, बल्कि वित्तीय समानता और उत्तरदायित्व की दिशा में ऐतिहासिक कदम है। नए नियम “सुरक्षित बैंकिंग” को वास्तविक अर्थों में परिभाषित करेगा, जहाँ ग्राहक ही केंद्र में होगा और हर जमा की सुरक्षा उसके अपने प्रियजनों तक सुनिश्चित रूप से पहुँचेगी।



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