चीन के भारतीय दूतावास में रवींद्रनाथ टैगोर की प्रतिमा का हुआ अनावरण

Jitendra Kumar Sinha
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बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास में नोबेल पुरस्कार विजेता कवि, दार्शनिक और विश्व मानव रवींद्रनाथ टैगोर की प्रतिमा का अनावरण हाल ही में किया गया। यह प्रतिमा चीन के प्रसिद्ध मूर्तिकार युआन शिकुन द्वारा निर्मित है, जो भारत और चीन के बीच गहरे सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंधों की प्रतीक बन गया है। इस अवसर ने न केवल दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों को सशक्त किया है, बल्कि सांस्कृतिक संवाद के एक नए अध्याय की भी शुरुआत की है।

रवींद्रनाथ टैगोर केवल भारत के नहीं, बल्कि पूरी मानवता के कवि माने जाते हैं। उन्होंने 1924 में पहली बार चीन की यात्रा की थी। इसके बाद उन्होंने तीन बार इस देश की यात्रा की और हर बार उन्होंने भारत-चीन के सांस्कृतिक एवं बौद्धिक आदान-प्रदान को नई दिशा दी। टैगोर का मानना था कि दोनों देशों की प्राचीन सभ्यताएं एक-दूसरे से सीखकर विश्व में शांति और ज्ञान का संदेश फैलाया जा सकता है।

उनकी यात्राओं के दौरान चीन के कई बुद्धिजीवी और कलाकार उनसे प्रभावित हुए। चीनी कवियों और दार्शनिकों ने टैगोर की रचनाओं का अध्ययन किया और उन्हें अपनी भाषा में अनुवाद किया। बताया जाता है कि कई चीनी विद्वानों ने केवल टैगोर की कविताओं और दार्शनिक विचारों को समझने के लिए बंगाली और अंग्रेजी भाषाएं सीखी।

चीन के सुप्रसिद्ध मूर्तिकार युआन शिकुन ने इस प्रतिमा को अत्यंत भावनात्मक दृष्टिकोण से बनाया है। उन्होंने टैगोर की शांत, विचारशील और करुणामयी मुद्रा को मूर्त रूप दिया है। यह प्रतिमा भारत के सांस्कृतिक दूत के रूप में टैगोर की उस वैश्विक पहचान का प्रतीक है, जिसने सीमाओं से परे मानवता के साझा मूल्यों को रेखांकित किया।

यह प्रतिमा केवल एक कलाकृति नहीं है, बल्कि भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक एकता का जीवंत प्रतीक है। जिस तरह टैगोर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से दोनों देशों के बीच पुल बनाने का कार्य किया था, उसी प्रकार यह प्रतिमा भी आने वाली पीढ़ियों को उस साझा सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाती रहेगी।

दोनों देशों के बीच वर्तमान में भले ही राजनीतिक और आर्थिक मतभेद हों, लेकिन सांस्कृतिक स्तर पर यह प्रयास एक नई सकारात्मक दिशा प्रदान करता है। कला, साहित्य और संगीत हमेशा से वह माध्यम रहे हैं जो राष्ट्रों के बीच संवाद के द्वार खोलता है।

भारतीय दूतावास में टैगोर की प्रतिमा का अनावरण केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव है, दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच आत्मिक जुड़ाव का प्रतीक। यह प्रतिमा आने वाले वर्षों में भारत और चीन के बीच शांति, सहयोग और सांस्कृतिक समरसता की प्रेरणा देती रहेगी।



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