भारतवर्ष की पवित्र भूमि देवी के 51 शक्तिपीठों से अलंकृत है। प्रत्येक शक्तिपीठ न केवल माँ सती के अंग-प्रत्यंग के पतन से जुड़ा है, बल्कि वह स्थान दिव्य ऊर्जाओं का केंद्र भी माना गया है। इन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है भूतधात्री शक्तिपीठ, जो पश्चिम बंगाल के वर्धमान (बर्द्धमान) जिले के खीरग्राम स्थित जुगाड्या (युगाद्या) स्थान पर अवस्थित है। यह वही स्थान है जहाँ माँ सती के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यहाँ माँ की शक्ति रूप में पूजा होती है भूतधात्री के नाम से, और उनके भैरव कहलाते हैं क्षीर खंडक। “भूतधात्री” शब्द का अर्थ होता है भूतों (सजीवों) की धात्री अर्थात् पालन करने वाली माता, जो समस्त प्राणियों का पालन-पोषण करती हैं। यह शक्तिपीठ इस बात का प्रतीक है कि माता न केवल ब्रह्मांड की सृष्टिकर्त्री हैं, बल्कि वह समस्त जीवों की पालनहार भी हैं।
देवी भागवत और कलिका पुराण के अनुसार, जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शंकर का अपमान हुआ, तब सती ने अग्निकुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इससे भगवान शंकर अत्यंत क्रुद्ध हुए और सती के जले हुए शरीर को कंधे पर लेकर वे आकाश में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड में संतुलन बिगड़ गया। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के विभिन्न अंग काट दिए, जो पृथ्वी के विभिन्न स्थलों पर गिरे। इन्हीं स्थानों को आज हम 51 शक्तिपीठ के रूप में जानते हैं। कहा जाता है कि खीरग्राम (जुगाड्या) में जब सती का दायाँ पैर का अँगूठा गिरा, तो यहाँ धरती पर अपूर्व तेज फैल गया। उस स्थान को तब से भूतधात्री पीठ कहा जाने लगा। माँ का यह रूप दयालु, पालनकर्ता और शांत है, जो भक्तों के दुखों का अंत करती हैं और उन्हें नई ऊर्जा प्रदान करती हैं।
‘भूत’ का अर्थ है जीव, प्राणी, अस्तित्व या तत्व और ‘धात्री’ का अर्थ है पोषक या धारण करने वाली शक्ति। इस प्रकार, भूतधात्री का अर्थ हुआ वह शक्ति जो सम्पूर्ण सृष्टि को धारण करती है, पोषित करती है और जीवों का पालन करती है। यह रूप माँ के ‘पोषण तत्त्व’ का प्रतीक है। जहाँ महाकाली विनाश की शक्ति हैं, महालक्ष्मी ऐश्वर्य की, वहीं भूतधात्री पालन और जीवन-संतुलन की देवी मानी जाती हैं।
वर्धमान जिले का खीरग्राम एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है, जो आज भी धार्मिक श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। जुगाड्या या युगाद्या गाँव में यह शक्तिपीठ स्थित है, जो प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक आभा से भरपूर है। भैरव क्षीरखंडक का नाम भी खीरग्राम से जुड़ा है, कहा जाता है कि यहाँ बहने वाले सरोवर का जल दूध की तरह श्वेत और पवित्र था। इसी से इस क्षेत्र का नाम पड़ा ‘खीरग्राम’ और भैरव को कहा गया ‘क्षीरखंडक’। यहाँ मंदिर का वर्तमान स्वरूप अपेक्षाकृत आधुनिक है, परंतु इसके मूल गर्भगृह में प्राचीन लिंग और यंत्रचक्र विद्यमान हैं, जो यह दर्शाता है कि यह स्थल कम-से-कम सहस्रों वर्षों से आराधना का केंद्र रहा है।
भूतधात्री शक्तिपीठ का मंदिर बंगाल की पारंपरिक ‘नवद्वार’ शैली में निर्मित है। लाल ईंटों और पत्थरों से बने इस मंदिर के शीर्ष पर शिखर में त्रिशूल और कमल अंकित हैं। गर्भगृह में देवी की प्रतिमा अत्यंत सौम्य किंतु प्रभावशाली है। माता भूतधात्री को यहाँ चार भुजाओं वाली रूप में दर्शाया गया है एक हाथ में कमंडल, दूसरे में वरमुद्रा, तीसरे में अभय मुद्रा और चौथे में अंकुरित धान की बालियाँ, जो जीवन और पोषण का प्रतीक हैं।
भैरव क्षीरखंडक का मंदिर, मंदिर परिसर के दक्षिण में स्थित है। यहाँ एक विशाल शिवलिंग है, जिसकी पूजा ‘भूतधात्री’ आराधना के साथ ही की जाती है। मंदिर परिसर में शांति और ऊर्जा का अनूठा संगम देखने को मिलता है। सुबह और संध्या आरती के समय जब शंखनाद और घंटियों की ध्वनि गूंजती है, तो ऐसा लगता है मानो सम्पूर्ण वातावरण माँ की शक्ति से ओत-प्रोत हो उठा हो।
भूतधात्री शक्तिपीठ में पूजा की विशेष विधि है। भक्त पहले भैरव क्षीरखंडक की पूजा करते हैं और तत्पश्चात् माता भूतधात्री की आराधना करते हैं। ‘ॐ भूतधात्र्यै नमः’ मंत्र का 108 बार जप अत्यंत फलदायी माना गया है। भूतधात्री की पूजा से रोग, भय और आर्थिक संकट दूर होते हैं। कहा गया है कि जो व्यक्ति जीवन में अस्थिरता, मानसिक तनाव या पारिवारिक कलह से पीड़ित हो, उसे भूतधात्री का स्मरण करना चाहिए, माता स्वयं पालन करने वाली हैं, वह सबका भार अपने ऊपर ले लेती हैं।
नवरात्रि में नौ दिनों तक विशेष अनुष्ठान किया जाता है। सप्तमी और अष्टमी पर यहाँ लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं। वैशाख पूर्णिमा के दिन विशेष भूतधात्री यज्ञ का आयोजन होता है। शिवरात्रि में भैरव क्षीरखंडक की पूजा के साथ माँ की आराधना की जाती है। अन्नकूट उत्सव में दीपावली के बाद यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें खीर और चावल का भोग विशेष महत्व रखता है।
भूतधात्री का स्वरूप भारतीय दर्शन में मातृत्व का शुद्धतम प्रतीक है। वह न केवल जगत की जननी हैं, बल्कि वह हर प्राणी की जीवनदाता भी हैं। वह धरती की तरह सबको धारण करती हैं, कोई उन्हें दूषित नहीं कर सकता, क्योंकि वह स्वयं पवित्रता की स्रोत हैं। माँ भूतधात्री का संदेश है कि “जिसने सृजन किया है, वही पालन करेगी; भय, अभाव या विनाश का कोई स्थान उस माँ की गोद में नहीं।” यह भाव मनुष्य को आत्मबल देता है और जीवन में स्थिरता लाता है।
खीरग्राम के निवासियों के बीच भूतधात्री से जुड़ी अनेक लोककथाएँ प्रचलित हैं। कहते हैं, सैकड़ों वर्ष पूर्व जब यहाँ भयंकर अकाल पड़ा था, तब गाँव की एक वृद्धा ने माँ से प्रार्थना की, “माँ! सब भूखे हैं, कोई अन्न नहीं।” उस रात एक चमत्कार हुआ, गाँव के तालाब का जल दूध में बदल गया। लोगों ने उससे खीर बनाई और भूख से तड़पते बच्चे बच गए। तब से माँ को “खीर देने वाली भूतधात्री” के नाम से भी पुकारा जाने लगा।
तंत्रमार्ग में भूतधात्री शक्तिपीठ अत्यंत महत्वपूर्ण है। बंगाल और असम के तांत्रिक परंपराओं में इसे सिद्धपीठ माना गया है। यहाँ साधक ‘भूत शांति साधना’ और ‘जीवन-धारण साधना’ करते हैं। कहा जाता है कि यह पीठ पंचम महासिद्ध पीठों में से एक है, जहाँ भूत (प्राणी) और तत्व दोनों को नियंत्रित करने की शक्ति प्राप्त होती है। तांत्रिक ग्रंथों में वर्णन है कि जो साधक पूर्ण भक्ति और नियमपूर्वक यहाँ साधना करता है, उसे ‘भूतधात्री सिद्धि’ प्राप्त होती है अर्थात वह अपने जीवन में सृजन और संरक्षण दोनों शक्तियों का अनुभव करता है।
आज भी यह शक्तिपीठ लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। हर वर्ष बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा और यहाँ तक कि नेपाल से भी भक्त यहाँ आते हैं। मंदिर समिति ने यहाँ यात्रियों के लिए धर्मशालाएँ, भंडारे और पूजा-सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं। साथ ही, मंदिर के आसपास खीरग्राम हाट के नाम से साप्ताहिक मेला लगता है, जिसमें स्थानीय हस्तशिल्प, लोकनृत्य और भक्ति संगीत का सुंदर संगम देखने को मिलता है।
यदि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए, तो भूतधात्री केवल एक देवी नहीं है, बल्कि ब्रह्मांडीय संतुलन की प्रतीक हैं। जहाँ शक्ति का एक रूप सृजन करती है (कुमारिका), दूसरा रूप पालन करता है (भूतधात्री), और तीसरा विनाश (काली) लाता है। इन तीनों के मध्य में जो संतुलन है वही जीवन का मूल सार है।
कई श्रद्धालु बताते हैं कि भूतधात्री के दरबार में माँ से मांगा गया वर कभी व्यर्थ नहीं जाता है। किसी ने रोगमुक्ति पाई, किसी ने संतान-सुख, तो किसी ने व्यापार में सफलता। माँ की एक झलक ही जीवन के दुःखों को हर लेती है। एक भक्त ने कहा था “माँ के दरबार में खड़े होते ही लगता है जैसे सृष्टि की सारी चिंता माँ की गोद में रख दी हो।”
भूतधात्री शक्तिपीठ में श्रद्धा के साथ कदम रखते ही यह अनुभूति होती है कि यहाँ केवल एक देवी नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण जीवन ऊर्जा का निवास है। यह स्थान न केवल भक्ति का, बल्कि चेतना के जागरण का केंद्र है। माँ भूतधात्री यह सिखाती हैं कि सृजन और संरक्षण साथ-साथ चलते हैं “माँ की कृपा से हर भूत (प्राणी) धारण करता है जीवन, और माँ की शरण में मिटता है भय।”
भूतधात्री शक्तिपीठ भारत की अद्भुत आध्यात्मिक धरोहरों में से एक है। यहाँ माँ के चरणों की मिट्टी में अनंत शांति, अनंत करुणा और अनंत ऊर्जा समाई है। जो भी भक्त सच्चे मन से यहाँ आता है, उसे जीवन में स्थिरता, सुख और संतोष प्राप्त होता है।
