भारत की रक्षा क्षमताओं में एक नया अध्याय खुलने की तैयारी है 'ध्वनि' नामक हाइपरसोनिक मिसाइल, जिसे डीआरडीओ ने विकसित करने की घोषणा की है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह मिसाइल लगभग मैक 6 यानि ध्वनि की गति से छह गुना अधिक (लगभग 7400 किमी/घंटा) की रफ्तार तक सक्षम होगी और इसका आरम्भिक परीक्षण 2025 के अंत तक प्रस्तावित है।
हाइपरसोनिक गति से आशय उन विमानों या प्रणालियों से है जो ध्वनि की गति (मैक 1) से अधिक गति से चलती हैं। जब गति मैक 5 या उससे अधिक हो, तब उस प्रणाली को सामान्यतः हाइपरसोनिक कहा जाता है। हाइपरसोनिक प्रणालियाँ दो मुख्य श्रेणियों में आता है। हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलें (जिसमें स्क्रैमजेट या रैमजेट इंजन का उपयोग होता है) और हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) जो बैलिस्टिक बूस्टर से ऊँचाई प्राप्त करने के बाद नियंत्रित ग्लाइड करके लक्ष्य तक पहुँचता है।
हाइपरसोनिक प्रणालियों की प्रमुख विशेषताएँ हैं उच्च गति- मैक 5 से अधिक, जिसका अर्थ है कि लक्ष्य तक पहुँचने में समय बहुत कम लगता है। मोहकता और गतिशीलता (Maneuverability)- पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों की तरह एक निर्धारित ट्राजेक्टरी नहीं है, बल्कि फिन-ट्यून की गई ग्लाइडिंग और मार्ग परिवर्तन की क्षमता। रडार/एंड-गेयर/मिसाइल रक्षा प्रणालियों के लिए चुनौती- उच्च तापमान, छोटे रिएक्शन टाइम और अनियमित मार्ग के कारण इन्हें संभावित लक्ष्य ट्रैकिंग और इंटरसेप्शन के लिए कठिन माना जाता है। हाइपरसोनिक तकनीक का विकास दुनिया की बड़ी सेनाओं, अमेरिका, रूस, चीन, के लिए प्राथमिकता रहा है। रूस और चीन ने पहले ही अलग-अलग हाइपरसोनिक प्रणालियाँ दिखायी हैं, जैसे रूस का Avangard और Kinzhal, तथा चीन के DF-17, जो कि हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल टेक्नोलॉजी का उदाहरण है।
प्रारम्भिक सूचनाओं के अनुसार, 'ध्वनि' एक हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) आधारित प्रणाली होगी। इसका मतलब यह है कि यह संभवतः एक बैलिस्टिक बूस्टर के माध्यम से ऊँचाई तक पहुँचेगी और फिर ग्लाइड करते हुए लक्ष्य पर पहुंचने के लिए नियंत्रित छोर से प्रवेश करेगी। इस तरह के डिज़ाइन के कुछ प्रमुख घटक और चुनौतियाँ हैं। हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल्स के लिए सामान्यतः एक ठोस-ईंधन या तरल-ईंधन बूस्टर का उपयोग होता है जो व्हीकल को उच्च क्षितिज रेखा तक धकेलता है। बूस्टर की शक्ति और पूर्वानुमेयता सुनिश्चित करना आवश्यक है, ताकि ग्लाइड व्हीकल सही हेडिंग और प्रारम्भिक वेग पर पहुँचे।
मैक 6 की रफ्तार तक पहुँचने पर वायुमंडलीय घर्षण से उत्पन्न तापमान अत्यंत उच्च होता है। इस कारण विशेष हीट-रेजिस्टेंट सिरेमिक, उन्नत कोटिंग्स और हीट-शिल्ड का विकास अनिवार्य है। रिपोर्ट में उल्लेख है कि एयरोनॉटिकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर और डिफेंस मेटलर्जिकल रिसर्च लेबोरेटरी ने विशेष सिरेमिक और कोटिंग विकसित किए हैं जो उच्च तापमान सहने में सक्षम हैं।
हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल को नियंत्रित करने के लिए अत्याधुनिक ग्रिड-फिंस, एक्ट्यूएटर्स और थ्रस्ट-वेक्टरिंग तकनीक की आवश्यकता होगी। साथ ही उच्च-सटीक इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS), GPS/GLONASS/IRNSS जैसे सैटेलाइट नेविगेशन का संयोजन और ऑन-बोर्ड सेंसर (इंफ्रारेड, रडार होमींग आदि) आवश्यक होंगे।
प्रारम्भिक रिपोर्टों में 'ध्वनि' की रेंज लगभग 1500 किमी बताई जा रही है, जो इसे ब्रह्मोस की तुलना में बहुत अधिक दूरी तक कार्यक्षमता देता है। यह रेंज हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल की अधिक दक्षता, उच्च ऊँचाई पर ग्लाइड और बेहतर ऊर्जा उपयोग के कारण संभव हो सकता है।
ब्रह्मोस मिसाइल, भारत-रूस का एक अत्यंत सफल सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रोजेक्ट है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं मैक 2.8–3 की गति, 290–600 किमी की रेंज (वर्जन के अनुसार) और उच्च सटीकता। ब्रह्मोस ने समुद्री, भूमि और वायु-आधारित प्लेटफार्मों से समान रूप से प्रदर्शन दिखाया है।
'ध्वनि' और ब्रह्मोस की तुलना कुछ प्रमुख बिंदुओं पर की जा सकती है। गति- ब्रह्मोस मैक 3, 'ध्वनि' मैक 6। गति में स्पष्ट बढ़त 'ध्वनि' की है। रेंज- ब्रह्मोस की पारंपरिक रेंज 290–600 किमी है, वहीँ 'ध्वनि' का दायरा लगभग 1500 किमी बताया जा रहा है, यह ब्रह्मोस की तुलना में तिगुना से भी अधिक हो सकता है। हिट-टाइम और प्रतिक्रिया समय- उच्च गति का मतलब है लक्ष्य पर पहुँचने का समय बहुत कम, प्रतियों का जवाब देने का समय लिमिटेड। इंटरसेप्टेबिलिटी- पारंपरिक मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ जैसे S-400, THAAD आदि का डिजाइन बैलिस्टिक और सुपरसोनिक ब्लॉक्स को ट्रैक और इंटरसेप्ट करने के लिए किया गया है। हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल की अनियत ट्राजेक्टरी और उच्च स्पीड उन्हें ट्रैक और इंटरसेप्ट करने में चुनौती देती है।
हालाँकि "धीरे-धीरे अदृश्य" जैसी व्याख्याएँ अतिशयोक्ति हो सकती हैं। किसी भी रक्षा तंत्र के लिए आखिरकार नए डिटेक्शन और ट्रैकिंग अल्गोरिद्म विकसित किये जा सकते हैं। फिर भी, त्वरित प्रतिक्रिया और परिष्कृत इंटरसेप्शन क्षमताओं के बिना पारंपरिक प्रणालियाँ हाइपरसोनिक-स्तर की मिसाइलों का सामना करने में कठिनाई महसूस कर सकती हैं।
यदि 'ध्वनि' सफलतापूर्वक परीक्षण होकर तैनात हो जाती है, तो इसके संभावित सामरिक और राजनीतिक प्रभाव कई दिशा‑निर्देशों में होंगे। 1500 किमी तक की रेंज और उच्च गति के साथ 'ध्वनि' को समुद्री और भू-क्षेत्रीय लक्ष्य दोनों पर तैनात किया जा सकता है। इससे हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन प्रभावित होगा, क्योंकि रॉकेट-आधारित प्रॉम्प्ट-शॉर्ट निपुणता (prompt strike capability) बढ़ेगी। पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों के विरुद्ध यह मिसाइल एक लंबी दूरी की प्रिसाइजन-स्ट्राइक विकल्प दे सकती है। विशेषकर यदि यह जमीन, समुद्र तथा वायु-आधार से लॉन्च करने योग्य हो तो इसकी बहुमुखी प्रतिभा बढ़ जाती है। सैन्य शक्ति का विस्तार अक्सर वैचारिक और नीतिगत बहसें भी जन्म देता है। हाइपरसोनिक प्रणाली को किस तरह से घोषित किया जाएगा, केवल पारंपरिक हथियार या परमाणु-क्षमताधारी, यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय प्रचालनों और हमारे स्वयं के ‘नो-प्रोफाइल’ पर असर डाल सकता है। यदि इसे परमाणु-योग्य बनाया जाता है, तो यह रणनीतिक स्पष्टता और संयम (strategic stability) पर प्रभाव डाल सकता है। हाइपरसोनिक क्षमताओं से लैस देश अक्सर वैश्विक सुरक्षा मंचों पर अधिक प्रभावशाली होते हैं। 'ध्वनि' की सफलता से भारत को एक नई सामरिक प्रतिष्ठा प्राप्त होगी और यह तकनीकी श्रेष्ठता का संकेत देगी, परन्तु इससे तैनाती के बाद सुरक्षा तंत्र, पड़ोसी-संबंध और अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर प्रभाव भी देखने को मिल सकता है।
किसी भी हाइपरसोनिक प्रणाली का सफल विकास केवल एक प्रोटोटाइप बनाकर पूरा नहीं होता है। इसके लिए व्यापक परीक्षण, टार्गेटिंग और नेविगेशन सॉफ्टवेयर, सामग्री विज्ञान, रडार और सेंसिंग टेक्नोलॉजी, और लॉजिस्टिक्स का समन्वय आवश्यक है।
रिपोर्टों में कहा गया है कि S-400 जैसे आधुनिक एयर डिफेन्स सिस्टम 'ध्वनि' को पकड़ने में मुश्किल महसूस करेंगे। यह कुछ हद तक सही है क्योंकि हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल्स उच्च गति पर मैनीवर कर सकती हैं और उनकी ऊँचाई‑रेंज प्रोफाइल पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों से अलग होती है। लेकिन यह कहना कि वे पूरी तरह से अदृश्य हो जाएंगी,अतिशयोक्ति होगी।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि 2020 में स्क्रैमजेट इंजन के सफल परीक्षण के बाद यह परियोजना निर्णायक चरण में है। स्क्रैमजेट (Supersonic Combustion Ramjet) तकनीक विशेष रूप से हाइपरसोनिक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों के लिए उपयोगी है, क्योंकि यह उच्च-वायु वेग पर ऑन-बोर्ड ईंधन जला कर थ्रस्ट पैदा करता है। परन्तु यदि 'ध्वनि' वास्तव में एक ग्लाइड व्हीकल है, तो स्क्रैमजेट इंजन सीधे तौर पर उसकी ग्लाइडिंग अवस्था के लिए आवश्यक नहीं होगा, फिर भी स्क्रैमजेट टेक्नोलॉजी से मिले अनुभव और उच्च-गति पदार्थों के साथ काम करने का ज्ञान परियोजना के लिए फायदेमंद रहा होगा।
हाई‑एंड हथियार प्रणालियों का विकास केवल तकनीकी मुद्दा नहीं रहता है, इसके साथ अंतरराष्ट्रीय कानून, हथियार नियंत्रण और एथिक्स जुड़े होते हैं। वैश्विक स्तर पर हाइपरसोनिक हथियारों के लिए कोई विशेष अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं बनी है। परन्तु बढ़ती हाइपरसोनिक क्षमताओं से रोकथाम और पारदर्शिता की मांग बढ़ेगी। भारत को यह विचार करना होगा कि किस रुख से वह अपनी नीतियों और परीक्षणों को प्रकाशित करेगा ताकि वैश्विक दबाव और गलतफहमी न बढ़े। अगर ध्वनि को परमाणु-क्षमता से जोड़ दिया जाता है तो यह रणनीतिक तनाव को बढ़ा सकता है। इसलिए नीतिगत स्पष्टता, क्या यह एक पारंपरिक-सिर्फ प्रणाली होगी या नाभिकीय रूप से सक्षम, महत्वपूर्ण है। पड़ोसी देश और वैश्विक शक्तियाँ इस तरह की क्षमताओं पर चिंतित होगी। इससे सुरक्षा दावों, हथियार-प्रतिस्पर्धा और कूटनीतिक वार्ताओं में नई चुनौतियाँ आ सकती हैं।
