पटना मेट्रो में एक युवती का डांस करते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है। वीडियो में लड़की मेट्रो के अंदर गाने की धुन पर नाचती हुई दिखाई दे रही है, जबकि आसपास यात्री भी मौजूद हैं। यह वीडियो कुछ ही घंटों में पूरे इंटरनेट पर चर्चा का विषय बन गया। कई लोगों ने इसे मनोरंजक बताया तो कईयों ने इसे सार्वजनिक स्थान की मर्यादा के खिलाफ बताया।
मेट्रो में इस तरह का प्रदर्शन बिहार में हाल ही में शुरू हुई मेट्रो सेवा के संदर्भ में और भी संवेदनशील माना जा रहा है, क्योंकि यह सेवा अभी परीक्षण चरण में है और सुरक्षा व अनुशासन पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। इस घटना के बाद प्रशासन ने वीडियो की जांच शुरू कर दी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वीडियो कब और किस ट्रेन में बनाया गया था।
कुछ लोगों का कहना है कि इस तरह की गतिविधियाँ “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का हिस्सा हैं, जबकि कई अन्य का मानना है कि सार्वजनिक परिवहन को मनोरंजन स्थल नहीं बनाया जा सकता। सोशल मीडिया पर इस पर बहस छिड़ गई है — एक पक्ष का कहना है कि यह आधुनिकता और आत्मविश्वास का प्रतीक है, जबकि दूसरा पक्ष इसे अनुशासनहीनता और दिखावे की संस्कृति करार दे रहा है।
पटना मेट्रो प्रशासन ने बयान जारी किया है कि यात्रियों को नियमों का पालन करना चाहिए और किसी भी प्रकार का प्रदर्शन, डांस या वीडियो शूट बिना अनुमति के करना मना है। उन्होंने कहा कि मेट्रो सभी के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक यात्रा का माध्यम है, इसलिए इस तरह की गतिविधियाँ न केवल अनुचित हैं बल्कि भविष्य में दंडनीय भी हो सकती हैं।
इस घटना ने एक बार फिर सोशल मीडिया संस्कृति और पब्लिक बिहेवियर की सीमाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं — क्या वायरल होने की चाह में लोग सामाजिक जिम्मेदारी भूलते जा रहे हैं, या समाज को अब नए अभिव्यक्ति के तरीकों को स्वीकार करना चाहिए? जवाब शायद इस बात में है कि आज के समय में “कंटेंट क्रिएशन” और “संवेदनशीलता” के बीच संतुलन बनाना पहले से कहीं ज़्यादा जरूरी हो गया है।
