चांद्रसेनीय कायस्थोत्पत्ति और द्वादश गौड़ ब्राह्मण परंपरा

Jitendra Kumar Sinha
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चांद्रसेनीय कायस्थों की उत्पत्ति का वर्णन अत्यंत प्राचीन और गौरवपूर्ण है। प्राचीन मान्यता के अनुसार, चांद्रसेनीय कायस्थ राजा चन्द्रसेन के वंशज हैं। जब परशुराम ने क्षत्रियों का नाश किया, तब कुछ क्षत्रियों ने अपनी रक्षा हेतु दालभ्य ऋषि की शरण ली। दालभ्य ऋषि ने भगवान परशुराम की आज्ञा से इन क्षत्रियों को क्षत्रियत्व से ब्राह्मणत्व में परिवर्तित कर कायस्थ ब्राह्मण बनाया। यह घटना त्रेतायुग के प्रारंभ की मानी जाती है। इस प्रकार चांद्रसेनीय वंश का उद्भव क्षत्रिय और ब्राह्मण गुणों के समन्वय से हुआ, जिसमें वीरता और विद्या दोनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

महाराष्ट्र और उसके आस-पास के क्षेत्रों में चांद्रसेनीय कायस्थ अत्यंत प्रतिष्ठित एवं प्रभावशाली स्थिति में हैं। उनके अनेक उपनाम आज भी प्रचलित हैं, जैसे- ठाकरे, पठारे, चंद्रसेनी, प्रभु, चित्रे, मथरे, देशपांडे, करोड़े, दोदे, तम्हणे, सुले, राजे, शागले, मोहिते, तुगारे, फड़से, आप्टे, रणदिये, गडकरी, कुलकर्णी, श्राफ, वैद्य, जयवंत, समर्थ, दलवी, देशमुख, मौकासी, चिटणवीस, कोटनिस, कारखनो, फरणीस, दिघे, धारकर, प्रधान आदि। इन उपनामों से यह स्पष्ट होता है कि चांद्रसेनीय कायस्थों का प्रभाव महाराष्ट्र, कोंकण, कर्नाटक और मध्य भारत तक फैला हुआ है।

कायस्थों की उत्पत्ति का संबंध भगवान चित्रगुप्त से बताया गया है। सृष्टि के प्रारंभ में जब भगवान ब्रह्मा ने चित्रगुप्त की सृष्टि की, तो उन्होंने अपने बारह पुत्रों को पृथ्वी पर धर्म और नीति के संरक्षण का कार्य सौंपा। इन बारह पुत्रों ने बारह महान ऋषियों के आश्रमों में शिक्षा प्राप्त की। उनके द्वारा प्राप्त विद्या, तप और संस्कारों के कारण ये बारह चित्रगुप्तवंशीय ब्रह्मकायस्थ, कालांतर में समाज में द्वादश गौड़ ब्राह्मण के रूप में विख्यात हुए।

क्रम

वर्तमान कायस्थ उपनाम

पूर्वकालीन ब्राह्मण उपनाम

निगम कायस्थ

उपाध्याय

गौड़ कायस्थ

उपाध्याय

श्रीवास्तव कायस्थ

उपाध्याय

कुलश्रेष्ठ कायस्थ

उपाध्याय

वाल्मीकि कायस्थ

उपाध्याय

अस्थाना कायस्थ

उपाध्याय

अम्बष्ट कायस्थ

उपाध्याय, पाण्डेय, शर्मा

कर्ण कायस्थ

उपाध्याय, पाण्डेय, शर्मा

सुखसेन कायस्थ

उपाध्याय, पाण्डेय, शर्मा

१०

भट्टनागर कायस्थ

उपाध्याय, पाण्डेय, शर्मा

११

सूर्यध्वज कायस्थ

उपाध्याय, पाण्डेय, शर्मा

१२

माथुर कायस्थ

चतुर्वेदी, मिश्र, पाठक

इन उपनामों से स्पष्ट है कि चित्रगुप्तवंशीय कायस्थों का गहरा संबंध ब्राह्मण परंपरा से रहा है। जब भगवान चित्रगुप्त के बारह पुत्र बारह ऋषियों के शिष्य बने, तब उन्होंने अपने गुरु के नाम से अपनी पहचान बनाई। इस प्रकार वे द्वादश गौड़ कहलाए—

मांडव्य गौड़

गौतम गौड़

श्रीहर्ष गौड़

हारित गौड़

वसिष्ठ गौड़

दालभ्य गौड़

वाल्मीकि गौड़

हंस गौड़

सौरभ गौड़

सौभरि गौड़

भट्ट गौड़

माथुर गौड़

इसी परंपरा से आगे चलकर द्वादश गौड़ ब्राह्मण समाज की नींव पड़ी, जो आज भी भारत के विभिन्न अंचलों में प्रतिष्ठित है।

पद्मपुराण (उत्तरखंड) में वर्णित है कि भगवान चित्रगुप्त ने धर्मपालन हेतु अपने पुत्रों को पृथ्वी पर भेजा। वे बारह ऋषियों की कन्याओं से उत्पन्न हुए, जिन्हें ‘कायस्थ ब्राह्मण’ कहा गया। इनकी उत्पत्ति, शिक्षा और संस्कार से संबंधित अनेक साक्ष्य उज्जैन और उसके समीप स्थित कायथा नामक स्थान पर आज भी उपलब्ध हैं। यहीं भगवान चित्रगुप्त की आराधना की जाती है, और यह स्थान कायस्थों के लिए तीर्थ समान है।

यह पौराणिक ब्राह्मण उत्पत्ति केवल ‘द्वादश गौड़’ समाज की मानी गई है। अन्य ब्राह्मण जातियों की उत्पत्ति अलग-अलग ऋषियों एवं प्रदेशों से हुई है। इसलिए सभी ब्राह्मण बंधुओं को चाहिए कि वे अपने-अपने वंश की उत्पत्ति को पुराणों में खोजें, उसे जानें, और अपने वंशजों को भी उस गौरवपूर्ण परंपरा से अवगत कराएँ।

भारत के विभिन्न प्रांतों में अनेक ब्राह्मण जातियाँ प्रसिद्ध हैं। इनकी उत्पत्ति, भाषा, वेद शाखा और कर्मकांड परंपराएँ अलग-अलग हैं। प्रमुख जातियाँ हैं अहिवासी ब्राह्मण, अनाविल ब्राह्मण, अष्टाश्रम अय्यर, अर्वतोकालु ब्राह्मण, अउदिच्य ब्राह्मण, बदग्नाडु स्मार्त, बारेन्द्र (बंगाली), बसोत्रा, बेयाल, भार्गव, भूमिहार, बाल ब्राह्मण, बृहत्वरनम अय्यर, ब्रह्मभट्ट, दैवज्ञ, देशस्थ, देवरूखे (कोंकण), धीमा, इम्ब्रांथिरौ (केरल), गुरूक्कल या शिवाचार्य, हव्यका, हेब्बर अयंगर, होयसाला, जिजहोतिया, कन्डावरा, कारहदा (महाराष्ट्र), कश्मीरी, केरला अय्यर, खजूरिया या डोगरा (जम्मू), खन्डेलवाल, खेडवाल, कोंकणस्थ या चित्तपावन, कोटा, कोटेश्वरा, कुडलेश्वर, मद्रास अयंगर, माधवा, मान्डव्यम अयंगर, मोध, मोहयल, मुलुकनाडु, नागर, नम्बूदिरी, नन्दीमुख या नन्दवाना, नर्मदेव या नर्मदिया, नेपाली, पाडिया, पालीवाल, पंगोत्रा, पोट्टी (केरल), पुष्करण, राहरी (बंगाल), ऋग्वेदी देशस्थ, सदोत्रा (जम्मू), शाकलद्विपीय, सकलपुरी, सनाढ्य, सांकेती, सरयूपारीण, सिरिनाडू स्मार्त, श्रीमाली, शिवाल्ली, स्थानिक, तेनकलाई अयंगर, तुलुवा, त्यागी, उप्पल, उलुचकम्मे, वदगलाई अयंगर, वदमा अय्यर, वैदिक या वैदिकी, वैष्णव, वथिमा अय्यर, यजुर्वेदीय देशस्थ आदि। इन सब जातियों ने भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन, ज्योतिष, वेद-विज्ञान और समाज सेवा में अमूल्य योगदान दिया है।

कायस्थ ब्राह्मणों की यह परंपरा केवल वंशजों की नहीं है, बल्कि विद्या, धर्म और न्याय की परंपरा है। चांद्रसेनीय और चित्रगुप्तवंशीय दोनों ही परंपराएँ यह प्रमाणित करता हैं कि भारतीय समाज में कर्म और ज्ञान का अद्भुत संतुलन सदा रहा है। सभी कायस्थ और ब्राह्मण बंधु अपने पुरखों के इस गौरव को जानें, संजोएँ और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएँ यही सच्चा वंशगौरव है।



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