करोड़ों साल पुरानी रहस्यमयी प्रजाति है - “पर्पल फ्रॉग”

Jitendra Kumar Sinha
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भारत के वेस्टर्न घाट की (केरल और कर्नाटक के) पहाड़ियों में बसे घने, नम और हरियाली जंगलों के बीच एक बेहद अनोखा और रहस्यमयी जीव छिपा रहता है “पर्पल फ्रॉग”। वैज्ञानिक नाम Nasikabatrachus sahyadrensis से जाना जाता है यह प्रजाति, दुनिया के सबसे दुर्लभ और प्राचीन मेंढकों में से एक है। इसका रहन-सहन, रूप-रंग और जीवनचक्र इतना विचित्र है कि वैज्ञानिक भी इसे देखकर आश्चर्यचकित रह जाता है।

“पर्पल फ्रॉग” का शरीर छोटा, गोल-मटोल और चिकना होता है। इसकी लंबाई आम तौर पर 7 से 9 सेंटीमीटर तक होती है। इसका रंग गहरा बैंगनी या नीला-बैंगनी होता है, जिससे इसे “पर्पल फ्रॉग” कहा जाता है। इसका चेहरा छोटा, नुकीली थूथन जैसी नाक और छोटी-सी आंखें होती हैं। इसकी टाँगें मजबूत और खुदाई के लिए अनुकूल होती हैं, जिससे यह मिट्टी के भीतर आसानी से सुरंग बनाकर रह सकता है।

इस मेंढक की सबसे बड़ी विशेषता इसकी जीवनशैली है। अन्य मेंढकों की तरह यह खुले में नहीं कूदता-फिरता है, बल्कि साल के लगभग 10 से 11 महीने जमीन के नीचे बिताता है। यह नम मिट्टी और भूमिगत सुरंगों में रहता है, जहाँ यह छोटे-छोटे कीड़ों और दीमकों को खाकर जीवन व्यतीत करता है।

सिर्फ मानसून के मौसम में लगभग दो सप्ताह के लिए यह सतह पर आता है, वह भी केवल प्रजनन के उद्देश्य से। तेज बारिश के दौरान यह जंगलों की नदियों और झरनों के किनारे दिखाई देता है। प्रजनन पूरा होते ही यह फिर से जमीन के नीचे चला जाता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, “पर्पल फ्रॉग” कोई सामान्य मेंढक नहीं है। यह करोड़ों साल पुरानी प्रजाति है, जो डायनासोर के समय से जीवित है। माना जाता है कि इसका वंश लगभग 12 करोड़ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया था। यह लिविंग फॉसिल (Living Fossil) यानि जीवित जीवाश्म की श्रेणी में आता है, क्योंकि इसकी आनुवंशिक संरचना में आज भी वह लक्षण पाया जाता है जो प्राचीन मेंढकों में हुआ करता था।

“पर्पल फ्रॉग” केवल भारत के वेस्टर्न घाट (केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्सों) में पाया जाता है। इसका आवास बहुत सीमित है, और मानव गतिविधियों, वनों की कटाई, खेती के विस्तार तथा जलवायु परिवर्तन के कारण इसका अस्तित्व खतरे में है।

इसी वजह से इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने इसे Endangered Species यानि संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में रखा है।

“पर्पल फ्रॉग” न केवल भारत की जैव विविधता का अनमोल हिस्सा है, बल्कि यह पृथ्वी पर जीवन के विकासक्रम का साक्षी भी है। इसकी संरचना और व्यवहार वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करता है कि मेंढकों की प्रजातियाँ करोड़ों वर्षों में कैसे विकसित हुईं।

“पर्पल फ्रॉग” इस बात का जीवित प्रमाण है कि पृथ्वी पर जीवन कितनी पुरानी और विविधतापूर्ण है। यह छोटा-सा जीव प्राकृतिक इतिहास का बहुमूल्य अध्याय है। इसे बचाना केवल एक प्रजाति को संरक्षित करना नहीं है, बल्कि पृथ्वी के अतीत से जुड़े उस जीवित विरासत को सुरक्षित रखना है, जो बताती है कि “प्रकृति की गहराइयों में आज भी इतिहास सांस लेता है।”



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